Alzheimer's disease: युवाओं को चपेट में ले रही है 60 के बाद होने वाली ये गंभीर बीमारी, सामने आया सबसे कम उम्र का रेयर केस
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Alzheimer's disease: युवाओं को चपेट में ले रही है 60 के बाद होने वाली ये गंभीर बीमारी, सामने आया सबसे कम उम्र का रेयर केस

Brain diseases: भारत में लाखों लोगों को किसी न किसी तरह की भूलने की बीमारी है. एक साइंस जर्नल में प्रकाशित रिपोर्ट के मुताबिक दुनियाभर में 5 करोड़ लोग दिमाग से संबंधित बीमारियों जैसे अल्जाइमर (Alzheimer's ) और डिमेंशिया (dementia) से पीड़ित हैं. इसके मरीजों की संख्या इस मर्ज को एक वैश्विक स्वास्थ्य संकट बना चुकी है.

Alzheimer's disease: युवाओं को चपेट में ले रही है 60 के बाद होने वाली ये गंभीर बीमारी, सामने आया सबसे कम उम्र का रेयर केस

Youngest person diagnosed with Alzheimers: चीन में 19 साल के एक लड़के को 17 साल की उम्र से भूलने की समस्या थी. जांच करने पर पता चला कि उसे डिमेंशिया (dementia) की बीमारी है. हाल ही में जर्नल ऑफ अल्जाइमर्स डिजीज में प्रकाशित एक केस स्टडी से यह जानकारी मिली. कई तरह के परीक्षणों के बाद, बीजिंग में कैपिटल मेडिकल यूनिवर्सिटी के शोधकर्ताओं ने किशोर में 'संभावित' अल्जाइमर रोग का निदान किया. यदि निदान सही है, तो वह सबसे कम उम्र का व्यक्ति होगा जिसे डिमेंशिया की इस नामुराद बीमारी ने घेरा है. बीमारी के लिए मुख्य जोखिम कारक पुराना हो रहा है, जो इस नवीनतम मामले को इतना असामान्य बना देता है.

हैरान रह गए डॉक्टर

अल्जाइमर के सटीक कारण हालांकि अभी भी काफी हद तक अज्ञात हैं, लेकिन इस मर्ज की एक वजह मस्तिष्क में दो प्रोटीनों का निर्माण मानी जाती तहै: बीटा-एमिलॉयड और टौ181. अल्ज़ाइमर से पीड़ित लोगों में, बीटा-अमाइलॉइड आमतौर पर न्यूरॉन्स (मस्तिष्क की कोशिकाओं) के बाहर बड़ी मात्रा में पाया जाता है,  हालांकि, इस 19 वर्षीय किशोर के मस्तिष्क में इन लक्षणों के किसी भी संकेत को दिखाने में स्कैन विफल रहे. लेकिन रिसर्चर्स ने रोगी के मस्तिष्कमेरु द्रव में पी-टौ181 नामक प्रोटीन का असामान्य रूप से उच्च स्तर पाया. यह आमतौर पर दिमाग में टौ टेंगल्स के बनने से पहले होता है.

कम उम्र के मरीजों में चौंकाने वाला खुलासा

30 वर्ष से कम उम्र के लोगों में अल्जाइमर रोग के लगभग सभी मामले वंशानुगत दोषपूर्ण जीन के कारण होते हैं. दरअसल, पिछले सबसे कम उम्र -21 वर्षीय- के मामले का भी एक आनुवंशिक कारण था. युवाओं में अल्जाइमर रोग से तीन जीन जुड़े हुए हैं: एमिलॉयड अग्रदूत प्रोटीन (एपीपी), प्रीसेनिलिन 1 (पीएसईएन1) और प्रीसेनिलिन 2 (पीएसईएन 2).

ये जीन बीटा-एमिलॉइड पेप्टाइड नामक एक प्रोटीन अंश के उत्पादन में शामिल हैं, जो पहले उल्लिखित बीटा-एमिलॉइड का एक हिस्सा है.

दवा के बावजूद खतरा बरकरार

अगर जीन में कोई प्रॉबलम है, तो यह दिमाग में बीटा-अमाइलॉइड के असामान्य जमाव को जन्म दे सकता है - जो अल्जाइमर रोग की एक पहचान होने के साथ साथ इसके उपचार के लिए एक लक्ष्य भी है, जैसे कि हाल ही में स्वीकृत दवा लेकेनमेब. अल्जाइमर रोग विकसित करने के लिए लोगों को केवल एपीपी, पीएसईएन1 या पीएसईएन2 में से एक की जरूरत होती है, और उनके बच्चों को उनसे जीन विरासत में मिलने और बीमारी विकसित होने की भी 50:50 संभावना होती है.

हालांकि, इस नवीनतम मामले में एक आनुवंशिक कारण को खारिज कर दिया गया था क्योंकि शोधकर्ताओं ने रोगी के पूरे-जीनोम अनुक्रम का अध्ययन किया और किसी भी ज्ञात आनुवंशिक परिवर्तन को खोजने में नाकाम रहे. इस किशोर की फैमिली में किसी को भी अल्जाइमर रोग या मनोभ्रंश का इतिहास नहीं है.

इसे लड़के को कोई अन्य बीमारी, संक्रमण या सिर में कोई चोट नहीं थी जो उसकी स्थिति को समझा सके. यह स्पष्ट है कि उसे अल्ज़ाइमर का जो भी रूप है, ये मेडिकल साइंस के इतिहास का सबसे दुर्लभ केस है.

गंभीर रूप से बिगड़ा हुआ स्मृति दोष

17 साल की उम्र में मरीज को अपने स्कूल की पढ़ाई पर ध्यान केंद्रित करने में समस्या होने लगी. इसके एक साल बाद उनकी अल्पकालिक स्मृति का नुकसान हुआ. उसे याद नहीं रहता था कि उसने खाना खाया है या अपना होमवर्क किया है. उसका स्मृति लोप इतनी गंभीर हो गया कि उसे हाई स्कूल छोड़ना पड़ा (वह अपने अंतिम वर्ष में था).

स्मृति लोप का पता लगाने के लिए उपयोग किए जाने वाले मानक संज्ञानात्मक परीक्षणों द्वारा अल्जाइमर रोग के संभावित निदान की पुष्टि की गई. परिणामों ने सुझाव दिया कि उनकी स्मृति गंभीर रूप से क्षीण थी. मस्तिष्क के स्कैन से यह भी पता चला कि उसका हिप्पोकैम्पस - स्मृति में शामिल मस्तिष्क का एक हिस्सा - सिकुड़ गया था. यह डिमेंशिया का एक विशिष्ट प्रारंभिक संकेत है. 

युवाओं को चपेट में ले रही है 60 के बाद होने वाली बीमारी

डिमेंशिया के जैविक तंत्र को समझना मुश्किल है. ये केस एक मेडिकल मिस्ट्री बना हुआ है. कम उम्र के रोगियों में अल्जाइमर रोग की शुरुआत के मामले तेजी से बढ़ रहे हैं. अफसोस की बात है कि यह आखिरी ऐसा दुर्लभ मामला नहीं है जिसके बारे में हम सुन रहे हैं.

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