Muslim Marriage: शादी के बाद इस प्रथा की क्या है अहमियत जिसमें लोगों को दावत देना है जरूरी
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Muslim Marriage: शादी के बाद इस प्रथा की क्या है अहमियत जिसमें लोगों को दावत देना है जरूरी

Walima in Muslim Marriage: आम तौर पर शादी समारोह के बाद रिसेप्शन मनाया जाता है. रिसेप्शन में नवविवाहित जोड़े की पहली सार्वजनिक उपस्थिति होती है. रिसेप्शन किसी भव्य पार्टी से कम नहीं होता है. इस्लाम में शादी के साथ-साथ वलीमा भी सुन्नत है. इसका मकसद क्या है, आइए जानते हैं.

Muslim Marriage: शादी के बाद इस प्रथा की क्या है अहमियत जिसमें लोगों को दावत देना है जरूरी

What Is Walima: इस्लाम में जिस तरह से शादी यानी निकाह करना सुन्नत है. उसी तरह से शादी के बाद वलीमा भी बेहद जरूरी है. वलीमा का मतलब अपनी शादी के दिन अपने रिश्तेदारों और दोस्तों को दावत देना और उन्हें खाना खिलाना. वलीमा अरबी का लफ्ज है. इस्लाम में शादी की दो अहम रस्में हैं जिनमें पहला निकाह है तो दूसरा वलीमा है. अल्लाह के रसूल (सल्ल0) ने खुद अपनी शादी के मौके पर वलीमा किया था. 

वलीमे का मकसद
वलीमे का मकसद इस शादी के बारे में लोगों को जानकारी देना है. इसके साथ ही अपनी खुशी में अपने रिश्तेदारों और अपने करीबियों को शामिल करना है. मान्यता है कि इससे लोगों के आपसी रिश्ते बेहतर होते हैं. दरअसल वलीमा वो मौका होता है जब आपके रिश्तेदार और आपके करीबी आपके यहां आते हैं. इसी आयोजन में कुछ दूसरे लोगों की शादियों के मौके बनते हैं.

दावत कबूल करें
इस्लाम में बताया गया है कि जब भी आपको वलीमे की दावत मिले तो उसे कबूल करना चाहिए और उसमें शामिल होने की कोशिश करना चाहिए. जब भी किसी वलीमे में शामिल हों तो कोशिश करें कि जब आपके यहां वलीमा हो तो उन्हें जरूर बुलाएं.

वलीमे पर हदीस
अल्लाह के रसूल (सल्ल0) को जब पता चला कि हजरत अब्दुल्लाह -बिन-औफ (रजि0) ने शादी की है तो आप (सल्ल0) ने फरमाया कि 'अल्लाह तुम्हें बरकत दे, एक बकरी ही से सही, लेकिन तुम वलीमा जरूर करो.'(हदीस- मुस्लिम)

वलीमे की दावत कुबूल करने पर हदीस
अल्लाह के रसूल (सल्ल0) ने फरमाया- 'तुममें से जब किसी को खाने की दावत दी जाए तो उसे कबूल कर ले. अगर रोजा न हो तो खा ले और अगर (नफली) रोजे से हो तो रोजा तोड़ दे.'(हदीस- मुस्लिम)

वलीमे में जाने पर ऐसे दुआ देना सुन्नत
'अल्लाह तआला तुम्हे बरकत दे और तुम दोनों (मियां-बीवी) को भलाई के साथ मिलाए रखे.'(हदीस- अबू-दाऊद, तिरमिजी)

मेहमान को इस तरह दुआ देनी चाहिए
'ऐ अल्लाह! इन्हें माफ कर दे, इन पर रहम कर और इनके खाने में बरकत दे.'(हदीस: मुस्लिम, अबू-दाऊद)

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