Sant Kabir Das: संत कबीरदास जी हिंदी साहित्य के प्रमुख कवियों में से एक थे. उन्होंने समाज में फैले आबंडरों को अपनी कलम के द्वारा लिखा. वो हमेशा समाज में फैली कुरीतियों की निंदा किया करते थे. उन्होंने दोहों के माध्यम से समाज को सुधारने की कोशिश की. यहां उनके प्रसिद्ध व लोकप्रिय दोहे लिखे हुए हैं.
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Kabirdas jayanti 2023: इस साल कबीर दास जी की जयंती 22 जून शनिवार 2024 को पड़ रही है. संत कबीरदास जी भारत के प्रमुख कवि थे. कबीरदास जी को भक्तिकाल का प्रमुख कवि माना जाता है. कबीरदास जी के विचारों को देश आज भी मानता है. वो समाज सुधारक भी थे. उन्होंने अपने पूरे जीवन भर समाज में व्याप्त कुरीतियों पर ही लिखा. समाज की हर बुराई को दूर करने के लिए उन्होंने दोहों और कविताओं की रचना की. कबीरदास जी की जयंती को प्रतिवर्ष ज्येष्ठ माह की पूर्णिमा तिथि को बड़े धूम- धाम से मनाया जाता है. यह उनकी 647वीं जयंती है. आगे हम संत कबीरदास जी के कुछ प्रमुख दोहे और उनके अर्थ के बारे में जानेंगे.
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1. माला फेरत जुग भया, फिरा न मन का फेर.
कर का मन का डारि दे, मन का मनका फेर..
अर्थ- कोई व्यक्ति लम्बे समय तक हाथ में मोती की माला को तो घुमाता है, पर उसके मन का भाव नहीं बदलता, उसके मन की हलचल शांत नहीं होती. कबीर की ऐसे व्यक्ति को सलाह है कि हाथ की इस माला को फेरना छोड़ कर मन के मोतियों को बदलो या फेरो.
2. बुरा जो देखन मैं चला, बुरा न मिलिया कोई,
जो दिल खोजा आपना, मुझसे बुरा न कोई |
अर्थ- कबीर दास जी कहते हैं कि जब मैंने संसार में बुराई को ढूंढा तो मुझे कहीं नहीं मिली पर जब मैंने अपने मन के भीतर झांका तो मुझे खुद से बुरा इंसान नहीं दिखा.
3. कबीरा जब हम पैदा हुए, जग हँसे हम रोये ।
ऐसी करनी कर चलो, हम हँसे जग रोये ॥
अर्थ- कबीर दास जी कहते हैं कि जब तक मेरे अंदर मैं (अहंकार) था मुझे हरि (ईश्वर) नहीं मिले. अब जब मुझे ईश्वर मिले हैं तो मेरा मैंपन कहीं खो गया है. मुझे अपने अंदर का दीपक मिल गया है जिससे मेरा सारा अंधकार दूर हो गया.
4. कबीरा खड़ा बाजार में, मांगे सबकी खैर ।
ना काहू से दोस्ती, न काहू से बैर ॥
अर्थ- कबीर दास जी लिखते हैं कि हमें सबका भला सोचना चाहिए. क्योंकि इस संसार में एक ईश्वर के अलावा धन-दौलत, रिश्ते-नाते, मित्र-शत्रु कुछ भी शाश्वत नहीं है.
5. पोथी पढ़ि पढ़ि जग मुआ, पंडित भया ना कोई,
ढाई आखर प्रेम का, पढ़े सो पंडित हो |
अर्थ- इस संसार वोलों ने बड़ी- बड़ी किताबें पढ़ ली मगर पंडित कोई नहीं बन पाया. कबीरदास जी कहते हैं यदि कोई प्रेम, प्यार के सिर्फ ढाई अक्षर पढ़ लें तो वही सच्चा ज्ञानी है.