NOTA : यूपी निकाय चुनाव में क्यों गुलाबी बटन से डरे हैं प्रत्याशी, नगर निगम मेयर से लेकर पार्षद तक मतदाताओं को मना रहे
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NOTA : यूपी निकाय चुनाव में क्यों गुलाबी बटन से डरे हैं प्रत्याशी, नगर निगम मेयर से लेकर पार्षद तक मतदाताओं को मना रहे

उत्तर प्रदेश निकाय चुनाव चल रहा है और इस चुनाव के लिए पहले चरण का मतदान संपन्न हो चुका है. हालांकि किसी भी चुनाव में एक एक मतदाता और एक एक मत महत्वपूर्ण होता है. हालांकि, इस यूपी निकाय चुनाव के प्रथम चरण में पड़े कम वोट के कारण 1-1 वोट की अहमियत बढ़ गई है.

NOTA (फाइल फोटो)

लखनऊ : उत्तर प्रदेश निकाय चुनाव चल रहा है और इस चुनाव के लिए पहले चरण का मतदान संपन्न हो चुका है. हालांकि किसी भी चुनाव में एक एक मतदाता और एक एक मत महत्वपूर्ण होता है. हालांकि, इस यूपी निकाय चुनाव के प्रथम चरण में पड़े कम वोट के कारण 1-1 वोट की अहमियत बढ़ गई है. वहीं शहरी इलाकों में जो भी वोटर नाराज हैं उनके द्वारा चल रही नोटा दबाने की मुहिम से प्रत्याशियों की चिंता बढ़ गई है. मेयर उम्मीदवार हों या फिर नगर निगम पार्षद के उम्मीदवार ही क्यों ने हों , सभी मतदाताओं से नोटा का गुलाबी बटन न दबाने की अपील कर रहे हैं. उनकी मतदाताओं से अपील है कि उन्हें वोट दें ताकि उनकी जीत सुनिश्चित हो सके. 

नोटा का प्रभाव 
निकाय चुनाव के प्रथम चरण में कम वोटों का पड़ना या फिर नोटा दबाए जाने की मुहीम छेड़ना कोई छोटी बात नहीं है. इससे एक उम्मीदवार की जीत हार पर बहुत गहरा असर पड़ता है. इसका एक उदाहरण 2017 में देखने को मिला था. 2017 के विधानसभा चुनाव में अलीगढ़ में जो 49 प्रत्याशी हारे थे वो नोटा से ही हारे थे. 7 विधानसभा सीटों पर 77 प्रत्याशी खड़े हुए थे और केवल नोटा से अधिक वोट 28 प्रत्याशी ही पा सके थे. 59 प्रत्याशी की तो जमानत ही जब्त हो चुकी थी. इनमें 49 प्रत्याशी ने तो नोटा से भी कम वोट पाए थे. 

नोटा कब और कैसे शुरू हुआ? 
चुनावों के दौरान नोटा इतना अहम साबित होने लगा है कि अन्य प्रत्याशियों की तरह इसकी भी गिनती होने लगी है जो कि प्रत्याशियों के सिर का दर्द भी बन चुका हैं. 
जब बैलेट पेपर से वोट दिए जाते थे तब तो कोई प्रत्याशी पसंद न आने पर वोटर को अधिकार था कि मत पेटिका में वो खाली बैलट पेपर ही डाल सकता है. ऐसे में EVM के आने के बाद ऐसी जरूरत महसूस हुई कि कोई भी प्रत्याशी अगर पसंद न हो तो इसके लिए भी वोटर के सामने एक विकल्प होना चाहिए. फिर साल 2009 में सुप्रीम कोर्ट को चुनाव आयोग ने नोटा का ऑप्शन दिया. 

नोटा के बारे में 
नोटा के समर्थन में डाली गई एक याचिका के बाद साल 2013 में कोर्ट ने वोटर्स को नोटा का विकल्प देने का फैसला सुनाया. साल 2014 में हुए राज्यसभा चुनाव में मतदान के दौरान पहली दफा नोटा का ऑफ्शन इस्तेमाल में लाया गया. साल 2018 में भारत में पहली दफा उम्मीदवारों के समकक्ष नोटा को दर्जा मिल पाया. EVM में सबसे आखिर में एक बटन होता है जिसका रंग गुलाबी होता है. इसी बटन का नाम नोटा है और वोटर को जब कोई प्रत्याशी पसंद न हो तो वह इस बटन को दबाकर अपना वोट देता है. NOTA का मतलब है None of The Above मतलब कि ऊपर वालों में से कोई भी नहीं.

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