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Ram Mandir: राजा विक्रमादित्य ने कैसे खोजी त्रेतायुग वाली अयोध्या, कैसे मिली रामलला की जन्मभूमि?

Ram Mandir Story: महज 11 दिन बाद भव्य मंदिर में रामलला की प्राण प्रतिष्ठा (Ram Lala Pran Pratishtha) होनी है. सिर्फ 11 दिन बाद श्रीराम जन्मभूमि (Ram Janmbhoomi) पर बने मंदिर में रामलला भक्तों को दर्शन देंगे. लेकिन क्या आप जानते हैं, रामलला की जन्मभूमि कैसे मिली? कैसे पता चला कि जिस जगह पर गर्भगृह बनाया गया है वही जगह राम जन्मभूमि है. आज की अयोध्या सबके सामने है लेकिन सतयुग से कलयुग तक अयोध्या का इतिहास क्या है? उज्जैन के राजा विक्रमादित्य ने अयोध्या की खोज कैसे की? आइए इससे जुड़ी दिलचस्प कहानियां जानते हैं.

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बता दें कि त्रेता युग की श्रीराम की अयोध्या कई बार बिगड़ी और कई बार बसी, लेकिन मर्यादा पुरुषोत्तम की निशानियां, आज भी कायम हैं. इन निशानियों को खोजने में राजा विक्रमादित्य का सबसे बड़ा योगदान माना जाता है. त्रेता युग की अयोध्या, द्वापर के लाखों वर्षों से होते हुए कलयुग के हजारों वर्षों बाद भी कैसे मिली? इतिहास के पन्नों में इसका श्रेय राजा विक्रमादित्य को दिया गया है. इतिहासकार बताते हैं कि ईसा के 57 साल पहले रामनवमी के दिन गुप्तार घाट पर राजा विक्रमादित्य विश्राम कर रहे थे. इसी दौरान उनकी मुलाकात तीर्थराज प्रयाग से हुई. तीर्थराज प्रयागराज की प्रेरणा से ही राजा विक्रमादित्य ने राम जन्मभूमि की तलाश शुरू की. प्रयागराज ने निर्देश दिया और उसके बाद लोमस ऋषि से मुलाकात हुई. लोमस ऋषि के कहने पर ही राजा विक्रमादित्य आगे बढ़े.

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जान लें कि अयोध्या का इतिहास बेहद प्राचीन है. मान्यता है कि इस नगर को मनु ने बसाया था. प्राचीन भारत के कौशल देश के सूर्यवंशी राजा हरिश्चंद्र की राजधानी भी अयोध्या थी. इसके बाद त्रेतायुग में मर्यादा पुरुषोत्तम श्रीराम अवतरित हुए और उनके राम राज्य की परिकल्पना आज भी की जाती है. काल का चक्र बदलता गया और एक दौर ऐसा भी आया जब अयोध्या का पराभव हो गया. इसके बाद राजा विक्रमादित्य जब अयोध्या की खोज में निकले तो गौ माता ने कैसे उनकी मदद की इसकी कहानी भी दिलचस्प है. अयोध्या पर रिसर्च करने वाले आचार्य मिथलेशनंदनीशरण ने बताया है कि कैसे गाय के माध्यम से राजा विक्रमादित्य ने रामजन्मभूमि को पहचान. जहां गाय के थन से दूध गिरने लगा, वहीं रामजन्मभूमि मिली.

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त्रेतायुग की अयोध्या को कलयुग में खोजने और संवारने वाले राजा विक्रमादित्य से जुड़े एतिहासिक तथ्यों का जिक्र रूद्रायमल ग्रंथ में भी मिलता है. रूद्रायमल ग्रंथ में राजा विक्रमादित्य और जन्मभूमि को लेकर ऐतिहासिक तथ्य बताए गए हैं. अयोध्या की तलाश पूरी होने के बाद राजा विक्रमादित्य ने यहां 360 से ज्यादा मंदिर बनाए, जिनमें भव्य राम मंदिर भी शामिल था. राजा विक्रमादित्य ने अयोध्या का जीर्णोद्धार कराया. कहा जाता है कि रामलला का जो मंदिर राजा विक्रमादित्य ने बनवाया उसे ही 1528 में अकबर के सेनापति मीर बाकी ने ढहाया था. अयोध्या की खोज के दौरान नागेश्वर नाथ मंदिर ने भी राजा विक्रमादित्य को राह दिखाई थी. अयोध्या की खोज राजा विक्रमादित्य के लिए चुनौती थी लेकिन उन्होंने अपना काम बखूबी किया. स्कंद पुराण में भी प्राचीन अयोध्या का जिक्र है.

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राजा विक्रमादित्य के बाद कई दूसरे शासकों ने भी अयोध्या का विकास किया, जिसमें गुप्तकाल के राजाओं और गहड़वाल राजाओं का बड़ा योगदान रहा. प्राचीन अयोध्या से जुड़े कई ऐतिहासिक तथ्य हैं. अलग-अलग जगह उनका उल्लेख भी है. विदेशी लेखक हंस बेकर की किताब भी अयोध्या के इतिहास से जुड़े कई पहलू समेटे हुए है. विदेशी लेखक हंस बेकर ने रामजन्मभूमि, अयोध्या और राजा विक्रमादित्य के बारे में लिखा है. उनकी किताब के साथ यह बताया है कि कैसे और कितनी दूरी पर क्या धार्मिक स्थल मौजूद है. यह किताब भी मौखिक इतिहास को और ज्यादा बल देती है.

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अयोध्या में मौजूद मुक्ति गली भी वो प्रमाण है जो राजा विक्रमादित्य की खोज में निर्णायक साबित हुई. रामजन्मभूमि की खोज में मुक्ति गली का अहम रोल माना जाता है. राजा राम की अयोध्या को राजा विक्रमादित्य ने ना सिर्फ खोजा बल्कि उसका वैभव लौटाने में भी कोई कसर नहीं छोड़ी. मगर विदेशी आक्रमण और मुगल शासन में अयोध्या में एक बार फिर उथल पुतल मची और यहां सबकुछ खंडित कर दिया गया. आज फिर अयोध्या का वैभव लौट रहा है और करोड़ों हिंदू उत्साहित हैं. अयोध्या का इतिहास भी गौरवशाली है और वर्तमान में इस नगरी का गौरव बढ़ाने के लिए तमाम प्रयास किए जा रहे हैं. 500 साल की प्रतीक्षा के बाद सपना साकार हो रहा है और सनातनी परंपरा की विरासत समेटे अयोध्या पूरे संसार के सामने नए रंग, नए रूप में तैयार है.

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