K. Asif: मुगल-ए-आजम हिंदी सिनेमा के इतिहास की सबसे शानदार फिल्मों में एक है. इसे बनने में एक दशक से अधिक का समय लगा और 1950-60 के दशक में यह दस से पंद्रह करोड़ के बजट में बनी. परंतु इसे बनाने वाले निर्देशक के. आसिफ पूरी जिंदगी किराये के मकान में रहते रहे...
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Sanjeev Kumar: मुगल-ए-आजम (Mughal-E-Azam) बनाने के बाद निर्देशक के.आसिफ फिल्म इंडस्ट्री में सबसे बड़े निर्देशक बन चुके थे. इस शानदार फिल्म के बाद उन्होंने सस्ता खून महंगा पानी बनानी शुरू की. राजेंद्र कुमार और सायरा बानो को लेकर भव्य अंदाज में बन रही फिल्म बीच में अचानक रोक दी गई. के.आसिफ ने दूसरी फिल्म शुरू की. लव एंड गॉड (Film Love And God). उन दिनों संजीव कुमार नए थे. निम्मी (Actress Nimmi) उनकी हीरोइन बनी. फिल्म लैला-मजनूं की कहानी थी. शूटिंग के दौरान संजीव कुमार (Sanjeev Kumar) बीमार रहने लगे. शूटिंग में देरी हो रही थी. लेकिन आसिफ ने कहा कि वह संजीव कुमार के अलावा किसी अन्य एक्टर के साथ यह फिल्म नहीं बनाएंगे. आसिफ फिल्म में देरी या नुकसान पर ध्यान नहीं देते थे.
कार में लांग ड्राइव
शूटिंग के दौरान संजीव कुमार और के. आसिफ बहुत अच्छे दोस्त बन गए. वे एक-दूसरे के लिए आसिफ साहब और हरी भाई थे. वे शाम को मिलते थे और संजीव कुमार की कार में लांग ड्राइव (Long Drive) पर निकल जाते. एक दिन मुंबई के जुहू से गुजर रहे थे. उन दिनों वहां धर्मेंद्र (Dharmendra) और मनोज कुमार (Manoj Kumar) जैसे एक्टरों तथा जे.ओम. प्रकाश और मोहन कुमार जैसे फिल्म निर्माताओं ने जमीनें खरीद रखी थीं. उनके नोटिस बोर्ड लगे थे. वहां भविष्य में उनके बंगले बनाए जाने थे. तब संजीव कुमार ने के. आसिफ से पूछा कि आसिफ साहब आप क्यों यहां जमीन खरीदकर अपना बंगला बनाते हैं. तब के आसिफ ने सिगरेट का एक कश खींचा और कहा- हरी हम यहां बंगले बनाने नहीं, बहतरीन फिल्में बनाने आए हैं.
ऐसे गुजारी उम्र
के. आसिफ ने बंगला नहीं बनाया तो संजीव कुमार भी कभी बंगले में नहीं रहे. रोचक बात है कि ये दोनों ही महान हस्तियां किराये के अपार्टमेंट में रहती रहीं और वहीं कम उम्र में इनकी मृत्यु हुई. दोनों जुहू और बांद्रा जैसी जगहों पर किराए के मकान में रहते थे. दिलीप कुमार की बहन सईदा से शादी करने के बाद आसिफ सी ब्रीज नामक एक साधारण अपार्टमेंट में दो कमरों के मकान में रहते थे. वहीं, संजीव पेरिन विला नाम की एक पुरानी पारसी इमारत में रहते थे. जहां 1985 में उनकी मृत्यु मात्र 47 वर्ष की उम्र में हो गई. जबकि के. आसिफ 1971 में मात्र 48 साल की उम्र में गुजर गए थे. संजीव कुमार की मृत्यु के बाद उस अधूरी फिल्म को के.सी. बोकाड़िया ने पूरी करा के रिलीज कराया था.