अफगानिस्तान ने हमेशा तालिबान से शान्ति प्रस्ताव किये हैं किन्तु खून-खराबे के आदि तालिबान को शान्ति से नहीं अफगानिस्तान में हुकूमत करने की चाहत से लेना-देना है..
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नई दिल्ली. दुनिया का कोई भी शान्ति समझौता तालिबानियों पर कारगर सिद्ध नहीं हो सकता है. चाहे तालिबानियों से समझौता अमेरिका का हो या अफगानिस्तान का, तालिबानी सोच रक्त-पात की प्यासी है और उसी की आदी है. सीधा सा मामला बस यही है कि वे किसी भी कीमत पर अफगानिस्तान पर हुकूमत करने की अपनी ख्वाहिश को सच करके ही दम लेंगे और इससे कम में वे कोई समझौता करने वाले नहीं हैं.
अब अफगानिस्तान भी समझ चुका है कि अमेरिका का शांति समझौता भी तालिबानियों पर कामयाब नहीं है. इसलिए अफगानिस्तान सरकार ने खुद ही उनके साथ नए समझौते की शुरुआत की. अपनी नई शर्त के मुताबिक़ अफगानिस्तान सरकार ने तालिबानियों से अपने डेढ़ हज़ार सैनिकों को छोडने की पेशकश की जिसे तालिबान ने मानने से इंकार कर दिया.
अफगानिस्तान के राष्ट्रपति अशरफ गनी ने शुरू की अपनी नई शांति वार्ता के लिए पहले 1,500 अफगानी कैदियों को रिहा करने का प्रस्ताव किया लेकिन तालिबान ने उसे ठुकरा दिया. बदले में तालिबान ने बातचीत से पहले सभी पांच हज़ार तालिबान कैदियों को रिहा करने का प्रस्ताव कर दिया जो कि ज़ाहिर है अफगानिस्तान के लिए स्वीकारयोग्य नहीं है.
तालिबान के राजनीतिक प्रवक्ता सुहैल शाहीन ने बताया कि कैदियों की रिहाई भरोसा कायम करने के लिए एक माहौल तैयार करेगा. शाहीन ने कहा कि इस अंतर-अफगानिस्तान वार्ता से पहले भरोसा कायम करना ज़रूरी है और इसमें किसी भी तरह का फेरबदल मंज़ूर नहीं होगा क्योंकि तब वह फेरबदल पिछले महीने दोहा में वाशिंगटन और तालिबान के बीच हुए समझौते का उल्लंघन समझा जाएगा.
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