कौन हैं पसमांदा मुसलमान? बीजेपी लखनऊ के पसमांदा मुस्लिम बुद्धिजीवी सम्मेलन में नई रणनीति को देगी धार
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कौन हैं पसमांदा मुसलमान? बीजेपी लखनऊ के पसमांदा मुस्लिम बुद्धिजीवी सम्मेलन में नई रणनीति को देगी धार

Pasmanda Muslims : बीजेपी लखनऊ में 16 अक्टूबर को पिछड़े मुसलमानों को साधने की रणनीति बनाएगी

Pasmanda Muslim Sammelan

Pasmanda Muslims Sammelan BJP :  पसमांदा मुसलमान कौन हैं,जिनको लेकर बीजेपी लखनऊ के पसमांदा मुस्लिम बुद्धिजीवी सम्मेलन में नई रणनीति को धार देने वाली है. पीएम मोदी इससे पहले पसमांदा मुस्लिमों को लेकर बड़ी बात कह चुके हैं. माना जा रहा है कि इस सम्मेलन के जरिये बीजेपी पिछड़े और शोषण के शिकार मुस्लिम समाज को अपनी ओर खींचने की प्रयास करेगी.भारतीय जनता पार्टी अल्पसंख्यक मोर्चा लखनऊ के क्राइस्टचर्च कॉलेज में 16 अक्टूबर 2022 को पसमांदा बुद्धिजीवी सम्मेलन का आयोजन करेगा. इसमें उत्तर प्रदेश के डिप्टी सीएम ब्रजेश पाठक, राज्यसभा सांसद गुलाम नबी खटाना, यूपी सरकार में अल्पसंख्यक मामलों के मंत्री दानिश आजाद अंसारी, अशफाक सैफी के साथ पसमांदा समाज के मुस्लिम बुद्धिजीवी भी शामिल होंगे.  यूपी में प्रदेश अध्यक्ष अल्पसंख्यक मोर्चा कुंवर बासित अली ने ये जानकारी दी है. उन्होंने कहा कि रायनी, सलमानी, गद्दी, कुरैशी, मलिक, अंसारी, सैफी समाज की समस्याओं पर ध्यान केंद्रित करेगी.

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अली ने कहा, प्रधानमंत्री मोदी की पसमांदा मुस्लिमों को मुख्यधारा में लाने की जो सोच है, उसको लेकर बीजेपी आगे बढ़ रही है. भाजपा के लिए पसमांदा मुसलमान सिर्फ एक वोटबैंक नहीं हैं, पिछड़े मुसलमानों को पंडित दीनदयाल उपाध्याय की अंत्योदय विचारधारा के अनुसार, मुख्यधारा में लाने का प्रयास किया जा रहा है. माना जा रहा है कि उत्तर प्रदेश नगर निकाय चुनाव में बीजेपी मुस्लिम बहुल अल्पसंख्यक इलाकों में पूरा जोर लगाएगी. 200 से ज्यादा नगर पालिका नगर पंचायत की ऐसी सीटें हैं, जहां मुस्लिम वोट निर्णायक स्थिति में हैं. बीजेपी मिशन 2024 के पहले अपने वोट प्रतिशत को यूपी में 60 फीसदी के आसपास लाना चाहती है, ऐसे में अल्पसंख्यकों पर भी पार्टी का फोकस है. उल्लेखनीय है कि पीएम नरेंद्र मोदी ने एक चुनावी रैली में कहा था कि मुस्लिमों के बीच भी सोशल इंजीनियरिंग की दरकार है.मुस्लिम धर्म के भीतर भी जातिगत भेदभाव का मुद्दा भी उठा था. पसमांदा मुसलमानों के सामाजिक-आर्थिक पिछड़ेपन को लेकर नए सिरे से बहस छिड़ गई थी. 

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भारतीय मुसलमानों में 85 फीसदी पसमांदा
जानकारी के मुताबिक, देश में मुस्लिमों की जनसंख्या का 85 फीसदी पसमांदा मुसलमानों का है. बाकी 15 प्रतिशत मुस्लिम उच्च वर्ग से ताल्लुक रखते हैं. ऐसे मुस्लिम दलित और पिछड़े मुस्लिम माने जाते हैं.ये शैक्षणिक, आर्थिक, सामाजिक आधार पर पिछड़े होते हैं.इस धड़े को भारत में पसमांदा मुस्लिम के दायरे में रखा जात है. पसमांदा मुसलमानों को आरक्षण और अन्य कल्याणकारी योजनाओं के जरिये मुख्यधारा में लाने की कई पहल अलग-अलग राज्य सरकारों ने की है. यूपीए के दौरान सच्चर कमेटी का गठन भी हुआ था. इन्हें अशरफ कहा जाता है. बाकी 85 फीसदी अरजाल और अज़लाफ़ दलित और बैकवर्ड कास्ट के माने जाते हैं.

पसमांदा मुस्लिम के मायने
पसमांदा मूलत: फारसी शब्द है.इसका अभिप्राय ऐसे लोगों से है, जो वंचित और शोषित रहे हैं. पसमांदा आंदोलन देश में कई बार चला है, लेकिन उसे राष्ट्रीय स्तर व्यापक राजनीतिक समर्थन नहीं मिला. 

पसमांदा या मोमिन आंदोलन
भारत में 1990 के दशक में पसमांदा मुसलमानों के अधिकार में आंदोलन छेड़े गए थे. ऑल इंडिया यूनाइटेड मुस्लिम मोर्चा के नेता एजाज अली और पटना के अली अनवर ने ऑल इंडिया पसमांदा मुस्लिम महज नामक इस्लामिक आर्गेनाइजेशन बनाया. इन मुस्लिम संगठनों के जरिये पसमांदा समाज के छोटे-छोटे संगठनों को एकजुट किया गया. खासकर उत्तर प्रदेश, बिहार-झारखंड, दिल्ली, बंगाल समेत एक दर्जन राज्यों के पसमांदा मुसलमानों की नुमाइंदगी की कोशिश हुई. मोमिन आंदोलन भी काफी चर्चित रहा. 

मुस्लिमों में जाति व्यवस्था का जहर
भारतीय मुससमान भी जाति व्यवस्था से पीड़ित हैं. उच्च जाति के मुस्लिमों को अशरफ कहा जाता है, जिनका ताल्लुक पश्चिम या मध्य एशियाई मुल्कों से है. इसमें सैयद, शेख, पठान आदि माने जाते हैं.भारत में उच्च जातियों से इस्लाम धर्म कबूल करने वाले भी इसी दायरे में रखे गए. यानी मुस्लिम राजपूत, त्यागी मुस्लिम, चौधरी मुस्लिम, गौर मुस्लिम, सैयद को मुस्लिम ब्राह्मण के तौर पर जाना गया.

फारवर्ड और बैकवर्ड की लड़ाई
मुस्लिमों में वर्ण या जाति के आधार पर सामाजिक जातीय असमानता की खाई चौड़ी होती रही है. मुसलमानों में अल्ताफ (बैकवर्ड मुस्लिम) और अरजाल (दलित मुस्लिम) इसकी नजीर पेश करते हैं. 

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