शनिदेव की दृष्टि से बचने के लिए हाथी बन गए थे भोलेनाथ
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शनिदेव की दृष्टि से बचने के लिए हाथी बन गए थे भोलेनाथ

Lord Shiva And Shanidev : हिंदू धर्म में कई ऐसी पौराणिक कथाएं हैं. जो सुनने में भी अच्छी लगती है और प्रांसगिग भी हैं. अब शनिदेव और शिव जी की इस कहानी को ही पढ़ें. जिसमें शनिदेव की वक्री दृष्टि से भगवान भोलेनाथ परेशान हो गये थे और हाथी बनकर छिप गये थे.

 

शनिदेव की दृष्टि से बचने के लिए हाथी बन गए थे भोलेनाथ

Lord Shiva And Shanidev : हिंदू धर्म में कई ऐसी पौराणिक कथाएं हैं. जो सुनने में भी अच्छी लगती है और प्रांसगिग भी हैं. अब शनिदेव और शिव जी की इस कहानी को ही पढ़ें. जिसमें शनिदेव की वक्री दृष्टि से भगवान भोलेनाथ परेशान हो गये थे और हाथी बनकर छिप गये थे.

एक समय की बात  है एक बार शनि देव भगवान शंकर के धाम हिमालय पहुंचे थे. शनिदेव ने गुरुदेव भगवान शंकर को प्रणाम किया और कहा कि " हे प्रभु! मैं कल आपकी राशि में आ रहा हूं, यानि की मेरी वक्री दृष्टि आप पर पड़ने वाली है. शनिदेव की बात सुनकर भगवान शंकर आश्चर्यचकित हो गये.

भोलेनाथ ने कहा कि हे शनिदेव आप कितने समय अपनी वक्री दृष्टि मुझ पर रखेंगे. तो शनिदेव ने उत्तर दिया कि हे नाथ कल सवा प्रहर के लिए आप पर मेरी वक्री दृष्टि होगी. जैसे ही शनिदेव की इस बात को भोलेनाथ ने सुना तो वो इससे बचने के उपाय सोचने लगें.

कहते हैं कि शनि की दृष्टि से बचने के लिए भगवान भोलेनाथ मृत्युलोक आ गये और एक हाथी का रूप धारण कर लिया. भगवान शंकर को हाथी के रूप में सवा प्रहर तक का समय बिताना था. जब संध्या हो गयी तो भगवान शंकर वापस कैलाश पर्वत आ गये और सोचा कि अब शनि की वक्री दृष्टि का समय बीत गया है.

जैसे ही भोलेनाथ कैलाश पर्वत पहुंचे तो शनिदेव वहां इंतजार करते दिखे. भगवान शिव को देखकर शनिदेव ने उनको प्रणाम किया. तो भोलेनाथ ने कहा कि आपकी वक्री दृष्टि का मुझ पर असर नहीं हुआ और ऐसा कह कर भोलेनाथ मुस्कुराने लगें.

अब जवाब देने की बारी शनिदेव की थी. शनि देव ने मुस्कुराते हुए कहा कि हे प्रभु मेरी दृष्टि से ना तो देव बच सकते हैं ना दानव. शनिदेव ने कहा कि मेरी दृष्टि के चलते ही आपको सवा प्रहर के लिए देव योगी से पशु योगी में जाना पड़ा था. शनिदेव की इस बात को सुनकर भगवान भोलेनाथ बहुत प्रसन्न हो गये और शनिदेव को गले से लगा लिया.
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