Vinay Patrika Tulsidas: विनय पत्रिका तुलसीदास रचित एक ग्रंथ है. यह ब्रज भाषा में रचित है. इसमें विनय के पद हैं. विनय पत्रिका में 21 रागों का प्रयोग हुआ है और इसमें सम्मलित पदों की संख्या 279 है.
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Vinay Patrika ke Pad: विनय पत्रिका तुलसीदास के 279 स्तोत्र गीतों का संग्रह है. इसमें जितने भी देवी-देवताओं के स्तोत्र और पद आते हैं, सभी में उनका गुणगान करके राम की भक्ति की याचना की गई है. विनय पत्रिका में गोस्वामी तुलसीदास लिखते हैं कि रण में हल्ला करने वाले हनुमान जी का जो सेवक है, वह सदा निर्भय रहता तथा आनन्द मंगलमय विजय-लाभ करता है.
पद
ताकि है तमकि ताकी ओर को।
जाको है सब भाँति भरोसो कपि केसरी-किसोर को॥
जन-रंजन अरिगन-गंजन मुख-भंजन खल बरजोर को।
वेद-पुरान-प्रगट पुरुषारथ सकल-सुभट-सिरमोर को॥
उथपे-थपन, थपे उथपन पन, बिबुध बृन्द बंदिछोर को।
जलधि लाँघि दहि लंक प्रबल बल दलन निसाचर घोर को॥
जाको बाल-विनोद समुझि जिय डरत दिवाकर भोर को।
जाकी चिवुक चोट चूरन किय रद-मद कुलिस कठोर को॥
लोकपाल अनुकूल विलोकिबो चहत विलोचन-कोर को।
सदा अभय, जय, मुद-मंगलमय जो सेवक रनरोर को॥
भगत-काम तरु नाम राम परिपूरन चंद चकोर को।
तुलसी फल चारों करतल जस गावत गई बहोर को॥
व्याख्या
तुलसीदास जी कहते हैं कि जिसे सब प्रकार से केशरी-कुमार हनुमान जी का ही भरोसा है, उनकी ओर होकर कौन देखेगा?
भक्तों को प्रसन्न करने, शत्रुओं का संहार करने तथा दुष्टों का मुंह तोड़ने योग्य बलवान् और कौन है? इनका पुरुषार्थ वेदों और पुराणों में प्रकट है. सब शूरवीरों में शिरोमणि इनके समान और कौन है?
गोस्वामी तुलसीदास कहते हैं कि इनके सिवा उखड़े हुए लोगों को राज्य सिंहासन पर स्थापित करने वाला, सिंहासन पर स्थित महा बलवान राजाओं को राज्यच्युत करने वाला, प्रणपूर्वक बन्दी देवताओं को छुड़ाने वाला कौन है? समुद्र लांधकर लंका को जलाने वाला तथा बड़े बलवान एवं भयानक राक्षसों का नाश करने वाला कौन है?
जिनके बाल-विनोद का मन ही मन स्मरण करके अब भी प्रातःकालीन सूर्य डरा करते हैं और जिनकी ठुड्डी की चोट ने कठोर बज्र के दांतों का घमंड चूर कर दिया था, ऐसा और कौन है?
लोकपाल भी उन हनुमानजी की कृपा दृष्टि चाहा करते हैं. रण में हल्ला करने वाले हनुमान जी का जो सेवक है, वह सदा निर्भय रहता तथा आनन्द मंगलमय विजय-लाभ करता है.
पूर्णचन्द्रवत् श्रीराम जी की मुखच्छवि को चकोर की भांति निहारने वाले हनुमान जी का नाम भक्तों के लिए कल्पवृक्ष के समान है. हे तुलसीदास, गई हुई वस्तु को फिर से दिला देने वाले श् रीहनुमान जी का जो यश गाता है, उसकी हथेली पर चारों फल (अर्थ, धर्म, काम, मोक्ष) धरे रहते हैं.