Ekadashi Vrat Katha: देवउठनी एकादशी पर बन रहे 2 विशेष संयोग, जानें शुभ मुहूर्त और पारण का समय; पढ़ें व्रत कथा
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Ekadashi Vrat Katha: देवउठनी एकादशी पर बन रहे 2 विशेष संयोग, जानें शुभ मुहूर्त और पारण का समय; पढ़ें व्रत कथा

Devuthani Ekadashi 2024 Vrat Katha: इस बार देवउठनी एकादशी पर 2 शुभ योग भी बन रहे हैं, जिसकी वजह से इस बार यह दिन बेहद खास होने जा रहा है. इस दिन आप जो भी काम शुरू करेंगे, उसमें सफलता मिलने की संभावना बलवती रहेगी. 

 

Ekadashi Vrat Katha: देवउठनी एकादशी पर बन रहे 2 विशेष संयोग, जानें शुभ मुहूर्त और पारण का समय; पढ़ें व्रत कथा

Devuthani Ekadashi 2024 Shubh Muhurta: देवउठनी एकादशी का व्रत 12 नवंबर दिन मंगलवार को है. इस दिन भगवान विष्णु की पूजा सर्वार्थ सिद्धि योग और ​रवि योग में होगी. श्री कल्लाजी वैदिक विश्वविद्यालय के ज्योतिष विभागाध्यक्ष डॉ. मृत्युञ्जय तिवारी से जानते हैं देवउठनी एकादशी की व्रत कथा, पूजा मुहूर्त, शुभ योग आदि के बारे में.

इस साल देवउठनी एकादशी 12 नवंबर यानी मंगलवार को होगी. कहते हैं कि भगवान विष्णु अपने 4 महीने की योग निद्रा के बाद इस दिन से जाग जाते हैं. इसके साथ ही सनातन धर्म में सारे शुभ कार्य शुरू हो जाते हैं. इस बार यह दिन इसलिए खास होने जा रहा है क्योंकि दो शुभ योग भी बन रहे हैं. जिसके प्रभाव में आप जो भी शुभ कार्य शुरू करेंगे, उसमें सफलता मिलने की संभावना बलवती होगी. आइए आपको इन दो शुभ योगों के साथ ही देवउठनी एकादशी की व्रत कथा, शुभ मुहूर्त और पारण के बारे में विस्तार से बताते हैं. 

ज्योतिष शास्त्रियों के मुताबिक इस बार देवउठनी एकादशी पर रवि योग और सर्वार्थ सिद्धि योग भी बन रहे हैं. लिहाजा इस बार एकादशी के बाद से हर काम शुभ ही शुभ होने जा रहे हैं. इस साल देवउठनी एकादशी के साथ तुलसी भी है, इसलिए विधि विधान के साथ मंगलवार को पूजा करने पर उसके तमाम पुण्य फल मिलेंगे. 

देवउठनी एकादशी 2024 का शुभ मुहूर्त 

इस बार कार्तिक शुक्ल एकादशी तिथि का शुभारंभ 11 नवंबर सोमवार को शाम 6:46 बजे से शुरू होकर समापन 12 नवंबर मंगलवार को शाम 4.04 बजे तक होगा. इस दौरान मंगलवार को सुबह सुबह 6:42 बजे से सुबह 7:52 बजे तक रवि योग रहेगा. जबकि सोमवार सुबह 7:52 बजे से 13 नवंबर को सुबह 5:40 बजे तक सर्वार्थ सिद्धि योग रहेगा. 

देवउठनी एकादशी व्रत का पारण समय

देवउठनी एकादशी व्रत का पारण 13 नवंबर को होगा. इसका पारण समय 13 नवंबर को सुबह 6:42 बजे से 8:51 बजे तक रहेगा. जबकि द्वादशी तिथि का समापन 13 नवंबर को दोपहर 1:01 बजे हो जाएगा. 

देवउठनी एकादशी व्रत की कथा

पौराणिक कथा के मुताबिक, एक जमाने की बात है. एक नगर में, सभी निवासी विधि विधान के साथ एकादशी का व्रत किया करते थे. उस दिन वे किसी भी जीव को अन्न का दान तक नहीं करते थे. राजा भी स्वयं इस नियम का पालन करते थे. एक बार राजा के दरबार में बाहरी व्यक्ति काम की उम्मीद लेकर पहुंचे. उसकी प्रतिभा देकर राजा ने नौकरी देने की हामी तो भर ली लेकिन साथ ही कहा कि महीने में दो दिन एकादशी पर उसे अन्न नहीं मिलेगा. 

उस व्यक्ति ने यह शर्त स्वीकार कर लिया. जब अगले महीने एकादशी आई तो उसे अन्न नहीं दिया गया और उसे केवल फलाहार करके रहना पड़ा. इससे उसका पेट नहीं भरा और वह चिंतित हो उठा. उसने राजदरबार में पहुंचकर उसे पूरे महीने अन्न देने की गुहार लगाई. उसके आग्रह को स्वीकार कर राजा ने उसे अन्न देने का आदेश जारी कर दिया. उसे राजमहल के प्रबंधकीय कक्ष से चावल, दाल और आटा दिया गया. 

आह्वान पर भोजन के लिए पहुंचे भगवान विष्णु

उसने नदी के किनारे जाकर पहले स्नान किया. इसके बाद भोजन तैयार प्रभु की आराधना की और भगवान विष्मु का आह्वान करते हुए कहा कि भोजन तैयार है, कृप्या ग्रहण करें. इतना सुनते ही भगवान विष्णु प्रकट हुए तो वह हैरान रह गया. लेकिन चूंकि उसने स्वयं ही आह्वान किया था. लिहाजा उसने प्रभु को भोजन परोसा और उसके बाद स्वयं खाया. इसके बाद भगवान विष्णु अंतर्ध्यान हो गए. 

अगले दिन वह व्यक्ति राज दरबार पहुंचा और पिछले दिन की घटना बताते हुए दोगुना अन्न देने की मांग की. उसकी मांग सुनकर राजा हैरानी में पड़ गया. उसे समझ नहीं आया कि क्या वाकई ऐसा हो सकता है. उसे असमंजस में देखकर व्यक्ति ने कहा कि वे स्वयं जाकर यह नजारा देख सकते हैं. इसके बाद राजा ने उसे दोगुना अन्न दिलवा दिया और साथ ही उसके पीछे-पीछे भी चल दिया. 

भगवान कर्मकांड के नहीं बल्कि भक्तिभाव के भूखे

वह व्यक्ति फिर से उसी नदी किनारे पहुंचा और स्नान के पश्चात भोजन तैयार किया. इसके बाद उसने फिर से भगवान विष्णु का आह्वान किया लेकिन वे नहीं आया. कई बार बुलाने के बावजूद जब वे नहीं आए तो उस व्यक्ति ने कहा कि अगर आप नहीं आएंगे तो वह नदी में कूदकर जान दे देगा. इसके साथ ही वह नदी में कूदने के लिए चल पड़ा. उसी दौरान भगवान विष्णु प्रकट हुए और उसे बचा लिया.

इसके बाद प्रभु ने उस व्यक्ति के साथ बैठकर भोजन ग्रहण किया. फिर उस व्यक्ति को अपने विमान पर बिठाकर बैकुंठ लोक ले गए. झाड़ियों के पीछे से यह सारा नजारा देख रहा राजा समझ गया कि भगवान कर्मकांड के नहीं बल्कि भक्तिभाव के भूखे हैं. जो सच्चे मन से उनकी आराधना करेगा, वे उसके लिए जरूर आएंगे. इसके बाद राजा भी पूरी तरह आध्यात्मिक हो गया और एकादशी व्रत और विष्णु पूजा करने लगा. मृत्यु होने पर उसकी आत्मा को भी मोक्ष की प्राप्ति हुई और वह स्वर्ग को पहुंचा. 

(Disclaimer: यहां दी गई जानकारी सामान्य मान्यताओं और जानकारियों पर आधारित है. ZEE NEWS इसकी पुष्टि नहीं करता है.)

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