उदयपुर-सलूम्बर-मालवी-गोगुन्दा में क्या है कांग्रेस का काउंटर प्लान! दिग्गजों पर लगेगा दांव?
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उदयपुर-सलूम्बर-मालवी-गोगुन्दा में क्या है कांग्रेस का काउंटर प्लान! दिग्गजों पर लगेगा दांव?

Udaipur Vidhansabha Seat: क्या कांग्रेस आलाकमान के लिए टिकिट चयन में उदयपुर-सलूम्बर जिले में पार्टी के बड़े चेहरे है बने हुए है समस्या!

 

उदयपुर-सलूम्बर-मालवी-गोगुन्दा में क्या है कांग्रेस का काउंटर प्लान! दिग्गजों पर लगेगा दांव?

Udaipur Vidhansabha: राजस्थान में चुनावी बिगुल बज चुका है. चुनावी बिसात के बिछने के साथ ही राजनैतिक दलों ने अपने पत्ते खोलने शुरू कर दिए है. इस बीच भाजपा ने अपनी पहली लिस्ट भी जारी कर दी. जिसमें उदयपुर के खेरवाड़ा विधानसभा क्षेत्र से नानालाल आहरी को चुनावी मैदान में उतारा है, लेकिन बात अगर कांग्रेस पार्टी की करें तो इस बार पार्टी आलाकमान को उदयपुर और नवगठित सलूम्बर जिले की विधानसभा सीट पर प्रत्याशियों के चयन को लेकर कड़ी मशक्कत करनी पड़ रही होगी. जिसका मुख्य कारण इन दोनों जिलों से आने वाले पार्टी के दिग्गज नेता है.

उदयपुर और सलूम्बर जिले की विधानसभा सीट पर प्रत्याशियों के चयन को लेकर कांग्रेस आलाकमान के सामने खड़ी है. बड़ी समस्या, पार्टी हारे हुए दिग्गजो पर लगाए अपना दाव या किसी इन चेहरे को उतारे चुनावी मैदान में, पार्टी के चार बड़े नेताओ को लगातार दो विधानसभा चुनाव में हार का करना पड़ा है सामना, ऐसे में बड़ा सवाल क्या पार्टी आलाकमान ले पाएगा कोई ठोस निर्णय.

प्रदेश में आगामी विधानसभा चुनाव के तारीख की घोषणा होने के बाद अब उदयपुर और सलूम्बर जिले के राजनीतिक दलों के कार्यकर्ताओं को चुनावी मैदान में उतरने वाले प्रत्याशियों के नामों की घोषणा का इंतजार है. राजनैतिक दल हमेशा अपनी पार्टी के बड़े चेहरे को चुनावी मैदान में उतारता है. जिससे वह आसानी से चुनावी जीत दर्ज कर सके. लेकिन उदयपुर और सलूम्बर जिले में कांग्रेस पार्टी के ये बड़े चेहरे ही आलाकमान के सामने टिकिट चयन को लेकर बड़ी समस्या बने हुए है.

मुख्य रूप से उदयपुर ग्रामीण, गोगुन्दा, मवाली और सलूम्बर विधानसभा सीट है, जहां कांग्रेस पार्टी को बीते दो विधानसभा चुनावो में हार का सामना करना पड़ा. जहां से पार्टी बड़े चेहरों के साथ चुनावी मैदान में उतरी थी. लेकिन ये नेता चुनावी मैदान में अपनी पार्टी को जीत नहीं दिला पाए. वहीं झाड़ोल विधानसभा क्षेत्र में भी पार्टी की स्थित ज्यादा मजबूत नहीं है. तो वहीं उदयपुर शहर विधानसभा सीट से कांग्रेस पार्टी लगातार चार चुनाव हार चुकी है. ऐसे में पार्टी आलाकमान के सामने यह बडी समस्या है कि वह हारे हुए दिग्गजों पर अपना दांव लगाए या किसी नए चेहरे के साथ चुनावी मैदान में उतरे. जो भाजपा का गढ़ बनते जा रहे. उदयपुर और सलूम्बर जिले में पार्टी को जीत दिला सके.

गोगुन्दा विधानसभा सीट

गोगुन्दा विधानसभा सीट पर पूर्व मंत्री मांगीलाल गरासिया लगातर 2 बार चुनाव हार चुके है. दोनो ही बार भाजपा के प्रताप गमेती ने उनको हराया. हालाकि हार का अंतर लगभग पांच हजार वोट के आसपास रहा. इस बार भी गरासिया टिकिट की दौड़ में सबसे आगे है. क्षेत्र के अन्य दावेदार गरासिया की दो हार को मुद्दा बनाते हुए अपनी दावेदारी को मजबूत बता रहे है. लेकिन गरासिया पूर्व देहात जिलाध्यक्ष और वीर शिरोमणि महाराणा प्रताप बोर्ड के अध्यक्ष लालसिंह झाला के करीबी है. ऐसे में उनका टिकिट काटना आलाकमान के लिए इतना आसान भी नहीं होगा. वही अन्य दावेदारों का कद भी गरासिया से छोटा है.

उदयपुर ग्रामीण

उदयपुर ग्रामीण विधानसभा सीट कांग्रेस का मजबूत गढ़ रही है. यहां से विधायक बन कर खेमराज कटारा मंत्री बने. कटारा के निधन के बाद उनकी पत्नी सज्जन देवी कटारा विधायक बनी. यही कारण है कि यह सीट कटारा परिवार के नाम से जानी जाने लगी. लेकिन वर्ष 2013 में सज्जन कटारा को भाजपा के फूलसिंह मीणा ने चुनाव में हरा दिया. वर्ष 2018 में पार्टी ने सज्जन कटारा का टिकिट काट कर उनके बेटे विवेक कटारा को चुनावी मैदान में उतारा, लेकिन विवेक भी पार्टी को जीत नही दिला पाए. इसके बाद हुए पंचायत चुनाव में कांग्रेस पार्टी ने भाजपा की मजबूत गिर्वा पंचायत में जीत दर्ज की और सज्जन कटारा प्रधान बनी. जिससे कटारा परिवार का दांवा फिर से मजबूत हो गया. इसके अलावा ग्रामीण विधानसभा क्षेत्र में पार्टी के पास कोई बड़ा चेहरा नही है जिस पर पार्टी दांव लगाए. ऐसे में मजबूरी में ही सही माना जा रहा है कि अंत मे मोहर विवेक कटारा के नाम पर ही लगेगी.

सलूम्बर विधानसभा

पूर्व सांसद और सीडब्ल्यूसी मेम्बर रहे रघुवीर मीणा सलूम्बर विधानसभा क्षेत्र से आते है. वे यहां से विधायक का चुनाव भी जीते. 2004 के लोकसभा चुनाव में वे उदयपुर संसदीय सीट से चुनवा जीत कर सांसद बन गए. इसके बाद यहां हुए उपचुनाव में उनके पत्नी बसन्ती देवी की एंट्री राजनीति में हुई और वे उपचुनाव जीत कर विधायक बन गई. बसन्ती देवी 2013 का विधानसभा चुनाव हार गई. 2018 मे पार्टी ने फिर से रघुवीरसिंह मीणा को विधानसभा चुनाव लड़ाया लेकिन वे भी हार गए. दोनो ही बार भाजपा के अमृत लाल मीणा ने कांग्रेस को हराया. इस दौरान मीणा को दो बार लोकसभा चुनाव में भी हार का सामना करना पड़ा.

दो लोकसभा और दो विधानसभा चुनाव हारने के बाद भी कांग्रेस पार्टी ने रघुवीर मीणा के नेतृत्व में सलूम्बर विधानसभा क्षेत्र की 6 पंचायत समितियों में से 4 पर जीत दर्ज की. सराड़ा पंचायत में उनकी पत्नी बसन्ती देवी और सलूम्बर पंचायत समिति में उनकी की समधन प्रधान बनी. करीब 3 दशक बाद सलूम्बर पालिका मे कांग्रेस पार्टी ने अपना बोर्ड बनाया. सलूम्बर को जिला घोषित हुआ. जिसमें मीणा की बड़ी उपपब्धि माना जाता है. यही कारण है कि सलूम्बर विधानसभा क्षेत्र से मीणा को टिकिट का मजबूत दावेदार माना जा रहा है और जिले में पार्टी का बड़ा चेहरा होना रघुवीर मीणा के पक्ष में जाता है.

मावली विधानसभा क्षेत्र

मावली विधानसभा क्षेत्र में भी कांग्रेस पार्टी को लगातार दो बार हार का सामना करना पड़ा है. दोनो ही बार पार्टी ने पुष्कर डांगी को चुनावी मैदान में उतारा लेकिन वे पार्टी की नैया पार नही लगा पाए. डांगी विधानसभा अध्यक्ष डॉ सीपी जोशी के खेमे से आते है. बावजूद इसके 2013 में चुनवा में हार के बाद पार्टी ने 2018 में उनका टिकिट काट दिया और देहात जिलाध्यक्ष रहे लालसिंह झाला को मवाली से चुनावी मैदान में उतारा. बाद में डांगी ने जुगत लगा कर झाला का टिकिट कटवा कर पार्टी का सिम्बोल लेकर आ गए और चुनावी मैदान में ताल ठोकी. जुगत से मिले टिकिट के सहारे डांगी चुनावी जीत दर्ज नही कर पाए. हालाकि इसके बाद हुए पंचायत चुनाव में पुष्कर डांगी ने जीत दर्ज की और प्रधान बन गई.

यही कारण है कि उनकी दावेदारी मजबूत मानी जा रही है. लेकिन उदयपुर ग्रामीण, गोगुन्दा और सलूम्बर के विपरित मावली विधानसभा क्षेत्र की राजनीतिक स्थितियां है. यहां पर पार्टी के पास ओर भी कई मजबूत दावेदार है. जिमसें इंटक के प्रदेश अध्यक्ष और श्रम सलाहकार समिति के उपाध्यक्ष जगदीश राज श्रीमाली सहित कई मजबूत दावेदार है. जिन पर पार्टी दांव लगा सकती है. लेकिन डॉ सीपी जोशी के करीबी होने के कारण पार्टी आलाकमान के लिए उनका टिकिट काटना भी आसान नजर नही आता. ऐसे में उदयपुर जिले की अधिकांश सीटों पर कांग्रेस पार्टी आलाकमान चाह कर भी बदलाव नही कर पाएगा. मजबूरी में ही सही लेकिन इस बार के चुनाव में भी पार्टी को अपने हारे हुए दिग्गजो पर ही दांव लगाना होगा. ऐसे में देखना दिलचस्प होगा कि ये बड़े चेहरे आने वाले विधानसभा चुनवा में पार्टी को जीत दर्ज करवा पाते है या नहीं.

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