Kajli Mela in Mahoba: यूपी में आल्हा-ऊदल की याद में लगता है कजली मेला, जानिए 800 साल पुराने मेले की क्‍या है मान्‍यता
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Kajli Mela in Mahoba: यूपी में आल्हा-ऊदल की याद में लगता है कजली मेला, जानिए 800 साल पुराने मेले की क्‍या है मान्‍यता

Mahoba News : आल्हा-ऊदल की वीरता और पराक्रम से जुड़े इस कजली मेले को इस बार सात दिन से बढ़ाकर 9 दिनों का कर दिया गया. मेले में छतरपुर, टीकमगढ़, पन्‍ना, सागर समेत दतिया से लोग पहुंच रहे हैं. 

Mahoba kajli mela

Mahoba News : महोबा में ऐतिहासिक कजली मेले की शुरुआत हो गई. खास बात यह है कि आल्हा-ऊदल की वीरता और पराक्रम से जुड़े इस कजली मेले को इस बार सात दिन से बढ़ाकर 9 दिनों का कर दिया गया. मेले में छतरपुर, टीकमगढ़, पन्‍ना, सागर समेत दतिया से लोग पहुंच रहे हैं. आल्हा ऊदल की वीरता का बखान करने वाले इस मेले का इतिहास करीब 800 साल पुराना है. 

कहा जाता है कि 1182 में राजा परमाल की बेटी चंद्रावल 1400 सहेलियों के साथ भुजरी के विसर्जन के लिए कीरत सागर जा रही थीं. लेकिन रास्ते में पृथ्वीराज चौहान के सेनापति चामुंडा राय ने हमला बोल दिया था. पृथ्वीराज चौहान की योजना चंद्रावली का अपहरण कर उसका विवाह बेटे सूरज सिंह से कराए जाने की थी. यह वो दौर था जब आल्हा ऊदल को तमाम आरोपों के कारण परमाल के राज्य से निकाल दिया गया था. दोनों अपने मित्र मलखान के पास कन्नौज में निर्वासन की जिंदगी बिता रहे थे. रक्षाबंधन के दिन जब राजकुमारी चंद्रावल के समूह को पृथ्वीराज की सेना ने घेर लिया. आल्हा ऊदल के न रहने से महारानी मल्हना तलवार लेकर युद्ध में कूद पड़ी थीं. दोनों सेनाओं में भयंकर युद्ध में राजकुमार अभई मारा गया.  पृथ्वीराज सेना राजकुमारी चंद्रावल को अपने साथ ले जाने में जुटी थी. तभी साधु का भेष धारण करके आए वीर आल्हा ऊदल ने परम मित्र मलखान के साथ शत्रुओं का मुकाबला किया. चंदेल और चौहान वंशजों की सेनाओं में भयंकर युद्ध में कीरतसागर की भूमि खून से लाल हो गई,

दोनों सेना के हजारों योद्धा मारे गए. राजकुमारी चंद्रावल और उनकी सहेलियां अपने भाइयों को राखी बांधने की जगह जंग में अपना जौहर दिखा रही थीं. इससे भुजरिया विसर्जन भी नहीं हो सका. यही वजह है कि उस वक्त से अब तक यहां एक दिन बाद भुजरिया विसर्जन और रक्षाबंधन मनाने की परंपरा है.

महोबा के इस युद्ध में विजय पाने के वजह से ही कजली महोत्सव मनाया जाता है. सावन माह में कजली मेला के समय गांवों में चौपालों में आल्हा ऊदल का गायन होता है. इससे वीर बुंदेलों की 1100 साल पहले हुई इस लड़ाई का यशोगान हर व्यक्ति को जोश से भर देता है. 

त्‍याग और बलियान के रूप में किया जाता है याद 
8वीं सदी के सबसे पुराने ऐतिहासिक कजली मेले का भाजपा सांसद ने फीता काटकर शुभारंभ किया. महोबा का कजली मेला आल्हा-ऊदल के शौर्य, स्वाभिमान और मातृभूमि प्रेम का अनूठा उदाहरण है. आल्हा और ऊदल के पराक्रम से जुड़ा कजली मेला लोगों को त्याग और बलिदान के रूप में याद किया जाता है. ऐतिहासिक कजली मेले में सुरक्षा व्यवस्था को लेकर को लेकर पुलिस प्रशासन ने पुख्‍ता इंतजाम किए हैं. 

चप्‍पे-चप्‍पे पर पुलिस फोर्स 
पहले दिन शहर के शहीद स्थल हवेली दरवाजा से शोभायात्रा भी निकाली गई. खास बात यह है कि सदियों बाद भी राज कुमारी चन्दावल के डोले को लूटने की आशंका के चलते एक महिला सब इंस्पेक्टर सहित 12 महिला पुलिस कर्मियों को तैनात किया गया है. मेले में चप्पे-चप्पे पर पुलिस फोर्स तैनात है. 

दिनभर चलता रहेगा गायन कार्यक्रम 
मेलास्थल कीरत सागर तट पर बने सांस्कृतिक मंच में बुंदेली लोक संस्कृति की धूम रहेगी. इसके अलावा दूसरे छोर पर आल्हा मंच में दिनरात आल्हा गायन, लोकगीत, गजल आदि के कार्यक्रम चलेंगे. कजली मेले को लेकर पहले से ही लोगों के आने का सिलसिला शुरू हो गया. अधिकांश लोग गुरुवार को बहनों से राखी बंधवाने के बाद कजली मेले में शामिल हुए. 

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