लक्खा मेला : काशी में 478 साल पुराने नाटी इमली के भरत मिलाप में उमड़ा सैलाब, दशहरा पर रावण वध के बाद हुआ राम का भरत से मिलन
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लक्खा मेला : काशी में 478 साल पुराने नाटी इमली के भरत मिलाप में उमड़ा सैलाब, दशहरा पर रावण वध के बाद हुआ राम का भरत से मिलन

(जयपाल/वाराणसी) विजयादशमी के दूसरे दिन काशी (Kshi) का विश्व प्रसिद्ध लक्खा मेला (Lakkha Mela)  478 सालों से लगातार आयोजित हो रहा है.दशहरा (Dussehra) पर रावण वध के बाद भगवान राम के भरत से मिलन यानी भरत मिलाप के इस पारंपरिक आयोजन में आज भी आस्था का सैलाब उमड़ता है.

Lakkha Mela Nati Imli Bharat Milap

Nati Imli Ka Bharat Milap : (जयपाल/वाराणसी) विजयादशमी के दूसरे दिन काशी (Kshi) का विश्व प्रसिद्ध लक्खा मेला (Lakkha Mela)  478 सालों से लगातार आयोजित हो रहा है.दशहरा (Dussehra) पर रावण वध के बाद भगवान राम के भरत से मिलन यानी भरत मिलाप के इस पारंपरिक आयोजन में आज भी आस्था का सैलाब उमड़ता है. गुरुवार को जब गोधूलि बेला में भरत से प्रभु श्रीराम के मिलन का मार्मिक मंचन हुआ तो उसे देख तमाम दर्शकों की आंखें छलक आईं. 14 साल वनवास के बाद अयोध्या (Ayodhya) लौटते ही भगवान श्रीराम ने जब भरत को गले लगाया तो चारों दिशाओं में जय श्रीराम का जयघोष गूंजा.

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विश्व प्रसिद्ध नाटी इमली के भरत मिलाप की अलौकिक लीला देखने के लिए लोग सुबह 10 बजे से ही जुटना शुरू हो गए थे. शाम के समय रामलीला प्रारंभ होने के पहले ही हल्की बारिश के बीच भी इलाके की सड़कों से लेकर मकानों की छतों तक लोगों की भीड़ जुट गई.श्रीचित्रकूट रामलीला समिति द्वारा भरत मिलाप की यह लीला पिछले 478 सालों से चली आ रही है.चित्रकूट की रामलीला के परंपरा अनुसार आश्विन शुक्ल एकादशी को भरत मिलाप का आयोजन होता है.

14 वर्ष के वनवास के दौरान भगवान राम दशानन का वध करने के बाद अयोध्या की ओर लौटते हैं. पत्नी सीता और भाई लक्ष्मण के साथ पुष्पक विमान पर सवार होकर मर्यादा पुरुषोत्तम राम भरत से मिलने पहुंचते हैं. इस दौरान काशी नरेश  परिवार के कुंवर अनंत नारायण सिंह ने सेवादारों को सोने की गिन्नी दी. सैकड़ों सालों से राजशाही परंपरा के निर्वहन के तहत ऐसा होता आ रहा है. 

उल्लेखनीय है कि इस बार दशहरा पर रावण का पुतला जलाए जाने के दिन कानपुर, लखनऊ, उन्नाव, बरेली से लेकर अयोध्या तक जबरदस्त बारिश देखने को मिली. इससे कई जगह रामलीला ग्राउंड पर रावण का पुतला गल गया. उसका सिर्फ ढांचा भी रह गया. कई जगह तो पेट्रोल डालकर उसे जलाना पड़ा. जबकि कुछ जगह रामलीला मैदान पर रावण दहन को अगले दिन के लिए टालना पड़ा.

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