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Dhanteras 2022: धनतेरस हर साल कार्तिक मास के कृष्णपक्ष की त्रयोदशी तिथि में मनाया जाता है. दिवाली से पहले आने वाले इस पर्व को लेकर हिन्दू समुदाय में विशेष आस्था होती है. धनतेरस के दिन खरीदारी के साथ पूजा-पाठ का विशेष ख्याल रखा जाता है. धनतेरस के दिन यम के नाम से भी दीपक निकाला जाता है. लगभग सभी घरों में यम का दीपक निकालने की परंपरा प्राचीन काल से चली आ रही है. लेकिन क्या आपको पता है आखिर धनतेरस के दिन मृत्यु के देवता यम के नाम से दीपक क्यों जलाया जाता है. इसके पीछे एक पौराणिक कथा छिपी है, आइये आपको इसके बारे में विस्तार से बताते हैं.
दक्षिण दिशा का ध्यान रखना जरूरी
पहले ये जान लेना जरूरी है कि धनतेरस के दिन यम की साधना धार्मिक दृष्टि से बेहद जरूरी है. यम के लिए आटे का चौमुखा दीपक बनाकर घर के मुख्य द्वार पर दक्षिण दिशा में रखा जाता है.
यम दीपक जलाकर करें इस मंत्र का जाप
यम का दीपक जलाते समय ‘मृत्युनां दण्डपाशाभ्यां कालेन श्यामया सह. त्रयोदश्यां दीपदानात् सूर्यजः प्रीयतां मम्’. मंत्र का जाप करना चाहिए है.
यम की पूजा से जुड़ी पौराणिक कथा
एक बार यम ने अपने दूतों से पूछा कि क्या तुम्हे प्राणियों के प्राण हरते समय किसी पर दया आती है? यमदूतों ने संकोच में कहा नहीं महाराज. तब यमराज ने उन्हें अभयदान देते हुए कहा डरो नहीं सच-सच बताओ. तब यमदूतों ने बताया कि एक बार उनका दिल किसी के प्राण लेते वक्त वाकई में डर गया था. दूतों ने यम को बताया कि एक बार हंस नाम का राजा शिकार के लिए गया और भटककर दूसरे राज्य की सीमा में चला गया. उस राज्य के शासक हेमा ने राजा हंस का बड़ा सत्कार किया. उसी दिन राजा हेमा की पत्नी ने एक पुत्र को जन्म दिया था. ज्योतिषियों ने नक्षत्र गणना करके बताया कि यह बालक विवाह के चार दिन बाद मर जाएगा. राजा हंस के आदेश से उस बालक को यमुना के तट पर एक गुफा में ब्रह्मचारी के रूप में रखा गया और आदेश दिया गया कि उस तक किसी स्त्री की छाया तक न पहुंचने पाये.
कैसे हुई राजकुमार की मृत्यु?
विधि का विधान अडिग है. एक दिन राजा हंस की युवा बेटी यमुना के तट पर गई और उसने उस ब्रह्मचारी बालक से गंधर्व विवाह कर लिया. विवाह के चौथे दिन ही राजकुमार की मृत्यु हो गई. दूतों ने कहा महाराज हमने ऐसी सुंदर जोड़ी कभी नहीं देखी थी और उस महिला का विलाप देखकर हमारे आंसू भी निकल आये थे.
फिर यम ने बताया अकाल मृत्यु से बचने का उपाय
यमराज ने कहा, ‘धनतेरस के पूजन एवं दीपदान को विधिपूर्वक पूर्ण करने से अकाल मृत्यु से छुटकारा मिलता है. जिस घर में यह पूजन होता है, वहां अकाल मृत्यु का भय खत्म हो जाता है. जिसके बाद से अनंत काल के लिए धनतेरस के दिन धन्वन्तरि पूजन सहित दीपदान की प्रथा का प्रचलन शुरू हुआ.
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(Disclaimer: यहां दी गई जानकारी सामान्य मान्यताओं और जानकारियों पर आधारित है. ZEE NEWS इसकी पुष्टि नहीं करता है.)