Rajasthan News : राजस्थान में मरू प्रदेश निर्माण पर चर्चा हो रही है. इस पर मुख्यमंत्री अशोक गहलोत ने कोई बयान नहीं दिया है. लेकिन नए जिलों की घोषणा के बाद बाड़मेर जैसलमेर से लेकर जोधपुर नागौर और बीकानेर से लेकर श्रीगंगानगर तक लोगों में इस पर चर्चा है. ऐसे में समझिए, मरूप्रदेश निर्माण से जुड़े 3 बड़े सवालों के जवाब.
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Maru Pradesh in Rajasthan : राजस्थान में इन दिनों नए जिलों के गठन की चर्चा है. लेकिन इसी बीच एक चर्चा ये भी है कि क्या राजस्थान में अब पूर्वी राजस्थान से अलग पश्चिमी राजस्थान का हिस्सा होगा. जैसलमेर, बाड़मेर, बीकानेर, जोधपुर, पाली समेत पश्चिमी राजस्थान के रेगिस्तानी जिलों का अलग से राज्य बनाया जाएगा. इस बारे में अभी तक मुख्यमंत्री अशोक गहलोत के स्तर से या प्रशासनिक स्तर से किसी ने कोई बयान नहीं दिया है. लेकिन जिलों की संख्या 50 होने के बाद इस मुद्दे पर काफी चर्चा है.
राजस्थान में कई वर्गों ने समय समय पर इसकी मांग उठाई है. तर्क ये दिया जाता है कि अरावली के पूर्व और पश्चिम की परिस्थितियां बिल्कुल अलग है. पूर्वी हिस्सा जिसमें उदयपुर संभाग, कोटा संभाग, भरतपुर संभाग, जयपुर संभाग आते है. आधा अजमेर संभाग भी आता है. ये जमीन उपजाऊ है. यहां खेती और पशुपालन की नजरिए से भी काफी अच्छी स्थितियां है. जनसंख्या घनत्व ज्यादा होने से यहां बाजार भी ज्यादा विकसित हुए. लिहाजा प्रति व्यक्ति आय भी बेहतर है. जबकि बाड़मेर जैसलमेर और बीकानेर जैसे रेगिस्तानी इलाकों में जमीन कम उपजाऊ होती है. जनसंख्या घनत्व कम होने से औद्योगिक विकास भी उतना नहीं है. प्रति व्यक्ति आय भी बहुत कम है. ऐसे में वर्तमान 33 जिलों से 12 जिलों को अलग कर नए प्रदेश की मांग उठती रहती है.
तय प्रक्रिया के हिसाब से अगर नए राज्य का निर्माण करना हो. तो राज्य और केंद्र सरकार दोनों की मंजूरी जरुरी है. नए राज्यों के निर्माण की शक्ति संसद के पास होती है. लेकिन संसद अपनी मर्जी से भी फैसला नहीं ले सकती. राज्य विधानसभा से इसका प्रस्ताव पास होता है. फिर वो प्रस्ताव केंद्र सरकार के पास जाता है. वहां अगर संसद के दोनों सदनों से भी मंजूरी मिल जाती है. उसके बाद राष्ट्रपति के हस्ताक्षर होते ही नए राज्य का गठन हो सकता है. ऐसे में इसीक शुरुआत राज्य सरकार से होगी. आखिरी फैसला केंद्र सरकार का होगा.
अगर रेगिस्तानी इलाके वाले जिलों को मिलाकर अलग राज्य बनता है. तो क्या असर होगा. इसका जवाब समझना जरूरी है.
देश के वो सभी राज्य. जहां परिस्थितियां अलग है. जिसमें पहाड़ी राज्य हो या नॉर्थ ईस्ट के राज्य हो. जहां राज्य के पास आय के स्त्रोत कम हो. वहां ज्यादातर योजनाओं में केंद्र सरकार 90 प्रतिशत तक हिस्सेदारी देती है. राज्य के आय के स्त्रोतों पर भी राज्य का ही हक होता है. केंद्र सरकार उसमें बहुत कम हिस्सेदारी लेती है. कुल मिलाकर केंद्र सरकार से राज्य को काफी आर्थिक मदद मिलती है.
नेशनल डेवलपमेंट काउंसिल के मुताबिक अंतरराष्ट्रीय बॉर्डर, दुर्गम क्षेत्र, कम जनसंख्या, प्रति व्यक्ति आय और कम राजस्व वाले राज्यों को विशेष राज्य का दर्जा दिया जा सकता है. साल 1969 में पहली बार इस आयोग के सुझाव के आधार पर देश में 3 राज्यों को विशेष राज्य का दर्जा दिया गया था.