अयोध्या को बौद्धनगरी बताकर क्या वामपंथी नया विवाद खड़ा करना चाहते हैं?
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अयोध्या को बौद्धनगरी बताकर क्या वामपंथी नया विवाद खड़ा करना चाहते हैं?

अयोध्या में संमतलीकरण के दौरान जो प्राचीन मूर्तियां व अवशेष मिले, उन्हें बौद्धकालीन अवशेष बताया जा रहा है. इसके साथ ही एक नया विवाद खड़ा करने का लहर भी चल पड़ी है कि उक्त स्थल पर राम मंदिर नहीं बल्कि कोई बौद्ध स्थल था. एक बार अयोध्या की भूमि को निशाना बनाकर असफल वामपंथी एक नए षड्यंत्र का कुचक्र रच रहे हैं.

अयोध्या को बौद्धनगरी बताकर क्या वामपंथी नया विवाद खड़ा करना चाहते हैं?

नई दिल्लीः अयोध्या में इस वक्त समतलीकरण का कार्य चल रहा है. बीते साल सुप्रीम कोर्ट का फैसला आने के बाद राम जन्म भूमि का स्थल अब विवादित नहीं रहा और इसके बाद मंदिर निर्माण जारी है. गुरुवार को खबर आई कि भूमि समतल करने के दौरान देवी-देवताओं की प्राचीन मूर्तियां निकल रही हैं.

  1. समतलीकरण के दौरान जो मूर्तियां मिलीं उन्हें बौद्धकालीन बता कर विवाद को नया मोड़ देने की कोशिश
  2. ट्विटर पर ट्रेंड कर रहा था बौद्धनगरी अयोध्या, लोगों फिर से खुदाई कर ऐतिहासिक स्त्रोत तलाशने की मांग करते दिखे

सनातनी और हिंदू शैली में अलंकृत स्तंभों के अवशेष भी मिले. जिस स्थल को लेकर करीब 50 साल लंबी (और पीछे जाएं तो 500 साल) लंबी लड़ाई चली, जमीन के कुछ फुट नीचे ही उसकी सच्चाई दबी पड़ी थी, जरा fallbackसा झटका लगा और सच बाहर.

इसके बाद यह मुद्दा सोशल मीडिया पर आया, ट्रेंड करने लगा. इसे वामपंथियों के मुंह पर तमाचा बताया गया , जो कि सुप्रीम कोर्ट के फैसले पर अब भी दबी जुबान में आपत्ति और अफसोस जताते रहे थे. यह सही भी था, क्योंकि यहां सांच को आंच नहीं वाली बात थी और सच सबके सामने था. कोर्ट के फैसले में भी और जमीन को समतल करने में निकली प्रतिमाओं के रूप में भी.

यहीं से असली खेल शुरू होता है
लेकिन असली खेल यहीं से शुरू हुआ. पुरानी बात है. इतिहास लिखने वाले कहते रहे हैं कि अंग्रेजों ने फूट डालो राज करो की नीति अपनाई. यानी दो अलग पंथ मानने वाले समुदायों को भड़काओ और फिर अपना सिक्का जमाओ. कैनवस को बड़ा करके देखें तो उन्होंने यही किया भी.

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जहां-जहां वह मुस्लिमों को भड़का सकते थे तो उन्होंने उनको भड़का कर क्रांति की आग कमजोर की. इसके अलावा 1857 का दमन भी उन्होंने अलग-अलग राजाओं को एक-दूसरे के प्रति भड़काकर ही किया था. यह नई नहीं, बल्कि मानी हुई बात है.

अंग्रेज गए, लेकिन अंग्रेजी छोड़ गए
इस तथ्य का प्रयोग आज यहां इसलिए करना पड़ रहा है कि भारतीय जनमानस में एक और कहावत प्रचलित है, अंग्रेज चले गए, अंग्रेजी छोड़ गए. इस अंग्रेजी को अपना लिया, तथाकथित लिबरल्स और सेकुलर का चोला ओढ़े, वामपंथी धड़े ने. अब उन्हें हर बात में एक अलग ही तर्क नजर आता है.

वह खोजते हैं कि किस जगह, किस कोने पर मामले को कैसे विवाद में बदला जा सकता है. ताकि इसमें टालमटोल हो और नया मुद्दा बने. राम मंदिर की सतह से मूर्तियां निकलने के बाद ऐसी ही कोशिश शुरू हो गई है.

मंदिर के स्थल पर बौद्ध अवशेष बताने लगे
दो दिन से अयोध्या से होता हुआ एक और शोर आ रहा है. ध्यान से सुनिए तो यही खुद को सेकुलर कहने वाला धड़ा अब अयोध्या में मिले अवशेष को बौद्ध बता रहा है. ट्विटर पर बौद्धनगरी अयोध्या ट्रेंड करने लगा. यहां कुछ लोग दावा कर रहे हैं कि समतलीकरण के दौरान जो अवशेष मिले हैं वह सम्राट अशोक के शासनकाल के दौरान की है.

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कुछ ट्विटर यूजर ने यूनेस्को से रामजन्मभूमि परिसर की निष्पक्ष खुदाई की मांग की है. सीधे शब्दों कहें तो उन्होंने मंदिर निर्माण को टालने की बात कही है.

सोशल मीडिया पर तुलना करने लोग
लोगों का कहना है कि समतलीकरण के दौरान खुदाई में जो अवशेष मिले हैं वह शिवलिंग नहीं बल्कि बौद्ध स्तंभ हैं. इसी के साथ लोग ट्विटर पर बौद्ध धर्म की कलाकृतियां और समतलीकरण के दौरान मिले अवशेष की तस्वीर साझा कर तुलना कर रहे हैं.

इससे पहले ऑल इंडिया मिल्ली काउंसिल के महासचिव खालिक अहमद खान ने दावा किया था कि जो अवशेष मिले हैं, वे बौद्ध धर्म से जुड़े हुए हैं. इसी तरह अयोध्या विवाद में सुन्नी वक्फ बोर्ड के वकील रहे जफरयाब जिलानी ने कहा कि यह सब एक प्रोपगेंडा है. उन्होंने कहा कि सुप्रीम कोर्ट ने साफ कहा कि एएसआई के सबूतों से यह साबित नहीं होता है कि 13वीं शताब्दी में वहां कोई मंदिर था.

इस विवाद की तह को समझने की जरूरत
अब अयोध्या को लेकर जो नया विवाद उठाया जा रहा है, उस मानसिकता की तह तक जाने की जरूरत है. अलग-अलग होते हुए भी बौद्ध और सनातन धर्म की शिक्षाएं एक सी हैं और मुख्यतः दोनों ही शांति और अहिंसा की बात करते हैं.

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जहां एक तरफ शांति दूत श्रीकृष्ण हैं तो वहीं महात्मा बुद्ध उनके ही कहे एक सूत्र अहिंसा परमो धर्मः का संदेश देते हैं. ऐसे में इस विवाद में बौद्ध या हिंदू अवशेष की बात उठाकर क्या इस मसले को हिंदू-मुस्लिम से हिंदू-बौद्ध की ओर मुड़ने का नापाक कोशिश तो नहीं? सवाल लाजिमी है.

दूसरा सवाल, क्या अब मुद्दे में दलित विवाद की एंट्री की मंशा
बौद्ध धर्म का नाम आता है तो इसके साथ-साथ दलित समाज का नाम भी जोड़ने की कोशिश होने लगती है. संविधान निर्माता डॉ. अंबेडकर ने बौद्ध धर्म अपनाया था और दलित समाज बौद्ध धर्म को श्रद्धापूर्वक देखता आया है. बसपा नेता कांशीराम ने भी अयोध्या मसले पर टिप्पणी की थी, तब उन्होंने कहा था देवालय से पहले शौचालय.

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ऐसे में मंदिर की जमीन से मिले अवशेषों को बौद्धकालीन बताकर दूर से दलितों को सनातनी खेमे से काटने की कोशिश तो नहीं की जा रही है?

एक निष्कर्ष, अगर अवशेष बौद्ध कालीन तब तो यह पुख्ता सुबूत
अब इस मामले को खुली आंखों से देखें तो एक बात स्पष्ट है. अगर यह अवशेष बौद्ध कालीन भी हैं तो इस स्थल पर मस्जिद के होने का दावा पूरी तरह खत्म हो ही जाता है. यह भी स्पष्ट है कि मुस्लिम आक्रांताओं ने पहले के बने किसी निर्माण को तोड़कर वहां मस्जिद बनवाई.

दूसरी बात यह भी है कि इतिहास खुद कहता है कि सम्राट अशोक ने कई मंदिरों का जीर्णोद्धार कराया था. इस क्रम शिल्पकारों ने तत्कालीन वास्तुकला का खूब प्रयोग किया था. बौद्ध कालीन राजाओं द्वारा किसी बने हुए निर्माण को ध्वस्त कर नया निर्माण कराने का वर्णन कहीं नहीं मिलता. यह श्रेय तो सोमनाथ से लेकर दक्षिण के मंदिरों तक केवल बाहरी आक्रांताओं के हिस्से गया है.

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बौद्ध अवशेष को लेकर 2018 में दायर हुई थी याचिका
 इस मामले में 2018 में सुप्रीम कोर्ट में एक याचिका भी दाखिल हुई थी. अयोध्या के एक शख्स विनीत का दावा था कि विवादित स्थल के नीचे कई अवशेष दबे हुए हैं जो अशोक काल के हैं और यह बौद्ध धर्म से जुड़े हैं.  याचिका में दावा किया गया था कि बाबरी मस्जिद के निर्माण से पहले उस जगह पर बौद्ध धर्म से जुड़ा ढांचा था.

मौर्य ने अपनी याचिका में कहा था, 'एएसआई की खुदाई से पता चला है कि वहां स्तूप, गोलाकार स्तूप, दीवार और खंभे थे जो किसी बौद्घ विहार की विशेषता होते हैं. मौर्य ने दावा किया था, 'जिन 50 गड्ढों की खुदाई हुई है, वहां किसी भी मंदिर या हिंदू ढांचे के अवशेष नहीं मिले हैं.

लेकिन विरोध करने वाले भूल जाते हैं कि बौद्ध धर्म सनातन परंपरा का ही एक हिस्सा है और भगवान बुद्ध को भगवान राम की ही तरह विष्णु का अवतार माना जाता है

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