तो आज आधा राजस्थान, पाकिस्तान में होता? TIME MACHINE में जानिए 1949 के भारत की पूरी कहानी
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तो आज आधा राजस्थान, पाकिस्तान में होता? TIME MACHINE में जानिए 1949 के भारत की पूरी कहानी

ZEE NEWS TIME MACHINE: ज़ी न्यूज के स्पेशल प्रोग्राम TIME MACHINE में आपको हम भारत के एक ऐसे प्रधानमंत्री के बारे में बताएंगे जिसने जापान से रिश्ते मजबूत करने के लिए Elephant Diplomacy आजमाई थी.

तो आज आधा राजस्थान, पाकिस्तान में होता? TIME MACHINE में जानिए 1949 के भारत की पूरी कहानी

ZEE NEWS TIME MACHINE: ज़ी न्यूज के स्पेशल प्रोग्राम TIME MACHINE में आपको हम भारत के एक ऐसे प्रधानमंत्री के बारे में बताएंगे जिसने जापान से रिश्ते मजबूत करने के लिए Elephant Diplomacy आजमाई थी. जिसने इंदिरा को जापान ZOO भेज दिया था. एक अपराधी को दी गई फांसी के बारे में भी बताएंगे जिसकी मौत पर कोई आंसू बहाने वाला नहीं था. त्रिपुरा की रानी का एक दस्तखत भी इसी समय चक्र का था. वो दस्तखत जिसने त्रिपुरा का भविष्य तय कर दिया. वक्त के इसी झरोखे में कश्मीर को विशेष राज्य का दर्जा देने वाले Article 370 के बारे में भी बताएंगे. ये अहम साल है 1949, यानी जब भारत दो साल का था. TIME MACHINE में आपको इसी साल की 10 अनसुनी कहानियों के बारे में बताने जा रहे हैं.

नेहरू ने इंदिरा को भेजा जापान

भारत और जापान की दोस्ती को मजबूत करने के लिए देश के पहले प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू ने 1949 में इंदिरा को टोक्यो के यूनो चिड़ियाघर भेजा था. अगर आप इस इंदिरा का रहस्य नहीं जानते हैं तो हम आपको ये बता देते हैं कि जो इंदिरा 1949 में जापान के चिड़ियाघर गई थी, वो प्रधानमंत्री नेहरू की बेटी नहीं थी. असल में पीएम नेहरू ने हाथी का एक बच्चा जापान को तोहफे में दिया था. दूसरे विश्वयुद्ध में जापान को काफी नुकसान हुआ था. उस युद्ध में इंसानों के साथ बड़ी तादाद में जानवर भी मारे गए थे, जिनमें हाथियों की तादाद ज्यादा थी. हाथियों की घटती संख्या को देखते हुए जापान सरकार ने भारत सरकार को पत्र लिखकर हाथी के बच्चे भेजने की अपील की थी. जिसके बाद प्रधानमंत्री नेहरू ने 1 अक्टूबर 1949 को हाथी का एक बच्चा जापान के यूनो चिड़ियाघर को गिफ्ट के तौर पर भेजा था. हाथी के उस बच्चे का नाम पंडित नेहरू ने अपनी बेटी के नाम पर इंदिरा रखा था.

'कश्मीर-ए-दास्तान पर कलंक था 370!

जम्मू-कश्मीर की कहानी सैकड़ों साल पुरानी है. इसका गौरवशाली इतिहास इसकी पहचान है. लेकिन 1947 के बाद उस गौरवशाली इतिहास पर आतंक की ऐसी लकीर खींच दी गई कि जम्मू-कश्मीर का स्वरूप हमेशा के लिए बदल गया. हक के लिए लड़ता कश्मीरी, सड़कों पर तैनात सुरक्षाबल और पाकिस्तान की नापाक साजिशें. 1947 के बाद से  घाटी की ये पहचान बन गई जिसकी वजह था अर्टिकल 306 A जिसे अनुच्छेद 370 के नाम से जाना जाता है. जम्मू-कश्मीर की संविधान सभा ने 27 मई, 1949 को एक मसौदा तैयार किया जिसे आर्टिकल 306ए का नाम दिया गया जो आगे चलकर अर्टिकल 370 बन गया, 17 October 1949 के दिन भारतीय संविधान में आर्टिकल 306ए को शामिल कर लिया गया जिसमें कहा गया है.

- इस अर्टिकल की वजह से जम्मू कश्मीर में राष्ट्रपति साशन नहीं लगाया जा सकता
- 306ए के कारण जम्मू - कश्मीर की विधानसभा का कार्यकाल 6 वर्षों का था जबकि भारतीय विधानसभा का कार्यकल 5 वर्ष होगा
- कश्मीर में अल्पसंख्यकों को आरक्षण नहीं
-जम्मू-कश्मीर के नागरिकों के पास दोहरी नागरिकता होगी
- जम्मू-कश्मीर का अपना ध्वज होगा
- 370 की वजह से कश्मीर में आरटीआई लागू नही होगा
- धारा 370 की वजह से बाहरी लोग कश्मीर में जमीन नहीं खरीद सकते

एक वक्त पर स्वर्ग कहलाने वाला कश्मीर आतंक का गढ़ बन गया था, जिसे लगाम लगाना, बहुत जरूरी था, और आखिरकार 72 साल बाद 5 अगस्त  2019 को राज्यसभा में गृहमंत्री अमित शाह ने जम्मू-कश्मीर से अनुच्छेद 370 हटाने का ऐलान किया और उसके बाद से अर्टिकल 370 खत्म हो गया.

पाकिस्तान में होता आधा राजस्थान

30 मार्च, 1949 को राजस्थान, भारत गणराज्य का हिस्सा बना.. लेकिन ये हो सकता था कि आधा राजस्थान पाकिस्तान में शामिल हो जाता. 1947 में जब देश आजाद हुआ था तो कई देशी रियासतों ने ताकत जुटाना शुरू कर दिया था. राजस्थान में उस वक्त 22 रियासतें थीं जिनमें से केवल अजमेर पर ब्रिटिश शासन का रुतबा था जबकि बाकी 21 रियासतें स्थानीय शासकों के अधीन थीं. आजादी के बाद अजमेर रियासत भारतीय स्वतंत्रता अधिनियम 1947के तहत भारत का हिस्सा बन गई. लेकिन इन  21 रियासतों को भारत में मिलाना एक बड़ा काम था जिसे सरदार वल्लभभाई पटेल और जवाहरलाल नेहरू ने अंजाम दिया. उस वक्त ज्यादातर रियासतें पाकिस्तान में अपना विलय चाहती थीं, लेकिन सरदार पटेल की सूझबूझ की वजह से जोधपुर के अलावा बाकी सभी रियासतों ने भारत में मिलना स्वीकार कर लिया. सरदार पटेल किसी भी कीमत पर जोधपुर को भी पाकिस्तान में मिलते हुए नहीं देखना चाहते थे. इसलिए उन्होंने जोधपुर के महाराजा को भरोसा दिया कि भारत में उन्हें वो सभी सुविधाएं दी जाएंगी जिनकी मांग पाकिस्तान से की गई थी. जिसमें हथियार देना, अनाज और दालों की सप्लाई और जोधपुर रेलवे लाइन शामिल थीं. कहा जाता है कि अगर सरदार पटेल ने सभी रियासत के राजाओं से बात नहीं की होती तो आज आधा राजस्थान, पाकिस्तान में होता.

1949 में बना सेंट्रल रिजर्व पुलिस फोर्स

भारत के बॉर्डर की सुरक्षा के लिए BSF यानी बॉर्डर सिक्योरिटी फोर्स और आंतरिक सुरक्षा के लिए CRPF यानी सेंट्रल रिजर्व पुलिस फोर्स काम करती है. सीआरपीएफ की स्थापना साल 1939 में 27 जुलाई को की गई और साल 1949 में 28 दिसंबर को सीआरपीएफ एक्ट के अंतर्गत इसे सेंट्रल रिजर्व पुलिस फोर्स के नाम से जाना जाने लगा. सीआरपीएफ भारत सरकार के अधीन अपना काम करती है. कोई भी राज्य अपने राज्य में किसी काम के लिए या फिर कर्फ्यू और दंगों जैसे हालातों से निपटने के लिए गृह मंत्रालय से सीआरपीएफ की टुकड़ी भेजने का आग्रह करता है. सीआरपीएफ हमारे देश को आंतरिक सुरक्षा प्रदान करने का काम करती है. इस सुरक्षा बल का इस्तेमाल सभी राज्य की सरकारें अपने-अपने राज्य में कानून व्यवस्था को बनाए रखने के लिए करती है. CRPF एक पैरामिलिट्री फोर्स होती है और वर्तमान समय में ये हमारी सबसे बड़ी सेंट्रल आर्म्ड पुलिस फोर्स है.

महात्मा गांधी के हत्यारे को सजा

15 नवंबर 1949 यानी इंसाफ़ का दिन... यही वो तारीख है, जब राष्ट्रपिता महात्मा गांधी के हत्यारे नाथूराम गोडसे को फांसी दी गई थी. गोडसे ने 30 जनवरी 1948 को महात्मा गांधी को दिल्ली में गोली मार दी थी... जिसके बाद वहां मौजूद लोगों ने गोडसे को गिरफ़्तार कर पुलिस के हवाले कर दिया. पौने दो साल तक चली कानूनी कार्रवाई के बाद पंजाब हाई कोर्ट ने 8 नवंबर 1949 को गोडसे को फांसी की सज़ा सुना दी. हालांकि महात्मा गांधी के बेटे मणिलाल गांधी और रामदास गांधी ने गोडसे की सज़ा कम करने की अपील भी की, लेकिन प्रधानमंत्री नेहरू और गृह मंत्री वल्लभ भाई पटेल ने उनकी गुहार ख़ारिज कर दी. जिसके बाद 15 नवंबर 1949 को अंबाला सेंट्रल जेल में नाथूराम गोडसे को फांसी दे दी गई.

ऑफिसर बनने के लिए सीबी मुथम्मा ने दी कुर्बानी!

आज के दौर में महिलाएं कुछ भी कर सकती हूं. पुरूषों के साथ कंधे से कंधा मिला कर देश की प्रगति में भागीदार बनती है. लेकिन क्या आप जानते है कि 21 वीं सदी में ये सब महिलाओ के लिए जितना आसान है आजाद भारत के कुछ वर्षा में ऐसा संभव नहीं था. इंडियन सिविल सेवा, जिसे अब IAS के नाम से जाना जाता है.. उस परीक्षा को पास करने वाली पहली महिला सीबी मुथम्मा के लिए ये सफर कितना मुश्किल था ये आपको जरूर जानना चाहिए. सी. बी मुथम्मा 1949 में भारतीय विदेश सेवा में शामिल हुई और पहली भारतीय महिला राजनयिक बनी. लेकिन क्या आप जानते हैं कि पहली IFS यानी इंडियन फॉरेन सर्विस बनने के बाद भी सीबी मुथम्मा को कौन सी कुर्बानी देनी पड़ी. 1949 में जब मुथम्मा आईएफएस ऑफिसर बनीं, तो उनसे शादी न करने को लेकर एक समझौते पर हस्ताक्षर करवाए गए. समझौते में लिखा था कि यदि वो शादी करती हैं, तो उन्हें अपने पद से इस्तीफा देना पड़ेगा. सीबी मुथम्मा ने इस बात का विरोध भी किया और साथ महिला होने के नाते अपने साथ होने वाले भेदभाव के खिलाफ आवाज भी उठाई और इसी का नतीजा ये हुआ कि उस दौर में जहां महिलाओं को भारतीय राजदूत नहीं बनाया जाता था वहां सीबी मुथम्मापहली भारतीय महिला राजदूत भी बनीं.

जब नेहरू ने पटेल से झूठ बोला

लॉर्ड माउंटबेटन के भारत छोड़ने के बाद सी. राजगोपालाचारी को भारत में गवर्नर-जनरल बनाया. लेकिन उन्हें पंडित जवाहरलाल नेहरू देश का राष्ट्रपति बनाना चाहते थे. मगर उनकी राह में आड़े आ रहे थे सरदार पटेल, पटेल चाहते थे कि राजेंद्र प्रसाद राष्ट्रपति बनाए जाएं. कहा जाता है कि नेहरू ने 10 सितंबर 1949 को राजेंद्र प्रसाद को एक पत्र लिखा, जिसे पढ़कर राजेंद्र प्रसाद निराश हो गए, पत्र में लिखा था.. मैं और सरदार पटेल चाहते हैं कि सी राजगोपालाचारी राष्ट्रपति बनें, ये सभी के हित में और देश की प्रगति के लिए सही होगा. नेहरू का ये पत्र पढ़कर राजेंद्र प्रसाद ने जवाब लिखा और नेहरू और पटेल दोनों को भेज दिया. राजेंद्र प्रसाद ने जवाब में खत में लिखा.. मैं हमेशा कांग्रेस पार्टी के साथ खड़ा रहा हूं, लेकिन इन दिनों मेरे साथ जो घटित हो रहा है उससे निराश हूं, मुझे किसी भी पद का मोह नहीं, मैं हमेशा पार्टी के सच्चे कार्यकर्ता के रूप में साथ रहूंगा. अब चौंकने की बारी पटेल की थी, क्योंकि उनके और नेहरू के बीच तो ऐसी कोई बात ही नहीं हुई थी जिसका दावा नेहरू कर रहे थे, इसी के बाद सरदार पटेल ने कांग्रेस संगठन की तरफ से राजेंद्र प्रसाद का नाम राष्ट्रपति पद के लिए आगे बढ़ा दिया और ये बात नेहरू को नागवार गुजर गई. जब राजेंद्र प्रसाद सर्वसम्मति से राष्ट्रपति बनाए गए तो नेहरू और पटेल के बीच में दूरियां और बढ़ गईं.

हिंदी बनी राजभाषा

साल 1947 में जब अंग्रेजी हुकूमत से भारत आजाद हुआ तो उसके सामने भाषा को लेकर सबसे बड़ा सवाल था... क्योंकि भारत में सैकड़ों भाषाएं और बोलियां बोली जाती हैं.... ऐसे में कौन सी राष्ट्रभाषा चुनी जाएगी ये काफी अहम मुद्दा था. काफी सोच विचार करने के बाद हिंदी और अंग्रेजी को नए राष्ट्र की भाषा चुना गया. संविधान सभा ने देवनागरी लिपी में लिखी हिंदी को अंग्रजी के साथ राष्ट्र की आधिकारिक भाषा के तौर पर स्वीकार किया जिसका बात 14 सितंबर 1949 के दिन संविधान सभा ने ये निर्णय लिया गया कि हिंदी ही भारत की राजभाषा होगी

रिजर्व बैंक ऑफ इंडिया का राष्ट्रीयकरण

-बैंकों का बैंक कहे जाने वाले RBI यानी रिज़र्व बैंक ऑफ़ इंडिया का राष्ट्रीयकरण एक जनवरी 1949 को हुआ था.
-राष्ट्रीयकरण से पहले रिजर्व बैंक एक निजी बैंक था, जिसमें कई शेयरधारकों का निवेश था.
-रिजर्व बैंक की स्थापना RBI एक्ट के तहत 1 अप्रैल 1935 में हुई थी.
-तब ये अविभाजित भारत के साथ साथ बर्मा यानी म्यांमार का भी सेंट्रल बैंक हुआ करता था.
-शुरुआत में RBI का मुख्यालय कोलकाता में था, जिसे 1937 में मुंबई शिफ़्ट कर दिया गया. आज़ादी मिलने के डेढ़ साल के भीतर 1 जनवरी 1949 को भारत सरकार ने रिज़र्व बैंक का राष्ट्रीयकरण कर लिया. -देश के सभी करेंस नोटों की छपाई और सिक्कों की ढलाई का अधिकार सिर्फ़ रिजर्व बैंक के ही पास है.

त्रिपुरा विलय- 9 सितंबर 1949

देश को आजाद हुए दो साल बीत चुके थे और अब कई हिस्से भारत सरकार के नियंत्रण से बाहर थे, लेकिन 9 सितंबर 1949 को देश के पूर्वोत्तर में एक बड़ी घटना घटी. 9 सितंबर 1949 के दिन त्रिपुरा की रानी कंचनप्रभा देवी ने भारत में विलय के समझौते पर दस्तख़त कर दिए और इसके 37 दिन बाद 15 अक्टूबर 1949 को त्रिपुरा भारत का अटूट हिस्सा बन गया. 1 जुलाई 1963 को त्रिपुरा एक केंद्र शासित प्रदेश बना और 21 जनवरी 1972 को इसे पूर्ण राज्य का दर्जा मिल गया. त्रिपुरा के अंतिम राजा किरीट बिक्रम किशोर माणिक्य बहादुर देबबर्मा थे, जिन्होंने 1947 से 1949 तक अगरतला पर शासन किया. किरीट बिक्रम जब राजा बने तब उनकी उम्र महज 14 साल थी, लिहाजा उनकी मां रानी कंचनप्रभा देवी ने त्रिपुरा राज्य के भारत में विलय के समझौते पर दस्तख़त किए थे.

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