कालेधन पर 'चोट' में उम्मीद की 'आहट'
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कालेधन पर 'चोट' में उम्मीद की 'आहट'

कालेधन पर 'चोट' में उम्मीद की 'आहट'

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संजीव कुमार दुबे

8 नवंबर की आधी रात केंद्र सरकार ने एक बड़ा ही अहम और अप्रत्याशित फैसला लेकर सबको चौंका दिया। एक ऐसा फैसला जिसकी किसी को भी उम्मीद नहीं थी। एक फैसला जिससे काफी कुछ बदलने लगा। ना जाने चंद दिनों में कितनी तब्दीलियां आ गई। और फिर कई लोग कहने लगे इससे कुछ नहीं होगा। कालेधन पर लगाम के लिए यह कदम नाकाफी है। लेकिन घंटों कतार में खड़े ज्यादातर लोगों ने यह भी कहा कि इससे भविष्य में हमें ही फायदा होगा। हालांकि इतना तो साफ है कि यह 500 और 1000 के नोटों को बाजार से हटाने के फैसले के पीछे कई वजहें हो सकती है जिसमें कालेधन का देश की भारतीय अर्थव्यवस्था में प्रवाह रोकना सबसे अहम माना जा रहा है।

मोदी सरकार के अचानक 500 और 1000 रुपए के नोट बंद करने के फैसले से सबसे बड़ा झटका काला धन रखने वालों को ही लगा है। यह अनुमान है कि सरकार के इस फैसले से एक ही झटके में सिस्टम से 3 से 4 लाख करोड़ रुपए का काला धन खत्म हो गया है। जानकारों का मानना है कि देश में ज्यादातर अवैध धंधे 500 और 1000 के नोटों से किए जाते हैं और इन नोटों का हिस्सा कुल प्रवाहमान नकदी में 80 फीसदी से ज्यादा है। देश की इकॉनोमी को समझने वालों की नजरों में सरकार का यह कदम बहुत सराहनीय और साहसिक है जिसके कई दूरगामी और बेहतर परिणाम आएंगे।
 
आरबीआई (रिजर्व बैंक ऑफ इंडिया) के मुताबिक देश में चल रही इंडियन करेंसी में इन दोनों तरह (500 और 1000 रुपए) के नोटों की कुल हिस्सेदारी तकरीबन 87 फीसदी है।  इस फैसले के ऐलान के सिर्फ 4 घंटे में देश की अर्थव्यवस्था से 15 लाख करोड़ रुपए की करेंसी बाहर हो गई। दूसरी तरफ भारत का जीडीपी करीब 138 लाख करोड़ रूपये है जिसका लगभग 11 फीसदी हिस्सा रियल एस्टेट सेक्टर से आता है और यहीं पर सबसे ज्यादा कालेधन का इस्तेमाल होता है। गौर हो कि भारत में रियल एस्टेट का कारोबार 14 लाख करोड़ रुपये से अधिक का है। यानी कालाधन सबसे ज्यादा इसी कारोबार में खपाया जाता रहा है।
 
सरकार के इस फैसले की आलोचना भी हो रही है। विपक्ष उसे घेरने की कोशिश में जुटा है। सरकार ने इन तमाम आरोपों को खारिज कर दिया है और कहा है कि यह कदम राष्ट्रीय हित में उठाया गया है व इससे देश में भ्रष्टाचार, कालाधन एवं आतंकवादी गतिविधियों पर लगाम लगेगी और दीर्घकाल में अर्थव्यवस्था को लाभ मिलेगा। सरकार के नुमाइंदे कहते हैं कि 500 रूपये और 1000 रूपये के नोटों को अमान्य करने के मोदी सरकार के फैसले का देश ने दिल खोलकर स्वागत किया है। इस फैसले से देश में ईमानदार का सम्मान हुआ है और बेईमानों का नुकसान हुआ है। इस कदम की वजह से कुछ परेशानी तो होनी ही थी लेकिन इसके बावजूद लोगों ने इस कदम का समर्थन किया है।

सरकार के इस फैसले की टाइमिंग पर सवाल भी उठाए जा रहे है। कुछ लोग यह तर्क देते हुए दिख रहे है कि 1978 में भी यह कवायद की गई थी जिसका लाभ नहीं हुआ। ऐसे लोगों को यह समझना चाहिए कि 1978 और 2016 के दौरान भारत की आर्थिक स्थिति में जमीन-आसमान का फर्क आ चुका है। 1978 में हमारे देश की अर्थव्यवस्था उतनी उन्नत नहीं थी जितनी आज है। यह वो दौर था जब डिजीटल इंडिया की सुगबुगाहट भी नहीं थी। 2016 में हम एक डिजीटल युग में जी रहे हैं जहां कई चीजें ऑनलाइन हो चुकी है। देश की अर्थव्यवस्था में ऑनलाइन की भूमिका अहम हो चुकी है।
 
अगर आप पिछले कुछ महीने की सरकारी कवायद पर गौर करे तो ऐसा होने को लेकर सरकार ने साफ संदेश दे दिया था।  देश में  सबसे पहले जन-धन-योजना के तहत देश भर में बैंक खातों को खोलने का अभियान चलाया गया। इसकी बाद दूसरी मुहिम के तहत लोगों के बैंक अकाउंट को आधार कार्ड से लिंक करने की मुहिम चलाई गई और जोड़ा गया। फिर सरकार ने इनकम टैक्स रिटर्न में बैंक अकाउंट, आधार कार्ड और पासपोर्ट के बारे में जानकारी देने के लिए कहा गया। इसके बाद अपने काले धन को सार्वजनिक करने की योजना चलाई गई और लोगों से कहा गया कि वो 30 सितंबर 2016 तक बिना किसी पेनल्टी के अपने काले धन के बारे में सरकार को सूचित कर सकते हैं।

दूसरी बात यह है कि देशहित में कोई भी बड़ा फैसला चुटकियों में नहीं लिया जाता। उसके लिए पूरी योजना बनानी होती है, कई सारी तैयारियां करनी पड़ती है। वैसे भी जब मसला काले धन से जुड़ा हुआ हो तो उसे अचानक ही करना पड़ता है ताकि ब्लैक मनी रखने वाले लोगों को तनिक भी मौका ना मिले। जब ऐसे फैसले लिए जाते हैं तो देश की जनता को कुछ वक्त तक तकलीफों का सामना करना पड़ता है। लेकिन इसे लेकर धैर्य रखने की जरूरत है और यह भी तय है कि कुछ समय बाद हालात पहले की तरह हो जाएंगे और भविष्य में इसका फायदा तो देश और आम जनता को ही होनेवाला है। हमें यह भी नहीं भूलना चाहिए कि हम उस देश में रहते हैं जहां 125 करोड़ की आबादी रहती है।

सवा अरब की आबादी में कठोर फैसले जब लिए जाते है तब कुछ दिनों तक थोड़ी बहुत तकलीफ होगी जिसमें झेलने के लिए हमें तैयार भी रहना चाहिए। अगर फैसले में बेहतरी की गूंज सुनाई देती हो तो उसका स्वागत किया जाना चाहिए। कालेधन पर चोट से अगर अर्थव्यवस्था का काला साया हटकर एक बेहतर स्वरूप में विकसित होता है तो यह यकीनन देश के हित मे किया गया फैसला है।  

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