शौर्य: मेजर संदीप उन्नीकृष्णन 26/11 हमले में बने सुरक्षा कवच, कहा- ऊपर मत आओ; मैं संभाल लूंगा
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शौर्य: मेजर संदीप उन्नीकृष्णन 26/11 हमले में बने सुरक्षा कवच, कहा- ऊपर मत आओ; मैं संभाल लूंगा

स्वतंत्रता के 75 वर्ष पूरे होने पर देश के सबसे लोकप्रिय चैनल Zee News ने एक स्पेशल सीरीज शुरू की है, जिसका नाम 'शौर्य' है. सीरीज के एक भाग को हमने 26/11 हमले के हीरो मेजर संदीप उन्नीकृष्णन को समर्पित किया है.

शौर्य

स्वतंत्रता के 75 वर्ष पूरे होने पर देश के सबसे लोकप्रिय चैनल Zee News ने एक स्पेशल सीरीज शुरू की है, जिसका नाम 'शौर्य' है. सीरीज के एक भाग को हमने 26/11 हमले के हीरो मेजर संदीप उन्नीकृष्णन (Major Sandeep Unnikrishnan) को समर्पित किया है. मेजर संदीप उन्नीकृष्णन भारत मां के ऐसे सपूत हैं जिन्होंने देश की रक्षा के लिए अपने प्राणों की आहुति दे दी. मुंबई में साल 2008 में हुए 26/11 हमले (26/11 Attack) में उन्होंने सुरक्षा कवच बनने का काम किया. ऑपरेशन के दौरान मेजर संदीप उन्नीकृष्णन ने अपने साथियों से कहा था कि ऊपर मत आओ, मैं संभाल लूंगा. 26/11 हमले में मेजर संदीप उन्नीकृष्णन ने कई लोगों की जान बचाई और वो खुद आंतकियों से लड़ते हुए क्रॉस फायरिंग में शहीद हो गए. मेजर संदीप उन्नीकृष्णन की जाबांजी के लिए उन्हें मरणोपरांत अशोक चक्र (Ashok Chakra) से सम्मानित किया गया.

  1. नेशनल सिक्योरिटी गार्ड का हिस्सा थे मेजर संदीप उन्नीकृष्णन
  2. आतंकियों से अकेले भिड़ गए थे मेजर संदीप उन्नीकृष्णन
  3. मेजर संदीप उन्नीकृष्णन ने देश के लिए दिया बलिदान

जब पाकिस्तानी सेना ने देखा संदीप उन्नीकृष्णन का शौर्य

बता दें कि मेजर संदीप उन्नीकृष्णन नेशनल सिक्योरिटी गार्ड (NSG) के 51 स्पेशल एक्शन ग्रुप (Special Action Group) का हिस्सा थे. मेजर संदीप उन्नीकृष्णन का जन्म 15 मार्च 1977 को कर्नाटक के बेंगलुरु में हुआ था. उनके पिता के. उन्नीकृष्णन इसरो (ISRO) के अधिकारी थे. संदीप उन्नीकृष्णन ने साल 1995 में पुणे स्थित नेशनल डिफेंस एकेडमी (NDA) में प्रवेश लिया था. फिर मेजर संदीप उन्नीकृष्णन ने बिहार रेजिमेंट की 7वीं बटालियन में शामिल होकर देश की सेवा शुरू की. साल 1999 में हुए कारगिल युद्ध में भी संदीप उन्नीकृष्णन ने जाबांजी दिखाई थी. कारगिल युद्ध में ऑपरेशन विजय के दौरान संदीप उन्नीकृष्णन ने पाकिस्तान की तरफ से की जा रही गोलीबारी के बीच दुश्मन सेना से महज 200 मीटर दूरी पर एक पोस्ट का निर्माण किया था.

मेजर संदीप उन्नीकृष्णन ने बचाई कमांडो की जान

बता दें कि संदीप उन्नीकृष्णन को साल 2003 में कैप्टन और बाद में साल 2005 में मेजर बनाया गया था. इसके बाद मेजर संदीप उन्नीकृष्णन नेशनल सिक्योरिटी गार्ड का हिस्सा बन गए थे. जान लें कि 26 नवंबर, 2008 को जब आतंकी मुंबई स्थित ताज होटल में घुस गए थे और लोगों को बंधक बना लिया था, तब नेशनल सिक्योरिटी गार्ड (NSG) की टीम को बुलाया गया था. बंधक बनाए गए लोगों को बचाने के लिए मेजर संदीप उन्नीकृष्णन अपनी टीम के साथ ताज होटल में गए और एक-एक फ्लोर पर आतंकियों को खोजना शुरू किया. जब एक कमरे में आतंकियों के होने का शक हुआ तो टीम वहां पहुंची और आतंकियों ने गोली चला दी. इस फायरिंग में एनएसजी कमांडो सुनील कुमार यादव के पैर में गोली लग गई. फिर मेजर संदीप उन्नीकृष्णन ने उनकी जान बचाई.

बंधकों की जान बचाने को मेजर संदीप उन्नीकृष्णन ने लिया ये फैसला

इसके बाद मेजर संदीप उन्नीकृष्णन और उनकी टीम ने फैसला लिया कि वो बंधकों की जान बचाने के लिए मुख्य सीढ़ियों से ऊपर के फ्लोर पर जाएंगे. लेकिन, मुश्किल ये थी कि सीढ़ियां काफी चौड़ी थीं और आतंकी आसानी से हमला कर सकते थे. इसके बावजूद मेजर संदीप उन्नीकृष्णन और उनकी टीम नहीं डरी. जब मेजर संदीप उन्नीकृष्णन अपनी टीम के साथ सीढ़ियों पर ऊपर की तरफ बढ़े तो आतंकियों ने फायरिंग कर दी और कमांडो सुनील कुमार जोधा गोली लगने से घायल हो गए. हालांकि अब आतंकियों के छिपे होने की जगह का पता लग चुका था. फिर मेजर संदीप उन्नीकृष्णन अपने साथियों को नीचे भेज दिया और खुद आतंकियों से भिड़ गए. जब तक बैकअप टीम नहीं पहुंची मेजर संदीप उन्नीकृष्णन अकेले आतंकियों से लोहा लेते रहे. हालांकि क्रॉस फायरिंग के दौरान मेजर संदीप उन्नीकृष्णन को गोली लग गई और वो वीरगति को प्राप्त हो गए.

युवाओं के प्रेरणास्रोत मेजर संदीप उन्नीकृष्णन

गौरतलब है कि मेजर संदीप उन्नीकृष्णन ने वीरता दिखाते हुए सैकड़ों बंधकों की जान बचाई. मेजर संदीप उन्नीकृष्णन ने सूझबूझ और बहादुरी दिखाते हुए आतंकियों की लोकेशन के बारे में जानकारी हासिल कर ली और बाद में उन आतंकियों को मार गिराया गया. अगर इसमें देरी होती तो बंधकों की जान जा सकती थी. मेजर संदीप उन्नीकृष्णन को शहीद हुए नवंबर में 13 साल से ज्यादा वक्त हो चुका है लेकिन उनकी बहादुरी और देशभक्ति हर कोई प्रेरणा हमेशा लेता रहेगा.

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