Milkipur ByElection 2025: मिल्कीपुर विधानसभा उपचुनाव के लिए बीजेपी ने भी पासी उम्मीदवार मैदान में उतार दिया है. इससे यहां दलित वोटों की लड़ाई दिलचस्प मोड़ पर पहुंचते दिख रही है.
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उत्तर प्रदेश में मिल्कीपुर विधानसभा की सीट भाजपा और सपा के बीच प्रतिष्ठा का प्रश्न बन गई है. बीजेपी ने कुंदरकी मॉडल को अपनाते हुए मिल्कीपुर में पासी समाज के उम्मीदवार चंद्रभान पासवान को उतार दिया है. उनका सीधा मुकाबला सपा प्रत्याशी अजीत प्रसाद से होगा, जो अयोध्या सांसद अवधेश प्रसाद के बेटे हैं.
बीजेपी प्रत्याशी चंद्रभानु पासवान के आने से मुकाबला दिलचस्प
सवाल है कि क्या मिल्कीपुर उपचुनाव से UP में पॉलिटिकल परसेप्शन बदलेगा. सपा बनाम बीजेपी ही नहीं ये पासी बनाम पासी की भी जंग बन चुकी है. अयोध्या की मिल्कीपुर सीट बीजेपी और सपा दोनों के लिए प्रतिष्ठा की सीट बन गई है. सपा ने 2022 के चुनाव में यह सीट जीती थी और अवधेश प्रसाद विधायक चुने गए थे. अवधेश अब सांसद हो गए हैं ऐसे में सपा उपचुनाव में मिल्कीपुर सीट गंवाना नहीं चाहती तो बीजेपी इसे हर हाल में अपने पास चाहती है.
अयोध्या की मिल्कीपुर विधानसभा सीट पर उपचुनाव का ऐलान दिल्ली विधानसभा चुनाव के साथ हो गया था. पांच फरवरी को होने वाले चुनाव के लिए नामांकन की प्रक्रिया भी शुरू हो गई है. बीजेपी ने जिलापंचायत प्रतिनिधि चंद्रभान पासवान को टिकट देकर चुनाव को रोचक मोड़ में ला दिया है. जबकि अजीत प्रसाद एक बार जिला पंचायत सदस्य का चुनाव हार चुके हैं. कांग्रेस और बसपा ने उपचुनाव से अपने कदम पीछे खींच लिए हैं. इसके चलते यहां पर सीधे सपा बनाम बीजेपी की लड़ाई बन गई है. आजाद समाज पार्टी ने जरूर मिल्कीपुर सीट पर सूरज चौधरी को प्रत्याशी बनाया है
अनुसूचित जाति के लिए आरक्षित मिल्कीपुर विधानसभा सीट पर सपा ने अजीत प्रसाद को प्रत्याशी बनाया है, जो पासी समुदाय से आते हैं. मिल्कीपुर सीट पर पासी वोटों के सियासी समीकरण को देखते हुए बीजेपी ने भी पासी समाज के नेता पर ही दांव लगाया है। बीजेपी के टिकट के लिए जिन नेताओं ने दावेदारी कर रखी थी, उसमें ज्यादातर पासी समाज से ही लोग थे। इसीलिए मिल्कीपुर उपचुनाव सिर्फ सपा बनाम बीजेपी ही नहीं बल्कि पासी बनाम पासी का भी है.
मिल्कीपुर तय करेगा दलित राजनीति का भविष्य
मिल्कीपुर विधानसभा सीट पर होने वाले उपचुनाव से सत्ता पर भले ही कोई असर न पड़े, लेकिन जीत-हार के सियासी निहितार्थ कई मायने में अहम हैं. ऐसे में पक्ष-विपक्ष पहले से ही पूरी ताकत लगाए हुए हैं. बीजेपी की नजर यह सीट जीतकर 2024 में अयोध्या जिले की फैजाबाद लोकसभा सीट पर मिली हार का जख्म भरने पर है, क्योंकि सपा ने लोकसभा सीट जीतने के बाद बीजेपी पर सवाल खड़े किए थे.
मिल्कीपुर के विधायक रहे अवधेश प्रसाद ने राममंदिर के लोकार्पण के कुछ महीने बाद हुए लोकसभा चुनाव में अयोध्या से जीत दर्ज कर पूरे देश को चौंका दिया था. इस हार का बोझ बीजेपी के लिए इतना भारी रहा कि केंद्र में उसकी लगातार तीसरी पारी का जश्न भी फीका पड़ गया था. इसके बाद से ही अवधेश प्रसाद सपा सहित विपक्ष के ‘पोस्टर बॉय’ बन गए थे.
अयोध्या के अवधेश की भी साख दांव पर
मिल्कीपुर से सपा प्रमुख अखिलेश यादव ने अवधेश प्रसाद के बेटे अजीत प्रसाद को उम्मीदवार बनाया है. इसलिए सपा के ‘पोस्टर बॉय’ की भी साख यहां दांव पर लगी है. पिछले महीने हुए उपचुनाव में सपा ने बगल की ही कटेहरी सीट के अलावा संभल की कुंदरकी सीट भी गंवा दी थी. अखिलेश की परंपरागत सीट करहल जीतने तक में सपा के पसीने छूट गए थे. इसलिए, इस सीट के नतीजे हार के झटके से उबरने के लिहाज से सपा के लिए भी अहम हैं.
सपा ने 2022 के विधानसभा चुनाव में मिल्कीपुर सीट जीती थी और अवधेश प्रसाद विधायक चुने गए थे. अब अवधेश प्रसाद सांसद बन गए हैं. ऐसे में सपा नेतृत्व किसी भी स्थिति में मिल्कीपुर सीट गंवाने के मूड में नहीं है. पार्टी का मानना है कि इस इकलौती सीट के नतीजे का असर विधानसभा में विधायकों की संख्या से अधिक 2027 के सियासी समीकरण पड़ेगा. मिल्कीपुर उपचुनाव के नतीजे यूपी में बीजेपी या सपा के लिए टॉनिक साबित होंगे. खासकर बीजेपी के हिन्दुत्व मॉडल की फिर परीक्षा है. योगी सरकार और बीजेपी मिल्कीपुर में कुंदरकी से भी बड़ी जीत की रणनीति बना रही है तो सपा इस सीट को हरहाल में बरकरार रखने की कवायद में है. इसी मद्देनजर सपा नेतृत्व ने अपने कोर संगठन से लेकर फ्रंटल संगठनों तक के प्रमुख चेहरों को मिल्कीपुर सीट पर जिम्मेदारी सौंप दी है.बीजेपी ने छह मंत्रियों को मैदान में यहां चुनावी जंग जीतने के लिए मैदान में उतारा है. एम योगी आदित्यनाथ खुद चार बार मिल्कीपुर का दौरा कर चुके हैं तो सपा भी कोई कोर कसर नहीं छोड़ रही.
2022 में मिल्कीपुर और 2024 में फैजाबाद सीट गंवाने वाली बीजेपी के लिए उपचुनाव का नतीजा ‘परसेप्शन’ के लिहाज से अहम है. हालिया उपचुनाव में शानदार जीत से लबरेज पार्टी मिल्कीपुर जीतकर अयोध्या के परिणाम को ‘एक्सिडेंटल’ साबित करना चाहती है. अगर नतीजे पक्ष में नहीं रहे तो उसके लिए विपक्ष को जवाब देना कठिन होगा. यही कारण है कि सरकार और संगठन यहां पूरी ताकत झोंके हुए हैं.
पीडीए या हिन्दुत्व मॉडल
यूपी में बीजेपी ने अपनी सियासी जड़ें जमाने के लिए जो सोशल इंजीनियरिंग बनाई थी, उसे अखिलेश यादव 2024 के चुनाव में पीडीए फॉर्मूले के जरिए तोड़ने में कामयाब रहे थे. बीजेपी ने गैर यादव ओबीसी और गैर-जाटव दलित वोटों को जोड़ा था, लेकिन उसमें सपा सेंधमारी करने में सफल रही. बीजेपी के साथ जुड़ने वाला पासी समाज का वोट लोकसभा चुनाव में उससे दूर हुआ है और सपा के करीब गया. मिल्कीपुर सीट पर पासी वोटर बड़ी संख्या में हैं, जिसे देखते हुए सपा ने पासी समाज से आने वाले अजीत प्रसाद को उतारा है तो बीजेपी ने भी पासी समाज को टिकट देकर चुनाव को रोचक कर दिया है.
मिल्कीपुर विधानसभा सीट पर करीब 3.58 लाख मतदाता हैं. इनमें एक लाख से ज्यादा दलित मतदाता हैं. दलितों में भी करीब 55 हजार पासी समाज के मतदाता हैं.मिल्कीपुर सीट पर पासी वोट बैंक जिस तरफ शिफ्ट होगा, चुनाव वही जीतेगा. यहां ब्राह्मण-यादव के बाद करीब 55 हजार की आबादी पासी समुदाय की है. ऐसे में पासी वोट बैंक को साधने के लिए बीजेपी भी पासी समाज से ही प्रत्याशी उतारकर चुनाव को दिलचस्प कर दिया है.