Indian Railways Hyperloop: हाइपरलूप दुनिया में ट्रांसपोर्टेशन के तरीके को पूरी तरह बदलने वाली तकनीक है. यह वैक्यूम ट्यूब और चुंबकीय तकनीक का उपयोग कर बेहद तेज गति से यात्रा करने में सक्षम है. भारत में हाइपरलूप का सपना अब हकीकत बनने की ओर है. यहां जानिए इस नई तकनीक के बारे में विस्तार से.
हाइपरलूप एक हाई-स्पीड परिवहन प्रणाली है, जिसमें पॉड्स को वैक्यूम ट्यूब के भीतर चुंबकीय तकनीक पर चलाया जाता है. इस तकनीक में घर्षण और वायुगतिकीय दबाव नहीं होता, जिससे पॉड्स 1100 किमी प्रति घंटे तक की रफ्तार पकड़ सकते हैं. इस प्रणाली में ऊर्जा खपत बेहद कम होती है और यह लगभग शून्य प्रदूषण पैदा करती है.
भारतीय रेलवे ने आईआईटी मद्रास के साथ मिलकर देश का पहला हाइपरलूप टेस्ट ट्रैक तैयार किया है. रेल मंत्री अश्विनी वैष्णव ने इस ट्रैक का वीडियो साझा किया, जिसमें भारत के हाई-स्पीड ट्रांसपोर्टेशन के प्रति प्रतिबद्धता को दिखाया गया. यह प्रोजेक्ट भारत को इस तकनीक के विकास में अग्रणी बना सकता है.
भारत में पहला हाइपरलूप प्रोजेक्ट मुंबई और पुणे के बीच प्रस्तावित है. मौजूदा समय में यह दूरी 3-4 घंटे में तय होती है, जबकि हाइपरलूप के जरिए यह सफर मात्र 25 मिनट में पूरा हो जाएगा. इससे न केवल समय की बचत होगी, बल्कि दोनों शहरों के बीच कनेक्टिविटी भी बेहतर होगी.
हाइपरलूप पॉड्स 600 किमी से 1100 किमी प्रति घंटे की स्पीड तक चल सकते हैं. इसका ऑपरेशनल स्पीड 360 किमी प्रति घंटे होगी. यह तकनीक यात्रियों को नॉनस्टॉप सफर का अनुभव देगी, जहां एक बार पॉड में बैठने के बाद सीधे मंजिल पर पहुंचा जा सकेगा.
हाइपरलूप की सबसे बड़ी खासियत इसकी पर्यावरण के अनुकूल तकनीक है. इसमें प्रदूषण न के बराबर होता है, और बिजली की खपत बहुत कम होती है. इसकी तेज रफ्तार से न केवल यात्रा का समय कम होगा, बल्कि यह हाईवे और हवाई अड्डों पर भीड़भाड़ को भी कम करेगा.
अमेरिका, नीदरलैंड्स, UAE और कनाडा जैसे देश हाइपरलूप प्रोजेक्ट्स पर तेजी से काम कर रहे हैं. दुबई और अबू धाबी के बीच हाइपरलूप की योजना है, जिससे सफर का समय 1.5 घंटे से घटकर केवल 12 मिनट हो जाएगा. कई कंपनियां जैसे वर्जिन हाइपरलूप और हाइपरलूप टीटी इस तकनीक को विकसित करने में जुटी हैं.
हाइपरलूप का विचार पहली बार 2013 में एलन मस्क ने पेश किया था. उनका उद्देश्य लॉस एंजेलिस से सैन फ्रांसिस्को के बीच एक तेज और किफायती परिवहन साधन तैयार करना था. इस प्रोजेक्ट ने दुनिया भर में ट्रांसपोर्टेशन में क्रांति लाने की उम्मीद जगाई.
भारत का पहला हाइपरलूप टेस्ट ट्रैक 410 किमी लंबा है. इस ट्रैक पर भारतीय रेलवे और आईआईटी मद्रास के वैज्ञानिकों ने मिलकर काम किया है. यह ट्रैक भारत को हाइपरलूप तकनीक में आत्मनिर्भर बनने की दिशा में एक बड़ा कदम है.
हाइपरलूप ट्रेन का किराया हवाई यात्रा के बराबर हो सकता है, लेकिन इसकी तेज गति और आरामदायक सफर इसे एक बेहतर विकल्प बनाती है. अगर हाइपरलूप की शुरुआत होती है, तो यह फ्लाइट और बुलेट ट्रेन के मुकाबले लोगों की पहली पसंद बन सकता है.
हाइपरलूप तकनीक से भारत में न केवल ट्रांसपोर्टेशन की दिशा बदलेगी, बल्कि यह देश को एक नई तकनीकी ऊंचाई पर ले जाएगी. अगर यह प्रोजेक्ट सफल होता है, तो हाइपरलूप भविष्य का सबसे तेज, सुरक्षित और पर्यावरण के अनुकूल परिवहन साधन बन जाएगा.
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