आपने फिल्मों में देखा होगा कि जब भी कोई वैज्ञानिक इंसानों से जुड़ी किसी दवा पर टेस्टिंग करता है तो सबसे पहले चूहों पर करता है. ये केवल फिल्मों तक सीमित नहीं है, बल्कि असलियत में भी ऐसा ही होता है. वैज्ञानिक लैब में किसी भी एक्सपेरिमेंट को इंसानों पर करने से पहले चूहों पर किया जाता है.
चूहों और इंसानों के डीएनए में लगभग 85 प्रतिशत समानता होती है. यह समानता वैज्ञानिकों को चूहों पर किए गए प्रयोगों के नतीजों को इंसानों पर लागू करने में मदद करती है. चूहों और इंसानों के शरीर में कई जैविक प्रक्रियाएं और सिस्टम एक जैसे होते हैं, जैसे कि इम्यून सिस्टम, दिमाग की बनावट, हार्मोनल सिस्टम और अंगों का कार्य, जिससे यह पता चलता है कि दवा या इलाज इंसान पर कैसे असर करेगा.
चूहों का मेटाबोलिक रेट इंसानों की तुलना में तेज होता है, जिससे दवाओं के प्रभाव, साइड-इफेक्ट्स और शरीर की प्रतिक्रियाएं जल्दी नजर आती हैं. इसका फायदा यह होता है कि वैज्ञानिक कम समय में यह जान पाते हैं कि दवा या उपचार का इंसानी शरीर पर क्या प्रभाव हो सकता है. उदाहरण के लिए, अगर किसी नई दवा का परीक्षण करना हो तो इंसानों पर इसका प्रभाव जानने में कई साल लग सकते हैं, जबकि चूहों पर यह प्रक्रिया कुछ ही हफ्तों या महीनों में पूरी हो जाती है.
चूहों का जीवनकाल औसतन 2-3 साल का होता है, जो कि रिसर्च के लिए बहुत उपयोगी है. चूहे तेजी से प्रजनन करते हैं, जिससे वैज्ञानिकों को नई पीढ़ी के चूहों पर तेजी से परीक्षण करने का अवसर मिलता है. इसके माध्यम से वैज्ञानिक जीवनचक्र और जेनेटिक बदलावों का अध्ययन भी आसानी से कर पाते हैं.
चूहों पर प्रयोग करने से नैतिक समस्याओं का सामना कम करना पड़ता है. इसके अलावा चूहों को लैब में एक नियंत्रित वातावरण में रखना आसान होता है. यहां उनके आहार, जीवनशैली और बर्ताव के सभी पहलुओं पर आसानी से नजर रखी जा सकती है. इससे वैज्ञानिकों को यह समझने में मदद मिलती है कि आहार, मौसम और एयर क्वालिटी जैसे कारक प्रयोग पर किस तरह का असर डालते हैं.
लैब में कोई भी एक्सपेरिमेंट इंसानों पर करने से पहले चूहों पर किया जाता हैं. क्या आपको इसके बारे में पता है? (Why rats used in experiment) अगर नहीं, तो चलिए हम आपको इसके बारे में बताते हैं. विस्तार से...
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