निरंजनी अखाड़े का इतिहास 1700 साल पुराना, डॉक्टर-प्रोफेसर भी साधु, हजार करोड़ की संपत्ति
Advertisement
trendingNow0/india/up-uttarakhand/uputtarakhand2556095

निरंजनी अखाड़े का इतिहास 1700 साल पुराना, डॉक्टर-प्रोफेसर भी साधु, हजार करोड़ की संपत्ति

Niranjani Akhara: हिंदू धर्म के सबसे पुराने और प्रमुख अखाड़ों में से एक है.. इसकी स्थापना 14वीं शताब्दी में हुई थी और यह वाराणसी में स्थित है. निरंजनी अखाड़ा का इतिहास बहुत ही समृद्ध और विविध है.. यह अखाड़ा अपनी स्थापना के समय से ही साधु-संतों और हिंदू धर्म के अनुयायियों के लिए एक महत्वपूर्ण केंद्र रहा है..

Shri Panchayati Niranjani Akhara

Mahakumbh 2025 Niranjani Akhara: धर्म-नगरी प्रयागराज महाकुंभ 13 जनवरी 2025 से शुरू होकर 26 फरवरी तक चलेगा. महाकुंभ में प्रमुख अखाड़ों का एक दिव्य और भव्य नजारा देखने को मिलता है. अखाड़ों की सीरीज में आज हम बात कर रहे हैं निरंजनी अखाड़े की. यह सभी प्रमुख 13 अखाड़ों में से एक है. इस अखाड़े के इष्टदेव शिवजी के पुत्र कार्तिकेय हैं. जबकि, इस अखाड़े का मुख्यालय प्रयागराज में है जहां इस बार महाकुंभ मेले का आयोजन होना है. श्री पंचायती निरंजनी अखाड़ा के महामंडलेश्वर और महंत दिगंबर साधु होते हैं. आइए जानते हैं निरंजनी अखाड़े के बारे में जानते हैं.

कब हुई स्थापना

श्री पंचायती निरंजनी अखाड़ा की स्थापना 726 ईस्वी (विक्रम संवत् 960) में गुजरात के मांडवी में हुई थी. उस समय महंथ अजि गिरि, मौनी सरजूनाथ गिरि, पुरुषोत्तम गिरि, हरिशंकर गिरि, रणछोर भारती, जगजीवन भारती, अर्जुन भारती, जगन्नाथ पुरी, स्वभाव पुरी, कैलाश पुरी, खड्ग नारायण पुरी, स्वभाव पुरी ने मिलकर इस अखाड़े की नींव रखी.

अखाड़ा के इष्टदेव कार्तिकेय

अखाड़ा का मुख्यालय तीर्थराज प्रयाग में है. उज्जैन, हरिद्वार, त्रयंबकेश्वर व उदयपुर में अखाड़ा के आश्रम हैं. अखाड़ा के इष्टदेव कार्तिकेय स्वामी जी व धर्मध्वजा का रंग गेरुआ है.

पूरा नाम श्री पंचायती तपोनिधि निरंजन अखाड़ा

इस अखाड़े का पूरा नाम श्री पंचायती तपोनिधि निरंजन अखाड़ा है. इसका मुख्य आश्रम मायापुर, हरिद्वार में स्थित है.अगर साधुओं की संख्या की बात की जाए तो निरंजनी अखाड़ा देश के सबसे बड़े और प्रमुख अखाड़ों में है. जूना अखाड़े के बाद उसे सबसे ताकतवर माना जाता है. वो देश के 13 प्रमुख अखाड़ों में एक है.

सबसे पढ़े लिखे साधु

इस अखाड़े में सबसे ज्यादा पढ़े-लिखे साधु हैं, जिसमें डॉक्टर, प्रोफेसर और प्रोफेशनल शामिल हैं. एक रिपोर्ट की मानें तो शैव परंपरा के निरंजनी अखाड़े के करीब 70 फीसदी साधु-संतों ने उच्च शिक्षा प्राप्त की है. इसमें संस्कृत के विद्वान और आचार्य भी हैं. निरंजनी अखाड़े की हमेशा एक अलग छवि रही है. जानते हैं निरंजनी अखाड़े के बारे में. जिसके बारे में कहा जाता है कि ये हजारों साल पुराना है.

धनी अखाड़ों में से एक

निरंजनी अखाड़े को हमेशा भारतीय धार्मिक क्षेत्र में परिपाटी स्थापित करने वाला माना गया है. यह अखाड़ा सबसे धनी अखाड़ों में माना ही जाता है. इसकी खासियत ये भी है कि इसमें खासे पढ़े लिखे साधु भी हैं. कुछ तो IIT में पढ़े हुए हैं. अखाड़ा का मुख्यालय तीर्थराज प्रयाग में है. उज्जैन, हरिद्वार, त्रयंबकेश्वर व उदयपुर में अखाड़े के आश्रम हैं.

निरंजनी अखाड़े के पास कितनी संपत्ति

प्रयागराज और आसपास के इलाकों में निरंजनी अखाड़े के मठ, मंदिर और जमीन की कीमत 300 करोड़ से ज्यादा की है, जबकि हरिद्वार और दूसरे राज्यों में संपत्ति की कीमत जोड़े तो वो हजार करोड़ के पार है. महंत नरेंद्र गिरि इसी अखाड़े के प्रमुख थे. 10,000 से ज्यादा नागा संन्यासी फिलहाल इस अखाड़े में 10 हजार से ज्यादा नागा संन्यासी हैं. जबकि महामंडलेश्वरों की संख्या 33 है. जबकि महंत और श्रीमहंत की संख्या एक हजार से अधिक है. वैसे निरंजनी अखाड़े ने भव्य पेशवाई के साथ कुंभ में अपनी शुरुआत की थी. इसमें कई रथ, हाथी और ऊंट शामिल हुए थे. करीब 50 रथों पर चांदी के सिंहासन पर आचार्य महामंडलेश्वर और महामंडलेश्वर विराजमान थे. बड़ी संख्या में नागा साधुओं ने भगवान शिव का तांडव किया था.

कुंभ में मिलती है स्थाई और अस्थायी दीक्षा

श्री निरंजनी अखाड़े में स्थाई और अस्थायी दोनों तरह से दीक्षा प्रदान की जाती है. अस्थायी सन्यास दीक्षा उन लोगों की दी जाती है जो गृहस्थ परिवार से आते हैं. अस्थायी सन्यास दीक्षा देने से पहले सन्यास लेने वालों की आधी चोटी काटकर देखा जाता है कि उनके अंदर सन्यास जीवन जीने के गुण हैं या नहीं. अगर किसी का मन नहीं लगे तो उन्हें पूर्ण संन्यास-दीक्षा देने से पहले घर वापस भेज दिया जाता है.जबकि, जिनके भीतर साधु-सन्यासी की तरह जीवन जीने के लक्षण देखे जाते हैं तो उन्हें कुंभ मेले के दौरान पूर्ण संन्यास की दीक्षा दी जाती है.

कौन बन सकता है महामंडलेश्वर (Who can become Mahamandaleshwar?)

अखाड़े का महामंडलेश्वर बनने के लिए कोई निश्चित शैक्षणिक योग्यता की जरूरत नहीं होती है. इन अखाड़ों में महामंडलेश्वर बनने के लिए व्यक्ति में वैराग्य और संन्यास का होना सबसे जरूरी है. महामंडलेश्वर का घर-परिवार और पारिवारिक संबंध नहीं होने चाहिए. आयु का कोई बंधन नहीं है. यह जरूरी होता है कि जिस व्यक्ति को यह पद मिले उसे संस्कृत, वेद-पुराणों का ज्ञान हो और वह कथा-प्रवचन दे सकता हो. कोई व्यक्ति या तो बचपन में अथवा जीवन के चौथे चरण यानी वानप्रस्थाश्रम में महामंडलेश्वर बन सकता है. लेकिन इसके लिए अखाड़ों में परीक्षा ली जाती है.

कुंभ में पहला शाही स्नान

13 जनवरी को कुंभ के पहले शाही स्नान में यह अखाड़ा पूरी शान-ओ-शौकत के साथ पहुंचेगा. स्वर्ण-चांदी के रथ, अस्त्र शस्त्रों के साथ रेत पर दौड़ लगाते नागा साधु जब गंगा स्नान करेंगे तो वह दृश्य हर किसी को अभिभूत कर देता है. (Disclaimer: यहां दी गई जानकारी सामान्य मान्यताओं और जानकारियों पर आधारित है. ZEE UPUK इसकी पुष्टि नहीं करता है.)

मुगलों से लोहा लेने वाला जूना अखाड़ा, एक हजार साल पुराना इतिहास, हथियारों से लैस नागा साधुओं की फौज

निर्मोही अखाड़े का इतिहास 300 साल पुराना, देश भर में लाखों अनुयायी, राम मंदिर आंदोलन में निभाई थी अहम भूमिका

Trending news