Priyanka Gandhi: महिला अधिकार सम्मेलन में प्रियंका गांधी वाड्रा का संबोधन
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Priyanka Gandhi: महिला अधिकार सम्मेलन में प्रियंका गांधी वाड्रा का संबोधन

Priyanka Gandhi Vadra: आज से 32 साल पहले, अपनी ज़िंदगी की सबसे अंधियारी रात में मैंने तमिलनाडु की ज़मीन पर पहली बार पांव रखा था. मैं तब 19 बरस की थी और आज जिस उम्र में हूं; तब मेरी मां उससे कुछ साल कम की थीं.

Priyanka Gandhi: महिला अधिकार सम्मेलन में प्रियंका गांधी वाड्रा का संबोधन

Priyanka Gandhi Vadra: आज से 32 साल पहले, अपनी ज़िंदगी की सबसे अंधियारी रात में मैंने तमिलनाडु की ज़मीन पर पहली बार पांव रखा था. मैं तब 19 बरस की थी और आज जिस उम्र में हूं; तब मेरी मां उससे कुछ साल कम की थीं. जैसे ही हवाई जहाज का दरवाजा खुला, हम रात के अंधेरे में डूब गए. लेकिन मुझे डर नहीं लगा. क्योंकि सबसे भीषण जो हो सकता था वह हो चुका था.

कुछ घंटे पहले मेरे पिता की हत्या कर दी गई थी. उस रात मैं अपनी मां के पास गयी. मैं जानती थी कि जो शब्द मैं उनसे कहने वाली हूं वे हमेशा के लिये मां का दिल तोड़ कर रख देंगे. मैंने वे शब्द कहे और ख़ुशी की रौशनी को उनकी आंखों में हमेशा के लिए बुझते देखा.

अब, जब पिता के क्षत-विक्षत शरीर के हिस्से इकठ्ठे करने के लिये मैं तमिलनाडु में थी, मुझमें किसी बात का कोई भय नहीं बचा था. हवाई जहाज की सीढ़ियां उतर कर हम मीनांबकम हवाई अड्डे की ज़मीन पर खड़े थे – अवसन्न और अकेले.

तभी अचानक नीली साड़ियां पहने हुई स्त्रियों के झुंड ने हमें घेर लिया. जीवन के युद्ध में हमारी पराजय को रोक न पाने वाले देवताओं ने ही शायद उन्हें हमें दिलासा देने भेजा था. वे हवाई अड्डे पर काम करने वाली स्त्रियां थीं. उन्होंने मेरी मां को बाहों में भर लिया और उनके शोक में विलाप करने लगीं, जैसे वे सभी मेरी मांएं हों, जैसे उन्होंने भी अपने जीवनसाथी को खो दिया हो. दर्द की साझेदारी के उन आंसुओं ने मेरे दिल को तमिलनाडु की स्त्रियों के साथ एक डोर में बांध दिया. इस रिश्ते को मैं कभी मिटा नहीं सकती; कभी इसकी व्याख्या भी नहीं कर सकती.

आप सब मेरी मांएं हैं. मेरी बहनें हैं. यहां आकर और आप सबके बीच अपने-आपके बारे में – भारत की स्त्रियों के बारे में, दो बातें कहने का मौक़ा पाकर मैं बहुत सम्मानित हुई हूं.

मैं आपको यह याद दिलाने आयी हूं कि हम स्त्रियां शक्ति हैं इस आत्मसम्मानी और ख़ूबसूरत राष्ट्र की – जिसे हम अपनी मातृभूमि कहते हैं.

चाहे हम अमीर हैं या ग़रीब, हम महानगरों के नागरिक हैं या छोटे क़स्बों या गांवों में रहते हैं, हम सुशिक्षित हैं या हमने अवसरों के अभाव का सामना किया है, हम असल में इमारत की बुनियाद हैं, जिसकी मज़बूती के भरोसे पर परिवारों और समाजों की इमारतें ईंट-दर-ईंट खड़ी हुआ करती हैं. हमारे ही

कंधे समाज के भार का निर्वाह करते हैं. पूरी गरिमा और साहस के साथ हम इस बोझ को उठाते हैं.

वंचना और तकलीफ़ को सह जाने की असीम क्षमता के दम पर हमने सब कुछ को अपने तप और इच्छाशक्ति से निभाया है. अपनी इन शक्तियों पर हमें गर्व है – जो पीढ़ी दर पीढ़ी अन्याय और उत्पीड़न का सामना करते हुए हमारी हड्डियों में ढल गयी हैं.

लेकिन मेरी बहनो ! मैं आपको यह बताने आयी हूं कि हम इससे कहीं ज़्यादा हैं. तकलीफ़ को बर्दाश्त कर जाने की क्षमता से कहीं ज़्यादा हैं हम.

हम ही वह हैं जो परवरिश करती हैं, थामे रहती हैं, और जो बच्चों और अपने इर्द-गिर्द के सबकुछ को हमेशा बनाती-बढ़ाती है. हमीं साहस की शिक्षा देती हैं. हमीं प्यार करना सिखाती हैं.

हमें ही क्षमा का सही मतलब आता है, विपत्ति के सामने निर्भय-निस्संग खड़े हो जाना हमीं जानती हैं.

अपने महादेश को विकास के पथ पर ले जाने वाली कार्यशक्ति हैं हम. बेहतर भविष्य के स्वप्न को आँखों और दिलों में संजोये लाखों-करोड़ों नवयुवतियाँ भी हम ही हैं.

हमीं जानते हैं कि अंधियारी रात के भीतर से भी, सुबह पर दावा ठोंकती हुई भोर की तरह कैसे उगा जाता है. हममें से हरेक में सूरज से तेज चमकने वाली रौशनी है, बेशक़ उस रौशनी को ख़ुद से पूरम्पूर चमक उठने की आज़ादी और ख़ुशी आज तक मिली नहीं.

एक सदी पहले, पेरियार ने पूछा था : स्त्री पराधीन क्यों है ?

और तब इस सवाल का जवाब भी उन्होंने ही स्त्री की आर्थिक और सामाजिक ग़ुलामी की बात करने वाले अपने क्रांतिकारी निबंधों की एक श्रृंखला में ही ढूंढा था. उन्होंने ही तमिलनाडु में स्त्री सशक्तीकरण की बुनियाद रखी, जिसे अन्नादुराई जी और करूणानिधि जी जैसे नेताओं ने आगे बढ़ाया.

बहनो ! आप तमिलनाडु की स्त्रियों की इस शक्ति ने देश-भर की औरतों को मुक्ति और विकास का रास्ता दिखलाया है.

लेकिन आज भी हमलोग विकास की सतह के नीचे पितृसत्ता द्वारा किये जा रहे स्त्री के व्यवस्थाबद्ध उत्पीड़न के भयावह यथार्थ से लड़ रहे हैं.

दरअसल आज – पेरियार के निबंधों के प्रकाशन के सौ साल बाद भी – वह सवाल और बड़ा होकर हमारे सामने खड़ा है.

औरत ग़ुलाम क्यों है ?

मेरे पास पेरियार का अनुभव, उनकी प्रज्ञा और वैसा कद नहीं है, लेकिन उनके सवाल का एक अपना जवाब है.

मैं स्त्री हूं.

पीढ़ी दर पीढ़ी, हमें सिखाया गया कि अपनी शक्ति दूसरों को सौंप दो. विनम्रता से बात करो, बीच में से हटकर कोने में खड़ी हो जाओ, अपने स्वत्व को लेकर शर्मिंदा रहो. अपनी प्रति करुणा दिखाने से पहले दूसरों का ध्यान दो. अभाग्यवश, ये पाठ हमने बहुत ध्यान से पढ़े और इतने क़ायदे से पढ़े कि उन्हें पार करके उनसे भी आगे निकल गये.

हमने अपना मूल्यांकन हमेशा उस नज़रिये से किया जो वर्चस्वशाली सत्ता ने हमारी नसों में रोपा था. ऐसा करके हमने अपने ही दमन और उत्पीड़न को मान्यता दे दी. हम भूल गये कि बराबरी का अधिकार और निजता की गरिमा – ये चीज़ें कोई उपहार या सुखाधिकार नहीं हैं, वह जीवन का नैसर्गिक स्वीकार हैं – इस सच्चाई को न मान पाने की कमज़ोरी में ही हर क़िस्म के दमन और उत्पीड़न की जड़ें हैं – वह भेदभाव चाहे रंग का हो, पंथ का हो, जाति का हो या लिंग का.

आज, ‘सशक्तीकरण’ के बारे में बहुत चर्चा हो रही है, क्योंकि हर राजनीतिक दल को यह एहसास होने लगा है कि महिलाएं एक ऐसी अपराजेय सामूहिक शक्ति बन सकती हैं, जो हमारे देश के भविष्य को आकार देगी.

लेकिन वह, आज भी हमारी तरफ लालच की नजर से देखते हैं. वोटों का लालच, हमारी शक्ति पर कब्जा करने और उसका इस्तेमाल करके हमें ही नीचे रखने का लालच.

मेरी बहनों, मैं आज आपकी तरफ से और अधिक की मांग कर रही हूं. मैं मांगती हूं कि हम ख़ुद अपनी शक्ति के मालिक हों.

मैं महिला आरक्षण विधेयक को तत्काल लागू करने की मांग करती हूं. हम, भारत की महिलाओं के पास अब बर्बाद करने के लिए समय नहीं है. राजनीतिक प्रक्रिया में शामिल होना हमारा अधिकार है.

मैं मांग करती हूं कि हमारे “स्वत्व” का महत्व समझा जाये और अपने सशक्तिकरण के लिए एक राजनीतिक शक्ति के रूप में हमारे महत्व का सम्मान किया जाये.

मैं मांग करती हूं कि दिन-ब-दिन हमारे खिलाफ होने वाले अन्याय के प्रति अपनी सहनशीलता का महिमामंडन हम बंद कर दें.

मैं हर उस सामाजिक, धार्मिक या राजनीतिक व्यवस्था को ख़ारिज करने की मांग करती हूं जो हमारे उत्पीड़न पर पनपती है और हमें उसके साथ समझौता करने के लिए मजबूर करती है.

प्रत्येक महिला के पास अपनी शक्ति को अभिव्यक्त करने और मूर्त रूप देने का अधिकार है और उसे इसका प्रयोग करने की स्वतंत्रता होनी चाहिए.

आप मानवता का सार हैं. आपमें से हर कोई चाहे जहां हों, आप अपने जीवन को बदलने की शक्ति रखती हैं, लेकिन केवल तभी, जब आप अपने बहनापे

और एकजुटता की असीम शक्ति को गहराई से समझती हों. केवल तभी, जब आप एक-दूसरे के साथ आने, एक-दूसरे की मदद करने, एक-दूसरे को थामने और सबके साथ आगे बढ़ने का महान मूल्य देखती हों.

मेरी बहनों, जब हम एक साथ खड़े होंगे तो महिलाओं की शक्ति को कोई रोक नहीं सकेगा.

हम इस देश की आधी आबादी हैं – आधी – आधे से कम नहीं.

जाति, धर्म, राज्य, भाषा और समाज की बाधाओं को दूर करना हमारा कर्तव्य है. यह हमारे लिए सबसे पहली और सबसे ज़रूरी बात है कि हम खुद के बहनापे को उस रूप में पहचानें, जो हमें परिवर्तन के एक सूत्र में बांध दे.

आज हम यहां एक ऐसे नेता – करुणानिधि जी की स्मृति में खड़े हैं, जो महिलाओं की शक्ति को समझते थे.

आइए हम एक नई सुबह के लिए जागें. आइए, हम अपनी नियति का निर्माण स्वयं करें.

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