Himalayan glaciers are melting faster than ever: भारत के सिर पर मुकट की तरह विराजमान हिमालय के ग्लेशियर तेजी से पिघल रहे हैं, यह एक चिंताजनक स्थिति है. जलवायु परिवर्तन के चलते ग्लेशियरों के अस्तित्व पर खतरा मंडरा रहा है. यूं तो इस भू-भाग में छोटे बड़े कई ग्लेशियर हैं. लेकिन देश के 4 राज्यों में करीब 34 प्रमुख ग्लेशियर हैं. जो धरती को जीवन देने वाली नदियों के उद्गम स्थल हैं. ग्लोबल वार्मिंग और क्लाइमेट चेंज की वजह से ब्लैक कार्बन का अटैक इन व्हाइट ग्लेशियर्स पर होने लगा है. वहीं तापमान में वृद्धि की वजह से हिमालय में अधिकांश ग्लेशियर पिघलने की दर बढ़ गई है. इनके पिघलने की रफ्तार से करोड़ों लोगों के जीवन पर मंडरा रहा खतरा बढ़ गया है.
मौसम परिवर्तन का असर हिमालय क्षेत्र के ग्लेशियरों पर पड़ रहा है. उत्तराखंड में 6 प्रमुख ग्लेशियर हैं. उत्तराखंड में ग्लेशियर के पिघलने की दर देश में सबसे ज्यादा है. सबसे ज्यादा खतरा भी यहीं हैं. क्योंकि यहां के ग्लेशियर आधे हिंदुस्तान को ताजा पानी और आबोहवा देते हैं. वहीं लद्दाख, जम्मू-कश्मीर, अरुणाचल प्रदेश और हिमाचल प्रदेश के ग्लेशियर भी पिघल रहे हैं.
उत्तराखंड के उत्तरकाशी हो या फिर चमोली या पिथौरागढ़ हो या फिर अल्मोड़ा. ये सभी वो जिले हैं. जिनके अंतिम गांव ग्लेशियरों के नजदीक हैं. गंगोत्री ग्लेशियर इनमें सबसे ज्यादा महत्वपूर्ण ग्लेशियर माना जाता है. यहीं से गंगा निकलती है. जलवायु परिवर्तन का असर इस ग्लेश्यर पर पड़ा है. बीते कई दशकों में ये ग्लेशियर पीछे खिसका है. पिछसे साल राज्यसभा में सरकार ने जो आंकड़े पेश किए थे, वो चौंकाने वाले थे. तब केंद्र सरकार ने बताया था कि 15 सालों में लगभग 0.23 वर्ग किलोमीटर ग्लेशियर पीछे हट गए हैं. इसके बाद केंद्र सरकार ने इसरो को गंगोत्री ग्लेशियर समेत कई अन्य ग्लेशियरों पर अध्ययन करने के लिए कहा था.
इन ग्लेशियरों पर नेशनल सेंटर फॉर पोलर एंड ओशन रिसर्च (NCPOR) और कई अन्य संस्थाएं लगातार नजर रख रही हैं. इसरो भी इनके पिघलने की गतिविधियों को वॉच कर रहा है. पीआईबी की एक रिपोर्ट के मुताबिक केंद्र सरकार की पर्यावरण के इन हालातों पर नजर बनी हुई है.
ग्लेशियरों का पिघलना कितना खतरनाक है. इसे गंभीरता से लेना होगा. ग्लेशियरों के पिघलने से जीवदायनी नदियों का पानी आने वाले समय में कम हो जाएगा. जिसका नतीजा ये होगा कि भविष्य में अन्न का संकट पैदा हो जाएगा. बिजली उत्पादन में कमी आएगी. अगर ग्लेशियर इतनी ही तेजी से पिघलते रहे तो देश के कई हिस्से बाढ़ की चपेट में आ जाएंगे. ग्लेशियर पिघलने की रफ्तार में तेजी आई तो सागरों में पानी की मात्रा बढ़ जाएगी. समुद्र किनारे बसे महानगर जलमग्न हो जाएंगे.
काठमांडू स्थित इंटरनेशनल सेंटर फॉर इंटीग्रेटेड माउंटेन डेवलपमेंट की एक रिपोर्ट में चेतावनी दी गई है कि हालात नहीं सुधरे तो आने वाले वर्षों में अचानक बाढ़ और हिमस्खलन की संभावना अधिक हो जाएगी. इन ग्लेशियरों से ही गंगा, यमुना, अलकनंदा, पिंडारी समेत अन्य नदियां निकल कर भारत की एक बड़ी आबादी की प्यास बुझाती है. वहीं हिंदुकुश हिमालय पर्वतमाला के ग्लेशियर उन नदियों के लिए पानी का एक महत्वपूर्ण स्रोत है, जो एशिया के 16 देशों से होकर बहती हैं जो करीब 2 अरब लोगों को ताजा पानी प्रदान करती हैं.
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