Lok Sabha Election: झीलों की नगरी में राजनीतिक दलों का दमखम, भाजपा दबदबा बरकरार रखने का करेगी प्रयास, कांग्रेस खोई जमीन तलाशने में जुटी
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Lok Sabha Election: झीलों की नगरी में राजनीतिक दलों का दमखम, भाजपा दबदबा बरकरार रखने का करेगी प्रयास, कांग्रेस खोई जमीन तलाशने में जुटी

Rajasthan Lok Sabha Election : राजस्थान में विधानसभा चुनाव के बाद प्रदेश में दोनों ही प्रमुख राजनीतिक दल अपने पुरे दमखम के साथ चुनावी मौदान में उतर गए है. भाजपा जहां प्रदेश में सभी 25 सीटें जीत कर हैट्रिक लगाने के प्रयास में है तो वही कांग्रेस भाजपा के तिलिस्म को तोड़ना चाहती है. उदयपुर लोक सभा सीट पर मुकाबला रोचक होता दिखाई पड़ेगा.

Lok Sabha Election: झीलों की नगरी में राजनीतिक दलों का दमखम, भाजपा दबदबा बरकरार रखने का करेगी प्रयास, कांग्रेस खोई जमीन तलाशने में जुटी

Rajasthan Lok Sabha Election : विधानसभा चुनाव के बाद प्रदेश में दोनों ही प्रमुख राजनीतिक दल अपने पुरे दमखम के साथ चुनावी मौदान में उतर गए है. भाजपा जहां प्रदेश में सभी 25 सीटें जीत कर हैट्रिक लगाने के प्रयास में है तो वही कांग्रेस भाजपा के तिलिस्म को तोड़ना चाहती है.

भाजपा का सभी 25 सीटें जीत कर हैट्रिक लगाने का प्रयास

ऐसे में दोनों ही पार्टियां बड़ी ही सावधानी से कदम आगे बढ़ा रही है. बात आगर उदयपुर लोकसभा सीट की करे तो यहां पर बीजेपी और कांग्रेस दोनो ही पार्टियों ने अपने प्रत्याशी मौदान में उतार दिए है. यहां बीजेपी अपनी पकड़ को मजबूत रखना चाहती है तो वही कांग्रेस अपनी खोई जमीन को फिर से तलासने में जुटी हुई है.

कांग्रेस अपनी खोई जमीन तलाशने में जुटी

2023 के विधानसभा चुनाव में सामने आई ''बाप'' लोकसभा में अपना खाता खोलकर देश की सबसे बड़ी पंचायत में अपनी एंट्री करने की योजना बना रही है, हालांकि उदयपुर जैसी महत्वपूर्ण सीट पर दोनों दालों पार्टी के नेता की बजाए अब तक राजकीय सेवा के रूप में लोगो के बीच रही अधिकारियों पर दांव लगाया है. जिससे यहां का इलेक्शन रोचक होता दिखाई पड़ेगा.

असल मे बीजेपी और कांग्रेस दोनों ही पार्टियां ने चुनावी मैदान में नए चेहरों के साथ उतरी है. भाजपा अर्जुन लाल मीणा की दो बार लोकसभा का टिकट दिया और दोनों ही बार उन्होने जीते दर्ज की लेकिन इस बार पार्टी ने उनका टिकिट काट दिया. वहीं लगातार 2 बार लोकसभा और विधानसभा चुनाव में हार का सामना करने वाले रघुवीर सिंह मीणा का पार्टी ने टिकिट काट दिया.

कांग्रेस की परंपरागत सीट रही उदयपुर लोकसभा सीट पर पिछले 3 दशक में भाजपा का दबदबा रहा है. यह सीट अनुसूचित जनजाति के लिए आरक्षित है. आदिवासी अंचल में भाजपा ने अपनी पकड़ बनाई है. उदयपुर लोकसभा सीट पर मतदाताओं की संख्या की बात की जाये तो इस सीट पर ST-SC मतदाताओं की तादाद सबसे ज्यादा है.

2014 के लोकसभा चुनाव में भाजपा के प्रत्याशी अर्जुन लाल मीणा ने कांग्रेस के रघुवीर सिंह मीणा को हराया था। 437914 अंतर से  हराया. वह दूसरी बार इस सीट से जीते थे.

10 बार कांग्रेस तो 5 बार जीती भाजपा

 राजस्थान की उदयपुर लोकसभा सीट मेवाड़ संभाग की चार सीटों में से एक है. तीन अन्य सीटें राजसमंद, चित्तौड़गढ़ और बांसवाड़ा हैं. आजादी के बाद उदयपुर सीट पर हुए 17 लोकसभा चुनाव में 10 बार कांग्रेस, 5 बार बीजेपी और 2 बार अन्य (जनसंघ और जनता पार्टी) ने जीत दर्ज की.

उदयपुर लोकसभा चुनाव इतिहास

1952: बलवंत सिंह मेहता, कांग्रेस
1957: परमार, श्री दीनबंधु, कांग्रेस
1962: धुलेश्वर मीणा, कांग्रेस
1967: धुलेश्वर मीणा, कांग्रेस
1971: लालजीभाई मीणा, जनसंघ
1977: भानू कुमार शास्त्री, जनता पार्टी
1980: मोहन लाल सुखाड़िया, कांग्रेस
1984 : इंदुबाला सुखाड़िया, कांग्रेस
1989: गुलाब चंद कटारिया, भारतीय जनता पार्टी
1991: गिरिजा व्यास, कांग्रेस
1996: गिरिजा व्यास, कांग्रेस
1998: शांति लाल चपलोत, भारतीय जनता पार्टी
1999: गिरिजा व्यास, कांग्रेस
2004: किरण माहेश्वरी, भारतीय जनता पार्टी
2009 : रघुवीर मीणा, कांग्रेस
2014: अर्जुनलाल मीणा, भारतीय जनता पार्टी
2019: अर्जुनलाल मीणा, भारतीय जनता पार्टी   

आदिवासी पार्टियां देंगी कड़ी टक्कर

2018 के विधानसभा चुनाव में उदयपुर संभाग में भारतीय ट्राइबल पार्टी अस्तित्व में आई और चुनाव भी जीता, लेकिन लोकसभा चुनाव में अपना प्रभाव नहीं छोड़ पाती है. 2023 के विधानसभा चुनावों में बीटीपी में बिखराव हुआ और आदिवासी पार्टी के रूप में भारतीय आदिवासी पार्टी का उदय हुआ.

जिसने चुनावी जीत दर्ज करने के साथ प्रमुख दलों का राजनैतिक समीकरण भी बिगड़ा. ऐसे में लगता है कि लोकसभा चुनाव में बाप अपना दमखम दिखा सकती है. बाप और बीटीपी दोनों ही पार्टियां आदिवासियों के हकों के लिए काम कर रही हैं, जिसमें जल,जंगल, जमीन और आदिवासियों के अधिकारों के लिये काम कर रही हैं.

इसी वजह से आदिवासी वोट बैंक इन पार्टियों के साथ जुड़ता जा रहा है. जानकारों की माने तो विधानसभा चुनाव में आसपुर और धरियावद में भारतीय आदिवासी पार्टी ने शानदार जीत दर्ज की थी.साथ ही पार्टी ने सलूम्बर, खेरवाड़ा, विधानसभा चुनाव में अच्छा वोट हासिल किया था.

इन पार्टियों के प्रदर्शन के कारण कांग्रेस और भाजपा का वोट बैंक खिसकता नजर आ रहा है. बाप इस बार के लोकसभा चुनाव में कांग्रेस-भाजपा के सामने बड़ी चुनौती पेश करेंगी. राजनीति के जनकारोंकी माने तो अगर कांग्रेस पार्टी उदयपुर संभाग में बाप के साथ गठबंधन कर ले तो भाजपा प्रत्याशी को कड़ी टक्कर दे सकती है. उनका मानना है कि लोकसभा चुनाव में राष्ट्रीय मुद्धे हावी रह सकते है. ऐसे में स्थानीय संसदीय क्षेत्र के मुद्दों पर चुनवा में वोट मिलने की सम्भावना बेहद कम है, तो वहीं आम मतदाता भी राष्ट्रीय मुद्दों पर ज्यादा फोकस करता दिखाई दे रहा है और विपक्षी पार्टी में पीएम का चेहरा नही होने से वॉटर इन पर ज्यादा विश्वास नही जाता पा रहा है.

चार जिलों की 8 विधानसभा वाली सीट

उदयपुर संसदीय सीट चार जिलों से मिल कर बनी है. उदयपुर, डूंगरपुर, प्रतापगढ़ और हाल ही में नया जिला बने सलूम्बर को शामिल किया गया है. इस चार जिलों की 8 विधानसभा क्षेत्र के मतदाता अपने मताधिकार का उपयोग करते है. उदयपुर जिले से उदयपुर शहर, ग्रामीण, गोगुन्दा, झाड़ोल और खेरवाड़ा विधानसभा सीटे शामिल की गई है.

वहीं डूंगरपुर जिले की आसपुर, प्रतापगढ़ की धरियावद और सलूम्बर जिले की सलूम्बर विधानसभा सीट इस संसदीय क्षेत्र आती है. करीब 22 लाख मतदाताओं वाली इस सीट का लगभग 81 प्रतिशत मतदाता ग्रामीण इलाकों में रहता है. वही जातीय समीकरण की बात करें तो 60 प्रतिशत से अधिक वोटर एससी-एसटी समुदाय से आता है. वहीं शेष वोटर सामान्य और ओबीसी श्रेणी से है.

यह मुद्दें हैं खास

उदयपुर संसदीय क्षेत्र में स्थानीय मुद्दों की बात करे तो एक बड़ा वर्ग पर्यटन व्यवसाय से जुड़ा है ऐसे में शहरी पर्यटन के साथ ग्रामीण इलाकों को पर्यटन से जोड़ना, अंतराष्ट्रीय उड़ाने शुरू करना, रेल सेवाओ का विस्तार, हाई कोर्ट बैंच, उदयपुर शहर को बी 2 श्रेणी का दर्जा देना, आदिवासी इलाकों में मूलभूत सुविधाओं का विस्तार के साथ जल, जमीन और जंगल का अधिकार सहित कई मुद्दे है.

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