राजस्थान के झुंझुनूं जिले के मंडावा तहसील में मिनी फारेस्ट एरिया बनाने की तैयारी की जा रही है. तहसीलदार के जरिए 12 सौ पौधे तैयार किए जा रहे है. ये पौधे मियावाकी पद्धति से लगाए जा रहे है.
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Mandawa: राजस्थान के झुंझुनूं जिले के मंडावा तहसील में मिनी फारेस्ट एरिया बनाने की तैयारी की जा रही है. तहसीलदार के जरिए 12 सौ पौधे तैयार किए जा रहे है. ये पौधे मियावाकी पद्धति से लगाए जा रहे है. मियावाकी पद्धति एक जापानी वनीकरण विधि है. इसमें पौधों को कम दूरी पर लगाया जाता है. पौधे सूर्य का प्रकाश प्राप्त कर ऊपर की ओर बढ़ते हैं. पद्धति के अनुसार पौधों के तीन प्रजातियों की सूची तैयार की जाती है.
यह मंडावा तहसीलदार सुभाष कुलहरि की पहल है, जिसमें 3 लाख 60 हजार का खर्चा आया है. झुंझुनूं जिले में पहली बार इस पद्धति से पौधे लगाए जा रहे है. कहते हैं, कुछ अलग कर दिखाने का जज्बा हो तो कोई भी काम मुश्किल नहीं है. ऐसा ही जज्बा झुंझुनूं के मंडावा के तहसीलदार सुभाष कुलहरि में देखने को मिला है. तहसीलदार कुलहरि ने तहसील कार्यालय परिसर के अंदर जापानी बॉटनिस्ट डॉक्टर अकीरा मियावाकी के द्वारा विकसित पद्धति में छोटी और सीमित स्थान पर मियावाकी पद्धति से लोकल और देसी प्रजातियों के करीब 1200 पेड़-पौधे लगाकर मिनी फॉरेस्ट एरिया तैयार किया है.
झुंझुनूं के मंडावा तहसील परिसर में झुंझुनूं जिले का यह पहला मिनी फॉरेस्ट एरिया तैयार किया गया है. यह ना केवल पर्यावरण के लिए फायदेमंद है, बल्कि जीवन में तनाव कम करने में भी मददगार है. यह हरियाली और शुद्ध वातावरण स्थापित करने के लिए एक प्रेरणा बनेगा. तहसीलदार सुभाष कुलहरि ने बताया कि, इस प्रोजेक्ट पर काम कर रही धरती अमृत कंपनी की टीम ने मिट्टी की जांच के बाद कार्य शुरू किया था और परिसर में करीब 5 गुना 400 मीटर के घेरे में यह 1 विकसित किया जाएगा.
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मियावाकी विधि द्वारा कृत्रिम वन निर्माण में 10 गुना तेज वृद्धि, 30 गुना ज्यादा सघनता, 100 गुना जैव विविधता और 100 प्रतिशत मूल प्रजातियां है. इस मिनी नर्सरी में खारा मीठा जाल, खेजड़ी, रोहिड़ा, फोग, कुमुठ, शीशम, बरना, चामरोड, अडूसा, हिंगोठ, कदम्ब सहित अन्य कई प्रकार की रोपित मूल प्रजातियां के पौधे लगाए गए हैं. इस मिनी फॉरेस्ट में भामाशाह और दानदाताओं के सहयोग से करीब 3 लाख 60 हजार लागत के 12 सौ पौधे लगाए गए हैं. पौधे लगाने में 2 फीट की दूरी रखी गई है और तुड़ी, पराली गोबर को मिलाकर खाद तैयार की गई है. इससे पूर्व में तहसीलदार सुभाष कुलहरि ने चुरू जिले के राजलदेसर में भी विषम परिस्थितियों के बावजूद मिनी फॉरेस्ट एरिया विकसित किया था.
सुभाष कुलहरि ने बताया कि, पहली बार उन्होंने इस तकनीक को नागौर के मकराना में देखा था. जब वहां के तत्कालीन और उदयपुरवाटी के वर्तमान तहसीलदार गजेंद्र सिंह ने मिनी फॉरेस्ट एरिया इसी तकनीक से तैयार किया तो इसके बाद उन्होंने भी राजलदेसर में यह नवाचार किया. झुंझुनूं में इस तकनीक का पहला फॉरेस्ट तहसील परिसर में तैयार किया जा रहा है. आपको बता दें कि, सीकर जिले के बेसवा गांव के रहने वाले तहसीलदार सुभाष कुलहरि नेवी से रिटायर है. राजलदेसर में 1000 पौधों में से अभी 700 से अधिक पौधे जीवित है. उन्होंने बताया कि इस तकनीक की जनक जापानी बॉटनिस्ट डॉक्टर अकीरा मियावाकी ने 30-40 सालों में 1400 के करीब साइट्स पर 4 करोड़ पौधे लगाए है. कई देश इस तकनीक का उपयोग कर रहे है.
Reporter: Sandeep Kedia
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