DNA Analysis: आपका फोन 'कबाड़' कर रहा जिंदगी? आसमान से भी ऊंचा ई-कचरे का पहाड़
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DNA Analysis: आपका फोन 'कबाड़' कर रहा जिंदगी? आसमान से भी ऊंचा ई-कचरे का पहाड़

Global Waste Problem: अगर आपके पास भी एक नहीं बल्कि दो और तीन स्मार्टफोन हैं, तो आपको हमारा आज का ये विश्लेषण जरूर देखना चाहिए क्योंकि हमारा ये विश्लेषण सिर्फ आपकी और आपके परिवार की सेहत से ही जुड़ा नहीं है, बल्कि ये हमारी पृथ्वी की सेहत से भी जुड़ा है.

DNA Analysis: आपका फोन 'कबाड़' कर रहा जिंदगी? आसमान से भी ऊंचा ई-कचरे का पहाड़

DNA Analysis: जिस स्मार्टफोन ने आपनी जिंदगी इतनी आसान बना दी है, वही स्मार्टफोन आपकी जिंदगी में जहर भी घोल सकता है. दुनियाभर में ई कचरे पर नजर रखने  वाली एक संस्था वेस्ट इलेक्ट्रिकल एंड इलेक्ट्रॉनिक इक्विपमेंट (WEEE)  के अनुसार इस वर्ष पूरी दुनिया में करीब 5 अरब 30 करोड़ फोन फेंक दिए जाएंगे. यानी 530 करोड़ से भी ज्यादा फोन फेंक दिए जाएंगे और ये संख्या कितनी बड़ी है, इसका अनुमान आप इसी बात से लगा सकते हैं कि आज भारत की कुल आबादी करीब 130 करोड़ ही है. यानी भारत की आबादी से भी करीब 4 गुना ज्यादा फोन अकेले इसी एक साल में फेंक दिए जाएंगे.

WEEE की ये रिपोर्ट बताती है कि दुनिया में ऐसे लोगों की संख्या लगातार बढ़ रही है, जो अपने पुराने फोन रिसाइकल नहीं करते और उसे रखे रहते हैं और बाद में फेंक देते हैं.

बेकार पड़े फोन हैं बड़ी समस्या

एक अनुमान के मुताबिक दुनियाभर में इस वक्त 16 अरब से भी ज्यादा मोबाइल फोन इस्तेमाल किए जा रहे हैं. यानी दुनिया की कुल आबादी से दोगुने से भी ज्यादा फोन इस्तेमाल हो रहे हैं. हालांकि ये उतनी बड़ी समस्या नहीं है. ज्यादा बड़ी समस्या ये है कि आज जितने ज्यादा फोन इस्तेमाल हो रहे हैं. उससे कहीं ज्यादा फोन बेकार पड़े हैं और वो ई कचरे में बदल चुके हैं. इसे आप ऐसे भी समझ सकते हैं कि यूरोप में कुल जितने फोन इस्तेमाल हो रहे हैं, उनमें से लगभग एक तिहाई फोन इस्तेमाल नहीं होते हैं.

ISS से 120 गुना ऊंचा हो सकता है बेकार पड़े फोन का ढेर

आज हम पूरी दुनिया में इस्तेमाल न होने वाले यानी कबाड़ बन चुके फोनों को इकट्ठा कर लें और उन्हे एक के ऊपर एक रखने लगें, तो आप जानते हैं, उसकी ऊंचाई कितनी हो जाएगी? कुतुब मीनार या माउंट एवरेस्ट जितनी नहीं. ये तो बहुत छोटे हैं. मोबाइल फोन की इस मीनार की ऊंचाई 50 हजार किलोमीटर तक पहुंच जाएगी. यानी ये ढेर अंतरिक्ष में पृथ्वी के चक्कर काट रहे इंटरनेशनल स्पेस स्टेशन से भी करीब 120 गुना ऊंचा हो जाएगा. यही नहीं साल 2026 तक दुनिया में इस्तेमाल न किए जाने वाले यानी कबाड़ बन चुके इतने इयर फोन मौजूद होंगे कि उनसे चांद को भी तीन बार लपेटा जा सकता है.

2030 तक 7.4 करोड़ टन की दर से बढ़ेगा ई-वेस्ट 

WEEE की रिसर्च के अनुसार ये इलेक्ट्रिक और इलेक्ट्रॉनिक कचरा 2030 तक सालाना 7.4 करोड़ टन की दर से बढ़ने लगेगा और इसमें सिर्फ फोन ही नहीं हैं. क्योंकि ये अरबों फोन पूरी दुनिया में मौजूद ई कचरे का बहुत छोटा सा ही हिस्सा हैं. साल 2020 में करीब 4 करोड़ 48 लाख टन ई कचरा पैदा हुआ था. इस ई कचरे में कंप्यूटर प्रोडक्ट्स, स्क्रीन्स, स्मार्टफोन, टैबलेट, टीवी, फ्रिज, वॉशिंग मशीन और हीटिंग या कूलिंग वाले उपकरण सबसे ज्यादा थे. ये आंकड़े कितने डराने वाले हैं, इसे समझाने के लिए हम आपको कुछ और उदाहरण भी दे रहे हैं और आपको इन्हे भी ध्यान से समझ लेना चाहिए.

साल 2022 में Small e waste यानी फोन, या इयरप्लग जैसे छोटे इलेक्ट्रिक उत्पादों से ही करीब 2 करोड़ 45 लाख मीट्रिक टन ई कचरा पैदा हुआ था और इस कचरे का कुल वजन इतना ज्यादा है, कि इसके सामने गीजा जैसे एक दो नहीं, चार पिरामिड भी मिला दें. तो भी कचरे का वजन ज्यादा ही रहेगा. चिंता की बात ये है कि इसका बहुत छोटा सा हिस्सा ही रिसाइकल हो पाया. जबकि बाकी का खुली जमीन पर रह गया या फिर नदियों और समंदर में पहुंच गया.

भारत में हालात खराब

भारत में भी हालात बहुत अच्छे नहीं हैं क्योंकि भारत में दुनिया की दूसरी सबसे ज्यादा आबादी रहती है और अब यहां इलेक्ट्रॉनिक उपकरणों और गैजेट्स का इस्तेमाल भी लगातार बढ़ रहा है. जब इस्तेमाल बढ़ रहा है तो ई वेस्ट भी ज्यादा पैदा हो रहा है. इसीलिए आज ई- कचरा पैदा करने के मामले में भारत दुनिया का पांचवां सबसे बड़ा देश है. भारत में हर साल करीब 10 लाख टन ई-कचरा निकलता है और इसमें बड़ा हिस्सा कंप्यूटर्स का होता है.

लेकिन असली समस्या ई- कचरा नहीं है, असली समस्या है, इस कचरे का मैनेजमेंट. क्योंकि एक रिपोर्ट के मुताबिक देशभर में जितना ई कचरा पैदा होता है, उसका सिर्फ 3 से 10 प्रतिशत हिस्सा ही इकट्ठा कर के, रिसाइकल के लिए भेजा जाता है.

डराने वाले हैं आंकड़े

NGT यानी नेशनल ग्रीन ट्राइब्यूनल की साल 2020 में पेश की गई एक रिपोर्ट के अनुसार, वर्ष 2018-19 में करीब एक लाख, 54 हजार टन (1,54,242 टन) ई कचरा इकट्ठा करने का लक्ष्य रखा गया था. लेकिन सिर्फ 78 हजार टन  (78,281 टन) कचरा ही इकट्ठा हो सका. इसका आधा भी जमा नहीं हो पाया. यानी तय लक्ष्य का आधा भी हासिल नहीं हुआ. जबकि अगले ही वर्ष यानी 2019-20 में भारत ने 10 लाख 15 हज़ार मीट्रिक टन ई वेस्ट पैदा कर दिया.

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