Mughal emperor Shah Alam II: मुगलों ने लंबे समय तक भारत पर राज किया. ऐसे में उनके बारे में जानने के लिए लोग आज भी दिलचस्पी रखते हैं. मुगल काल में एक से बढ़कर एक शहंशाह हुए हैं. ऐसे में अगर आप भी मुगलिया दौर के किस्से-कहानियों पढ़ने और सुनने का शौक रखते हैं, तो आज उस बादशाह के बारे में बताते हैं, जिसे गुलाम कादिर ने सूजा घोंपकर अंधा बना दिया था. क्या था वो किस्सा आइए जानते हैं.
ये किस्सा उस दौर का है जब मुगलिया सल्तनत अपने आखिरत में थी. मुगलों की ठसक लगभग खत्म हो चुकी थी. उस समय गद्दी पर शाह आलम द्वितीय. वो एक काबिल और सफल बादशाह नहीं था. उसकी रगों में मुगलिया खून दौड़ रहा था ऐसे में वो किसी की परवाह नहीं करता था और हमेशा सुर्खियों में रहता था. उसकी जिंदगी में एक बार ऐसा वक्त आया जब उसकी आन-बान-शान सब कुछ छिन गया. यहां बात 9 अगस्त 1788 की उस तारीख की जब लालकिले में कुछ ऐसी घटना घटी जिसके बारे में किसी ने सोचा भी न था.
ये वही दौर था, जब अफगान और ईरान के लोग लाल किले के सिंहासन पर आखें गड़ाए बैठे थे. उस समय अफगानिस्तान का सरदार रोहिल्ला गुलाम कादिर, अपने लाव लश्कर के साथ शाह आलम के शाही दरबार पहुंचा. उसने शाह आलम से उसके माल-खजाने का पता ठिकाना पूछा. तो उसे जो जवाब मिला उसे सुनकर वो लाल-पीला हो गया. शाह आलम ने उसे कहा था- 'जैसे तैसे गुजर बसर चल रही है. इफरात पैसा नहीं है. जो कुछ यहां से मिल जाता है बस उतना मेरे पास है'.
ये सुनकर आग बबूला हुए गुलाम कादिर ने शाह आलम को जमकर बेइज्जत किया. यहां तक की उसे जान से मारने की धमकी भी दी गई.
भड़के गुलाम ने बादशाह को धक्का देकर गिरा दिया और सिंहासन पर बैठ गया. उसने दरबार में रखे हुक्के का धुआं बादशाह सलामत के मुंह पर छोड़ा तो वह इस तरह रुसवा होने की वजह से ग्लानि से भर उठा.
(सांकेतिक फोटो)
टॉर्चर का दौर कम नहीं हुआ आगे बादशाह को धूप में भूखा-प्यासा रखा. बार-बार छिपे खजाने के बारे में पूछताछ होती रही. शाह आलम का एक ही जवाब सुनसुन कर गुलाम का माथा फिर चुका था. एक दिन जब उससे ये कह दिया- 'मेरा सबकुछ तुम पहले ही तुम ले चुके हो. अब क्या खजाना मेरे पेट में है? इस पर गुलाम कादिर ने कहा, हो सकता है तुम्हारे पेट में हो, अब तो तुम्हारे पेट चीरकर देखना पड़ेगा.
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गुलाम ने हैवानियत की सारी हदें पार कर दीं. उसने एक राजा के साथ राजाओं जैसा सलूक नहीं किया. उसने शहंशाह शाह आलम की आंखों में सुई घोंपकर उसकी आंखों की रोशनी छीनकर अंधा बना दिया. इसके बाद गुलाम उसके सीने पर बैठा और अपने औजार से उसकी आंखें निकाल लीं.
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गुलाम कितनी विकृत मानसिकता का शिकार था, इसका पता इस बात से लगाया जा सकता है कि आंखें निकालने के बाद उसने दरबार में मौजूद चित्रकार से उस वीभत्स सीन को हुबहू कैनवास पर उतारने को कहा. शाह आलम सेकेंड को अंधा करने के इस वाकये का जिक्र जदुनाथ सरकार ने अपनी किताब ‘फॉल ऑफ मुग़ल एम्पायर’ में किया है.
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गुलाम कादिर ने उस दौर में महिलाओं का उत्पीड़न भी किया था.
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