Baba Khatu Shyam Katha: कौन हैं बाबा खाटू श्याम? भगवान कृष्ण ने कलियुग में पूजे जाने का दिया था आशीर्वाद, पढ़ें उनकी कथा
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Baba Khatu Shyam Katha: कौन हैं बाबा खाटू श्याम? भगवान कृष्ण ने कलियुग में पूजे जाने का दिया था आशीर्वाद, पढ़ें उनकी कथा

Khatu Shyam Baba Birthday 2023: कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष की एकादशी तिथि को खाटू श्याम बाबा का जन्मोत्सव बड़ी धूमधाम से मनाया जाता है.  उनके दर्शन के लिए दूर-दूर से भक्त आते हैं. नीचे पढ़िए बाबा खाटू श्याम से जुड़ी कथा. 

Baba Khatu Shyam Katha: कौन हैं बाबा खाटू श्याम? भगवान कृष्ण ने कलियुग में पूजे जाने का दिया था आशीर्वाद, पढ़ें उनकी कथा

Khatu Shyam Baba Birthday 2023: हिंदू पंचांग के अनुसार कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष की एकादशी तिथि को खाटू श्याम बाबा का जन्मोत्सव बड़ी धूमधाम से मनाया जाता है. इस साल यह 23 नवंबर गुरुवार को है. जन्मोत्सव पर खाटू श्याम बाबा को फूलों से सजाकर कई तरह का भोग लगाया जाता है. उनके दर्शन के लिए दूर-दूर से भक्त आते हैं. नीचे पढ़िए बाबा खाटू श्याम से जुड़ी कथा. 

श्री खाटू श्याम जी कथा
महाभारत काल में लगभग साढ़े पांच हज़ार वर्ष पहले एक महान आत्मा का अवतरण हुआ. जिसे हम भीम पौत्र बर्बरीक के नाम से जानते हैं. महीसागर संगम स्थित गुप्त क्षेत्र में नवदुर्गाओं की सात्विक और निष्काम तपस्या कर बर्बरीक ने दिव्य बल और तीन तीर व धनुष प्राप्त किए.

कुछ वर्ष के बाद कुरुक्षेत्र में उपलब्ध नामक जगह पर युद्ध के लिए कौरव और पांडवों की सेनाएं एकत्रित हुई. युद्ध का शंखनाद होने ही वाला था कि यह वृतांत बर्बरीक को ज्ञात हुआ और उन्होंने माता का आशीर्वाद ले युद्धभूमि की तरफ प्रस्थान किया. उनका इरादा था कि युद्ध में जो भी हारेगा उसकी सहायता करूंगा. भगवान श्री कृष्ण को जब यह वृतांत ज्ञात हुआ तो उन्होंने सोचा कि ऐसी स्थिति में युद्ध कभी समाप्त नहीं होने वाला. अतः उन्होंने ब्राह्मण का वेश धारण कर बर्बरीक का मार्ग रोककर उनसे पूछा कि आप कहां प्रस्थान कर रहे हैं. बर्बरीक ने अपना ध्येय बताया कि वह कुरुक्षेत्र जाकर अपना कर्तव्य निर्वाह करेंगे और इस पर ब्राह्मण रूप में श्री कृष्ण ने उन्हें अपना कौशल दिखाने को कहा. 

बर्बरीक ने एक ही तीर से पेड़ के सभी पत्तों को भेद दिया सिवाय एक पत्ते के जो श्री कृष्ण ने अपने पैरों के नीचे दबा दिया था. बर्बरीक ने ब्राह्मण रूपी श्री कृष्ण से प्रार्थना की कि वह अपना पैर पत्ते के ऊपर से हटाए वरन् आपका पैर घायल हो सकता है. श्री कृष्ण ने अपना पैर हटा लिया व बर्बरीक से एक वरदान मांगा. बर्बरीक ने कहा हे यजमान आप जो चाहे मांग सकते हैं मैं वचन का पूर्ण पालन करूंगा. ब्राह्मण रूपी श्री कृष्ण ने शीश दान मांगा. यह सुनकर बर्बरीक तनिक भी विचलित नहीं हुए परंतु उन्होंने श्रीकृष्ण को अपने वास्तविक रूप में दर्शन देने की बात की क्योंकि कोई भी साधारण व्यक्ति यह दान नहीं मांग सकता. तब श्रीकृष्ण अपने वास्तविक रूप में प्रकट हुए. उन्होंने महाबली, त्यागी, तपस्वी वीर बर्बरीक का मस्तक रणचंडिका को भेंट करने के लिए मांगा और साथ ही वरदान दिया कि कलयुग में तुम मेरे नाम से जाने जाओगे. मेरी ही शक्ति तुम में निहित होगी. देवगण तुम्हारे मस्तक की पूजा करेंगे जब तक यह पृथ्वी, नक्षत्र, चंद्रमा तथा सूर्य रहेंगे तब तक तुम, लोगों के द्वारा मेरे श्री श्याम रूप में पूजनीय रहोगे. मस्तक को अमृत से सींचाऔर अजर अमर कर दिया. मस्तक ने संपूर्ण महाभारत का युद्ध देखा एवं युद्ध के निर्णायक भी रहे. युद्ध के बाद महाबली बर्बरीक कृष्ण से आशीर्वाद लेकर अंतर्ध्यान हो गए.

बहुत समय बाद कलयुग का प्रसार बढ़ते ही भगवान श्याम के वरदान से भक्तों का उद्धार करने के लिए वह खाटू में चमत्कारी रूप से प्रकट हुए. एक गाय घर जाते समय रास्ते में एक स्थान पर खड़ी होकर चारों थनों से दूध की धाराएं बहाती थी. जब ग्वाले ने यह दृश्य देखा तो सारा वृत्तांत भक्त नरेश (खंडेला के राजा) को सुनाया. राजा भगवान का स्मरण कर भाव विभोर हो गया. स्वप्न में भगवान श्री श्याम देव ने प्रकट होकर कहा मैं श्यामदेव हूं जिस स्थान पर गाय के थन से दूध निकलता है, वहां मेरा शालिग्राम शिलारूप विग्रह है, खुदाई करके विधि विधान से प्रतिष्ठित करवा दो. मेरे इस शिला विग्रह को पूजने जो खाटू आएंगे, उनका सब प्रकार से कल्याण होगा. खुदाई से प्राप्त शिलारूप विग्रह को विधिवत शास्त्रों के अनुसार प्रतिष्ठित कराया गया.

चौहान राजपूतों में नर्बदार कंवर हुई है जिन्होंने इस विग्रह को आतताईयों के विध्वंस से बचाने हेतु झोपड़े में रखा एवं सेवा पूजा की. औरंगजेब के शासनकाल में पुराने मंदिर का विध्वंस हो गया तथा उसके बाद जहां भगवान श्री श्याम देव का विग्रह प्रतिष्ठित किया गया. वह आज भी विद्यमान है जहां देश के सभी कोनों से श्याम प्रेमी पूजा अर्चना एवं दर्शनार्थ आते हैं. अब नर्मदा कंवर के खानदान के ही चौहान राजपूत पुजारी हैं.

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