Uttarakhand: 1,702 गांव हो गए निर्जन, बाइस वर्षों में भी राज्य से खत्म नहीं हो सकी ये समस्या
Advertisement

Uttarakhand: 1,702 गांव हो गए निर्जन, बाइस वर्षों में भी राज्य से खत्म नहीं हो सकी ये समस्या

Uttarakhand News :ग्रामीण विकास और प्रवासन रोकथाम आयोग (आरडीएमपीसी) के उपाध्यक्ष एस. एस. नेगी ने कहा कि उनमें से केवल 5-10 प्रतिशत लोग ही यहां रह गए हैं, जिनमें से अधिकतर ऐसे व्यक्ति हैं जिनके पास शहरों में भरोसेमंद नौकरी नहीं थी.

 

Uttarakhand: 1,702 गांव हो गए निर्जन, बाइस वर्षों में भी राज्य से खत्म नहीं हो सकी ये समस्या

Uttarakhand Migration Problem:  लॉकडाउन के दौरान बेहतर जीवन की उनकी उम्मीद धराशायी होने के चलते देश के विभिन्न हिस्सों से हजारों की संख्या में लोग उत्तराखंड में अपने गांवों को लौटे. हालांकि, उनमें से अधिकांश के पास अपनी आजीविका के लिए फिर से घर छोड़ने के अलावा और कोई विकल्प नहीं था क्योंकि उनके मूल स्थान पर रोजगार के अवसरों की कमी थी.

ग्रामीण विकास और प्रवासन रोकथाम आयोग (आरडीएमपीसी) के उपाध्यक्ष एस. एस. नेगी ने कहा कि उनमें से केवल 5-10 प्रतिशत लोग ही यहां रह गए हैं, जिनमें से अधिकतर ऐसे व्यक्ति हैं जिनके पास शहरों में भरोसेमंद नौकरी नहीं थी.

राज्य ने गत नौ नवंबर को अपनी स्थापना की 22वीं वर्षगांठ मनाई थी, लेकिन वह अब भी गांवों, विशेष रूप से पर्वतीय इलाकों में रहने वाले लोगों के लिए आजीविका कमी और शिक्षा एवं स्वास्थ्य के खराब बुनियादी ढांचे के कारण पलायन की जटिल समस्या से जूझ रहा है.

‘1,702 गांव निर्जन हो गए हैं
नेगी ने बताया कि सीमावर्ती राज्य में कम से कम 1,702 गांव निर्जन हो गए हैं क्योंकि निवासी नौकरियों और बेहतर शिक्षा एवं स्वास्थ्य सुविधाओं की तलाश में शहरी क्षेत्रों में पलायन कर गए हैं. उन्होंने कहा कि पौड़ी और अल्मोड़ा जिले पलायन से सबसे ज्यादा प्रभावित हुए हैं. उन्होंने कहा कि उत्तराखंड के गांवों से कुल 1.18 लाख लोग पलायन कर चुके हैं.

नेगी ने कहा, ‘‘ज्यादातर पलायन बेहतर जीवन जीने की आकांक्षाओं के कारण हुआ है.’’

अधिकांश पलायन बेहतर रोजगार के अवसरों की तलाश के कारण हुआ. खराब शिक्षा सुविधाओं, खराब स्वास्थ्य बुनियादी ढांचे, कम कृषि उपज या जंगली जानवरों द्वारा खड़ी फसलों को नष्ट करने के कारण भी लोग पलायन कर गए हैं.

 

पहले लोग राज्य से बाहर मुंबई और दिल्ली जैसे बड़े शहरों में पलायन करते थे. नेगी के अनुसार, हाल के वर्षों में पलायन स्थानीय प्रकृति का रहा है क्योंकि लोग गांवों से आसपास के शहरों में कभी-कभी राज्य के भीतर एक ही जिले में भी पलायन कर रहे हैं.

जिले के भी विभिन्न नगरों में पलायन कर रहे हैं लोग
नेगी ने कहा, ‘हम वर्तमान में हरिद्वार जिले के गांवों का दौरा कर रहे हैं और पाया कि लोग राज्य से बाहर नहीं बल्कि जिले के भी विभिन्न नगरों में पलायन कर रहे हैं.’ उन्होंने कहा कि हरिद्वार के गांवों के लोग जिले के रुड़की या भगवानपुर की ओर पलायन कर रहे हैं या पौड़ी के ग्रामीण जिले के कोटद्वार, श्रीनगर या सतपुली नगरों की ओर पलायन कर रहे हैं. उन्होंने कहा, ‘‘पलायन जारी है, लेकिन स्थिति उतनी खराब नहीं है जितनी कुछ साल पहले हुआ करती थी. हमारे पास इसे साबित करने के लिए अभी कोई ठोस आंकड़ा नहीं है, लेकिन चीजें तेजी से बदल रही हैं.’’

नेगी ने कहा कि लॉकडाउन के बाद अपने गांवों में लौटे लोगों को काम और सम्मान का जीवन देना राज्य सरकार की सबसे बड़ी चुनौती रही.

नेगी ने उम्मीद जताई कि केंद्र सरकार की हर मौसम में चालू रहने वाली सड़क परियोजना से आने वाले वर्षों में पर्यटन को बहुत बढ़ावा मिलने की उम्मीद की जा सकती है. उन्होंने बताया कि यह परियोजना लगभग पूरी होने वाली है.

(इनपुट - भाषा)

(ये ख़बर आपने पढ़ी देश की नंबर 1 हिंदी वेबसाइट Zeenews.com/Hindi पर)

Trending news