Navratri 2022: शिव की नगरी में मां शैलपुत्री का प्राचीन मंदिर, दुनिया में ऐसा मंदिर और कहीं नहीं
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Navratri 2022: शिव की नगरी में मां शैलपुत्री का प्राचीन मंदिर, दुनिया में ऐसा मंदिर और कहीं नहीं

Navratri 2022: वाराणसी में मां शैलपुत्री का एक प्राचीन मंदिर है, जिसकी बहुत मान्यता है. नवरात्रि के समय में यहां पैर रखने की जगह नहीं होती. पढ़ें इस मंदिर का महत्व...

Navratri 2022: शिव की नगरी में मां शैलपुत्री का प्राचीन मंदिर, दुनिया में ऐसा मंदिर और कहीं नहीं

Navratri 2022: 26 सितंबर से नवरात्रि के पावन दिन शुरू हो गए हैं. आज पहले दिन मां दुर्गा के शैलपुत्री रूप को समर्पित है. आज के दिन श्रद्धालुओं ने अपने घरों में कलश स्थापना कर ली है और शैलपुत्री की आराधना की जा रही है. इसी के साथ देवी मां के सभी मंदिरों में भक्तों का तांता लगा हुआ है. इसी कड़ी में हम आपको बताते हैं उस मंदिर के बारे में, जो मां शैलपुत्री का सबसे प्राचीन मंदिर माना जाता है. 

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बनारस में है यह मां शैलपुत्री का प्राचीन मंदिर
वाराणसी मंदिरों का शहर है. शिव की नगरी काशी में मां दुर्गा के 'शैलपुत्री' रूप का यह पहला मंदिर बताया गया है. अलईपुर में स्थित यह प्राचीन मंदिर सिटी स्टेशन से करीब 4 किलोमीटर की दूरी पर है. मानना है कि मां शैलपुत्री खुद इस मंदिर में विराजमान हैं और नवरात्रि के पहले दिन भक्तों को साक्षात दर्शन देती हैं. 

सुहागिनों के लिए आज महत्वपूर्ण दिन
जानकारी के मुताबिक, नवरात्रि के पहले दिन इस मंदिर में पैर रखने की जगह नहीं होती. यहां आकर सुहागिन महिलाएं अपने पति की लंबी उम्र की कामना करती हैं. भक्त देवी मां के लिए लाल चुनरी, लाल फूल और नारियल लेकर आते हैं और महाआरती में शामिल होकर दांपत्य जीवन की सभी परेशानियों को दूर करने की कामना करते हैं. मां शैलपुत्री की कथा सुनने के लिए यहां दूर-दूर से लोग आते हैं. 

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मंदिर की स्थापना की जानकारी नहीं
बताया जाता है कि यह मंदिर कब स्थापित हुआ इसकी जानकारी नहीं है. हालांकि, यहां के सेवादारों का दावा है कि पूरी दुनिया में ऐसा मंदिर और कहीं नहीं है, क्योंकि यहां मां शैलपुत्री खुद विराजमान हुईं थीं.

मां शैलपुत्री के विराजमान होने को लेकर यह कहती हैं कथाएं
माना जाता है कि माता पार्वती ने हिमवान की पुत्री के रूप में जन्म लिया था. इसलिए उनका नाम मां शैलपुत्री हुआ. माता एक बार महादेव की किसी बात से नाराज थीं और कैलाश छोड़कर काशी आ गईं. लेकिन, भोलेनाथ देवी को नाराज कैसे रहने देते? इसलिए खुद उन्हें मनाने के लिए वाराणसी आए. उस समय माता ने शिव जी को बताया कि उन्हें यह स्थान बहुत भा गया है. अब वह यहीं रहना चाहती हैं. और यह कहकर वह इसी मंदिर के स्थान पर विराजमान हो गईं. यही वजह है कि यहां पर यह आलीशान प्राचीन मंदिर बना और हर नवरात्र यहां भक्तों का तांता लगा रहता है.

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मां शैलपुत्री के हैं कई नाम
हिमालय की गोद में जन्म लेने वाली मां का नाम इसलिए ही शैलपुत्री पड़ा. बता दें, माता का वाहन वृषभ है. यही वजह है कि उन्हें देवी 'वृषारूढ़ा' भी कहा जाता है. मां के दाएं हाथ में त्रिशूल और बाएं हाथ में कमल होता है. इस रूप को प्रथम दुर्गा भी कहा गया है. बता दें, मां शैलपुत्री को ही सती के नाम से भी जाना जाता है. पार्वती और हेमवती भी इसी देवी रूप के नाम हैं. 

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