कुशीनगर में बौद्ध पर्यटन स्थल प्रशासनिक उदासीनता का शिकार होते जा रहे हैं. इनका रखरखाव न होने से एक बेहतरीन विरासत के नष्ट होने की आशंका है.
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प्रमोद कुमार/कुशीनगर: भगवान बुद्ध की महापरिनिर्वाण स्थली कुशीनगर में पर्यटन सीजन की शुरुआत होते ही बड़ी संख्या में देशी विदेशी सैलानियों का आना शुरू हो चुका है. कुशीनगर घूमने आने वाले विदेशी पर्यटकों के प्रमुख आकर्षण के केंद्र में यहां मौजूद बुद्ध कालीन पुरातात्विक अवशेष भी शुमार है. लेकिन जलजमाव के कारण इन पुरातात्विक अवशेषों पर अस्तित्व का संकट खड़ा हो गया है. जगह-जगह जलभराव की वजह से पुरात्व खस्ताहाल होते जा रहे हैं. जिस विरासत का संरक्षण होना चाहिए, उसके आसपास खरपतवार उग आए हैं. इससे पर्यटकों को भी खासी दिक्कत होती है.
अंतर्राष्ट्रीय पर्यटन स्थलों में अपना स्थान बनाने वाला महापरिनिर्वाण स्थली कुशीनगर एक तरफ पर्यटकों के आने से गुलजार है.लेकिन महापरिनिर्वाण स्थली के मुख्य मंदिर के परिसर में ऐतिहासिक अवशेषों संरक्षित रखे गए हैं. लेकिन संरक्षण का जिम्मा संभालने वाला पुरातत्व विभाग अपनी जिम्मेदारियों से लापरवाह नजर आ रहा है.
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जलभराव से बढ़ी समस्या
दरअसल कोरोना काल में कुशीनगर में पर्यटकों का आना बंद हो गया था लेकिन कोरोना खत्म होते ही कुशीनगर में पुनः पर्यटन सीजन की शुरुआत सितम्बर माह में ही शुरू हो गई. यहां विदेशी बौद्ध भिक्षु एवं सैलानियों के अलावा पूरे विश्व से पर्यटक आते हैं. विदेशी पर्यटक कुशीनगर में भगवान बुद्ध से जुड़े तीन स्थलों के अलावे यहां मौजूद पुरातात्विक अवशेषों में भी काफी दिलचस्पी दिखाते हैं. यह फिलहाल जलजमाव के कारण खस्ताहाल हो चुके हैं. ऐसे में सरकार को इन पुरातात्विक अवशेषों के संरक्षण के लिए तत्काल कदम उठाने की जरूरत है. इससे इनकी पहचान देश-विदेश में बनी रहेगी. यदि इस पर्यटन स्थल का संरक्षण किया जाता है तो यह रोजगार के नजरिए से भी काफी अच्छा होगा. यहां कई लोगों की आजीविका पर्यटन गतिविधियों पर निर्भर है.