आज उत्तराखंड अपना स्थापना दिवस मना रहा है. तरक्की की कई कहानियां लिखने के बाद उत्तराखंड में आज भी स्थायी राजधानी एक अहम मुद्दा बना हुआ है.
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कुलदीप नेगी/देहरादून: उत्तराखंड राज्य अपना स्थापना दिवस मना रहा है. अपनी स्थापना से लेकर अब तक के सफर के दौरान राज्य ने विकास की कई इबारत लिखी है तो उतार-चढ़ाव भी कई देखे हैं. हालांकि अब भी राज्य के लिए उसकी स्थायी राजधानी का न होना एक बड़ी चुनौती है. 22 साल हो चुके हैं लेकिन 22 सालों में भी उत्तराखंड राज्य की स्थायी राजधानी तय नहीं हो सकी है. भले ही 22 सालों में राज्य को गैरसैंण के रूप में ग्रीष्मकालीन राजधानी मिली हो लेकिन वहां से भी ग्रीष्मकालीन राजधानी के तौर पर काम शुरू नहीं हो सका है. ये विडंबना नही तो और क्या है कि 22 सालों में सूबे के जनप्रतिनिधि ये तय नहीं कर सके कि स्थायी राजधानी कहां होगी.
जारी है वोट बैंक की सियासत
इसे आप चाहें तो राजनीतिक इच्छाशक्ति या दूरदर्शी सोच की कमी कहें या फिर वोट बैंक की सियासत,लेकिन हकीकत तो ये ही है कि किसी भी दल ने उत्तराखंड की स्थायी राजधानी को लेकर कोई कदम नहीं उठाया. आज भी उत्तराखंड राज्य की स्थायी राजधानी का पता नहीं. राजधानी के नाम पर देहरादून में ही पूरी सुख सुविधाएं जोड़ी जा रही है. न नेता न अधिकारी कोई पहाड़ जाने को राजी नहीं है. राज्य आंदोलनकारी भी इस बात से बेहद आहत हैं कि हम स्थायी राजधानी तय न कर सके और जिस उद्देश्य से राज्य बना वो पूरा न हो सका.
बीजेपी-कांग्रेस में आरोप-प्रत्यारोप
हालांकि बीजेपी ये कहती नजर आ रही है कि अब वक्त आ चुका है जब सर्वदलीय बैठक बुलाकर इस मामले को सुलझाया जाना चाहिए. बीजेपी प्रवक्ता सुरेश जोशी का कहना है कि जल्द सर्वदलीय बैठक बुलाकर ये तय हो जाना चाहिए. कांग्रेस भी इसे दुर्भाग्यपूर्ण करार दे रही कि 22 सालों में स्थायी राजधानी तय नहीं हुई.
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कांग्रेस प्रदेश उपाध्यक्ष संगठन मथुरादत्त जोशी का कहना है कि राजधानी तो पूर्व में ही बीजेपी को तय कर लेनी चाहिए थी. जब राज्य बना और अंतरिम सरकार भी बीजेपी की बनी. लेकिन देर आये दुरस्त आये. अब वक्त आ गया है जब स्थायी राजधानी पर निर्णय हो जाना चाहिए.