यूपी के ये सियासी सूरमा चुनाव में आज भी 'जिंदा', रैलियों से सड़क तक कायम है इन राजनीतिक धुरंधरों का जलवा
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यूपी के ये सियासी सूरमा चुनाव में आज भी 'जिंदा', रैलियों से सड़क तक कायम है इन राजनीतिक धुरंधरों का जलवा

Lok Sabha Chunav 2024:   सियासी दांव से विरोधियों को पस्त करने वाले मुलायम सिंह यादव, अजित सिंह और कल्याण सिंह की तिकड़ी के दिवंगत होने के बाद ये सियासी सूरमा चुनाव में आज भी 'जिंदा' हैं. रैलियों से लेकर स़ड़क तक इन राजनीतिक धुरंधरों का जलवा कायम है. 

यूपी के ये सियासी सूरमा चुनाव में आज भी 'जिंदा', रैलियों से सड़क तक कायम है इन राजनीतिक धुरंधरों का जलवा

Lok Sabha Chunav 2024: सियासी दांव से विरोधियों को पस्त करने वाले मुलायम सिंह यादव, अजित सिंह और कल्याण सिंह की तिकड़ी के दिवंगत होने के बाद यूपी के ये सियासी सूरमा चुनाव में आज भी 'जिंदा' हैं. रैलियों से लेकर स़ड़क तक इन राजनीतिक धुरंधरों का जलवा कायम है. तीनों से जुड़े नारों "जिसका जलवा कायम है, उसका नाम मुलायम है, कल्याण सिंह तुम संघर्ष करो हम तुम्हारे साथ हैं, अजित सिंह आए हैं हरित प्रदेश लाए हैं."  की गूंज भले सुनाई न दे लेकिन इनकी चर्चा आज भी सियासी गलियारों में छिड़ी नजर आती है. 

90के दशक के 'सिंह इज किंग'
90के दशक में चाहें समाजवादी पार्टी मुखिया मुलायम सिंह यादव हों या बीजेपी नेता कल्याण सिंह और रालोद के अजित सिंह, यूपी की राजनीति में तीनों 'सिंह इज किंग' माने जाते थे. अजित सिंह का निधन 6 मई 2021 को गया जबकि कल्याण सिंह 21 अगस्त 2021 और  10 अक्टूबर 2022 को मुलायम सिंह यादव ने इस दुनिया को अलविदा कह दिया. करीब चार दशक की राजनीति में यह पहला मौका होगा जब तीनों दिवंगत नेताओं के बिना चुनाव होंगे. 

मुलायम सिंह यादव 
सियासी अखाड़े में मुलायम सिंह यादव ने बड़े-बडे सूरमा को चित किया था. कुश्ती का गुर रखने वाले मुलायम सिंह ने सियासी अखाड़े में अपनी पारी की शुरुआत साल 1967 में की. जब महज 28 साल की उम्र में वह जसवंत नगर सीट से पहली बार सांसद बने. इससे बाद 1977 मे सहकारिता मंत्री से लेकर उत्तर प्रदेश के तीन बार मुख्यमंत्री बने. वह 7 बार सांसद रहने के साथ ही देश के रक्षामंत्री भी रहे. उन्होंने 1992 में समाजवादी पार्टी की स्थापना की थी. उनको नेताजी की पहचान मिली थी.

कल्याण सिंह 
90 के दशक में यूपी में कल्याण सिंह बीजेपी के प्रमुख चेहरों में थे.  अलीगढ़ के मढ़ौली में 1932 को जन्मे कल्याण सिंह ने पढ़ाई के बाद गृह जिले से शिक्षक के तौर पर शुरुआत की लेकिन आगे चलकर प्रदेश की दो बार 1991, 1997 में बागडोर भी संभाली. अयोध्या में बाबरी विध्वंस के बाद उनकी पहचान प्रमुख हिंदू नेता की तौर पर होने लगी. बीजेपी से मतभेद के चलते 1999 और 2009 में  दो बार भाजपा भी छोड़ी लेकिन दोबारा पार्टी में वापस लौट आए. उनको चाहने वाले बाबूजी कहकर बुलाते थे. कल्याण सिंह के बेटे राजवीर सिंह उर्फ राजा भैया को बीजेपी ने चुनावी मैदान में उतारा है.

अजित सिंह 
वेस्ट यूपी की राजनीति में दबदब रखने वाले राष्ट्रीय लोकदल के संस्थापक अजित सिंह ने राजनीतिक पारी 1986 में शुरू की थी. उन्होंने पिता चौ. चरण सिंह की सियासी विरासत को संभाला. पिता की तरह किसानों की समस्याओं को उठाकर जाटलैंड के बड़े किसान नेता के तौर पर पहचान हासिल की. वीपी सिंह सरकार में वह मंत्री रहे. अमेरिका से कंप्यूटर इंजीनियर की नौकरी छोड़कर राजनीति में कदम रखने वाले अजित सिंह 7 बार लोकसभा सांसद और 1 बार राज्यसभा पहुंचे. 1971 के बाद पहला मौका होगा जब चौधरी परिवार का कोई सदस्य चुनावी मैदान में नहीं है. 

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