हर देश के नागरिक को तब बहुत फख्र होता है जब हर साल उनका स्वतंत्रता दिवस आता है. लोग अपने देश की उन महान हस्तियों को याद करने लगते हैं जिन्होंने देश को आजाद कराने के लिए अपना बलिदान किया, जंगें लड़ी, जेल गए, खून बहाया और फांसी चढ़ गए. लगभग हर देश के नागरिकों का सपना आजाद हवा में सांस लेना और खुलकर अपने देश में जीना होता है लेकिन क्या आप जानते हैं कि एक देशा ऐसा भी है जो आजाद ही नहीं होना चाहता था और उसे जबरदस्ती आजादी दी गई. इस देश का नाम है सिंगापुर. तो चलिए जानते हैं कि आखिर सिंगापुर आजाद क्यों नहीं होना चाहता था.
सिंगापुर आजादी नहीं चाहता था उसे मजबूरी में स्वतंत्रता हासिल करनी पड़ी और इसकी आजादी की कहानी बहुत अलग, दिलचस्प है. सिंगापुर का इतिहास मध्यकाल से शुरू होता है, जब एक दलदल वाले द्वीप पर पहले लोगों को बसना शुरू हुआ. यह द्वीप मलय प्रायद्वीप के दक्षिणी सिरे पर मौजूद था जो रणनीतिक नजरिये से बहुत अहम था. 19वीं सदी तक यह द्वीप ब्रिटिश साम्राज्य के ध्यान में आया और ब्रिटिशों ने इसे अपने व्यापारिक रास्तों को कंट्रोल करने के लिए कब्जा कर लिया. सिंगापुर दूसरे विश्व युद्ध के दौरान जापान के कब्जे में भी था लेकिन इसके बाद यह ब्रिटिश उपनिवेश बना रहा.
ब्रिटिश शासन खत्म होने के बाद दक्षिण-पूर्व एशिया के देशों ने मिलकर 1963 में 'मलेशिया' नामक एक संघ बनाने का फैसला लिया. इसका मकसद आर्थिक स्थिति सुधारना और सामूहिक रक्षा व्यवस्था बनाना था, खासकर जब पूरी दुनिया में साम्यवादी शासन फैलने का खतरा था. साम्यवाद एक शीत युद्ध था और दुनिया भर के कई नव स्वतंत्र राष्ट्र तेजी से मार्क्सवादी शासनों के तहत होते जा रहे थे.
हालांकि जब मलेशिया के गठन के बाद चुनाव हुए तो सिंगापुर की राजनीति ने संकट पैदा किया. क्योंकि मलेशिया की मुख्य पार्टी 'यूनीटेड मलेज़ नेशनल ऑर्गनाइजेशन' (UMNO) एक मलेय-बहुल राष्ट्र बनाना चाहती थी. यह स्थिति तनावपूर्ण हो गई क्योंकि सिंगापुर के नेता ली कुआन यू मलेशियाई शासन के खिलाफ थे और अपनी पार्टी 'पीपल्स एक्शन पार्टी' (PAP) के लिए समर्थन जुटा रहे थे. जबकि यहां रहने वाले लाखों नागरिक मलय नहीं थे, वो चीनी, भारतीय या स्वदेशी मूल के लोग थे. इसलिए इसमें कोई हैरानी की बात नहीं होनी चाहिए कि सिंगापुर के मतदाताओं ने ली कुआन यू के नेतृत्व वाले पीपुल्स एक्शन पार्टी को प्राथमिकता दी.
ऐसे में दोनों राजनीतिक दलों ने एक संघर्ष विराम की कोशिश की. पीएपी सिंगापुर में काम करेगी और यूएमएनओ हर जगह काम करेगी. यह संघर्ष विराम एक महीने तक चला. जब तक कि यूएमएनओ सिंगापुर में कार्यालय स्थापित नहीं कर रहा था और राजनीतिक उम्मीदवारों की भर्ती नहीं कर रहा था. ली ने प्रतिक्रिया जाहिर करते हुए कहा कि पीएपी ने अपने शहर से परे मलेशियाई चुनावों में उम्मीदवार उतारना शुरू कर दिए थे. हर पक्ष ने दूसरे पर संघर्ष विराम का उल्लंघन करने और चुनाव में धांधली करने का आरोप लगाया, जिससे दंगे भड़क गए
मई 1965 तक ये दोनों राजनीतिक जंग लड़ रहे थे . ऐसे में मलेशिया के प्रधानमंत्री तुंकू अब्दुल रहमान ने दावा किया कि ली का लक्ष्य मलय लोगों को एक चीनी उच्च वर्ग के अधीन रखना था और ली ने तुंकू के नस्लवाद पर खुला हमला किया और नई मलेशियाई सरकार से आर्थिक विकास को प्राथमिकता देने की बात कही. तुंकू तंग आ चुके थे और उन्होंने मलेशियाई राजनीति से इस प्रतिद्वंद्वी को स्थायी रूप से खत्म करने के लिए कट्टरपंथी कार्रवाई करने का फैसला किया
तुंकू के नजरिये से सिंगापुर एक आर्थिक वरदान से राजनीतिक दायित्व बन गया था. इसलिए उन्होंने अपने कर्मचारियों से ली के कर्मचारियों तक गुप्त रूप से संपर्क किया और सिंगापुर को मलेशिया से अलग करने के समझौते का प्रस्ताव रखा. अगस्त तक एक समझौता तैयार किया गया था और इस फैसले को जनता के सामने घोषित करने का समय आ गया था
अगस्त 1965 में एक गुप्त समझौते के तहत सिंगापुर को मलेशिया से अलग कर दिया गया. 9 अगस्त 1965 को ली कुआन यू ने टेलीविजन पर घोषणा की कि सिंगापुर अब एक आजाद देश बन जाएगा. इस घोषणा के दौरान वे भावुक होकर रो पड़े क्योंकि उन्होंने माना कि वह मलेशिया के निर्माण का सपना पूरा नहीं कर सके. सिंगापुर अब एक आजाद देश बन गया और उसकी नई यात्रा शुरू हुई
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