Madras High Court: शादी के बाद पति का पत्नी धर्म बदलवाने का दबाव डालना क्रूरता है, साथ ही इस तरह का दबाव बनाना उसकी जिंदगी की गुणवत्ता को गंभीर रूप से प्रभावित करता है और उनका जीवन बिना गरिमा के बेजान हो जाता है.
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मद्रास हाई कोर्ट ने एक अहम फैसला सुनाते हुए कहा कि अगर अंतर-धार्मिक विवाह में पति या पत्नी को लगातार दूसरा धर्म अपनाने के लिए मजबूर किया जाए, तो यह क्रूरता माना जाएगा. कोर्ट ने कहा कि ऐसा करना संविधान के अनुच्छेद 21 (जीवन और व्यक्तिगत स्वतंत्रता का अधिकार) और अनुच्छेद 25 (धर्म का अधिकार) के खिलाफ है.
कोर्ट ने कहा कि अगर किसी व्यक्ति को अपने धर्म को मानने और उसका पालन करने की आजादी नहीं दी जाती है, तो यह उनकी जिंदगी की गुणवत्ता को गंभीर रूप से प्रभावित करता है और उनका जीवन बिना गरिमा के बेजान हो जाता है. कोर्ट ने यह भी कहा कि विवाह के नाम पर किसी को धर्म बदलने के लिए मजबूर करना, शादी की नींव को ही खोखला कर देता है.
यह मामला एक मुस्लिम पति के ज़रिए दाखिल की गई याचिका से जुड़ा था, जिसने हिंदू पत्नी के साथ अपनी शादी को तोड़ने के फैमिली कोर्ट के आदेश को चुनौती दी थी. क्योंकि उसकी पत्नी ने दो आधारों पर तलाक मांगा था - क्रूरता और परित्याग (डिजर्शन). पत्नी ने आरोप लगाया था कि उसके पति ने लगातार उसे इस्लाम कबूल करने के लिए मजबूर किया और उसकी जाति के बुनियाद पर उसका अपमान किया, क्योंकि वह अनुसूचित जाति से है.
हालांकि पति ने दावा किया कि पत्नी ने झूठे आरोप लगाए हैं और कोई सबूत भी नहीं है कि उसे धर्म परिवर्तन के लिए मजबूर किया गया. जबकि कोर्ट ने पाया कि पति ने पत्नी को लगातार शारीरिक और मानसिक प्रताड़ना दी, उसका नाम बदल दिया और उसे इस्लाम कबूल करने के लिए मजबूर किया. कोर्ट ने यह भी नोट किया कि पति ने पत्नी को छोड़ दिया और दो साल से ज्यादा समय से अपनी बहन के साथ रहा.
अदालत ने कहा कि पति के इस व्यवहार ने पत्नी को गंभीर मानसिक तकलीफ दी, उसके विश्वास और अंतरात्मा को ठेस पहुंचाई, जो उसकी जिंदगी और व्यक्तिगत आजादी के लिए एक चुनौती बन गई. इसलिए कोर्ट ने तलाक को क्रूरता और परित्याग की बुनियाद पर मंजूरी देते हुए कहा कि बिना सहमति के किसी को धर्म परिवर्तन के लिए मजबूर करना हिंसा करने के बराबर है.