महाकुंभ में शाही स्नान की शुरुआत नागा साधुओं से होती है. इन्हें धर्म का रक्षक माना जाता है और इन्हें विशेष सम्मान देने के लिए सबसे पहले डुबकी लगाने का अधिकार दिया जाता है. इनके स्नान के बाद ही आम श्रद्धालु पवित्र नदियों में स्नान कर सकते हैं.
भारत में नागा साधुओं के 13 अखाड़े हैं. यह पहले से तय है कि हर महाकुंभ और कुंभ में किस अखाड़े को सबसे पहले शाही स्नान का मौका मिलेगा. इस परंपरा की शुरुआत अंग्रेजों के समय में अखाड़ों के बीच सामंजस्य बनाए रखने के लिए हुई थी.
प्रयागराज महाकुंभ 2025 में सबसे पहले पंचायती महानिर्वाणी अखाड़ा शाही स्नान करेगा. हरिद्वार कुंभ में निरंजनी अखाड़ा, और उज्जैन व नासिक में जूना अखाड़ा यह परंपरा निभाते हैं.
पहले अखाड़े के महंत या सर्वोच्च संत पवित्र नदी में प्रवेश करते हैं और अपने इष्ट देव को स्नान करवाते हैं. इसके बाद अन्य नागा साधु स्नान करते हैं. इस प्रक्रिया के बाद ही आम श्रद्धालुओं को स्नान की अनुमति मिलती है.
मान्यता है कि महाकुंभ में डुबकी लगाने से सभी पाप धुल जाते हैं और मानसिक व आध्यात्मिक शांति प्राप्त होती है. इस दौरान ग्रह-नक्षत्रों की स्थिति नदी के जल को अमृत समान बनाती है.
श्रद्धा और विश्वास के साथ महाकुंभ में स्नान करने से व्यक्ति की कई मनोकामनाएं पूरी होती हैं. इसे जीवन के पुण्य कार्यों में से एक माना जाता है.
महाकुंभ में नागा साधुओं का स्नान देखना एक अनूठा अनुभव होता है. यह धार्मिक आयोजन विश्व भर से श्रद्धालुओं और पर्यटकों को आकर्षित करता है.
वर्षों पुरानी यह परंपरा आज भी अखाड़ों के बीच किसी विवाद के बिना चली आ रही है. हालांकि कभी-कभी जमीन आवंटन को लेकर विवाद हो जाता है. इस बार अखाड़ा परिषद और मेला प्रशासन में विवाद सामने आया था.
महाकुंभ केवल स्नान का नहीं, बल्कि भारतीय संस्कृति, आध्यात्मिकता और परंपरा का महापर्व है. यह आयोजन लोगों को धर्म, साधना और आस्था की गहराईयों से जोड़ता है.
लेख में दी गई ये जानकारी सामान्य स्रोतों से इकट्ठा की गई है जो धार्मिक मान्यताओं पर आधारित है. जी यूपीयूके इसकी प्रामाणिकता का दावा या पुष्टि नहीं करता.