Jaisalmer: जैसलमेर में विकास के नाम पर विनाश कर रही निजी कंपनियां.सरहदी जिले जैसलमेर में ने रेगिस्तान की गर्मी और हवा को ऊर्जा में बदलने के लिए कई निजी कंपनियों के प्लांट यहां लग चुके हैं और अभी भी लगातार लगाए जा रहे हैं.
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Jaisalmer: रेत के टीलों के नाम से जाना जाने वाला रेगिस्तान जहां बढ़ती गर्मी और रेतीले टीले इस भीषण गर्मी में पूरे मरू प्रदेश को जलता लावा बना देते हैं. वहीं,यहां लगे पेड़-पौधे ही इस धरती के लिए राहत का काम करते हैं.
लेकिन इन दिनों निजी कंपनियां यहां के भौगोलिक प्रदेश को राहत देने वाले पेड़ पौधों पर कहर बरपा रही है.सरहदी जिले जैसलमेर में ने रेगिस्तान की गर्मी और हवा को ऊर्जा में बदलने के लिए कई निजी कंपनियों के प्लांट यहां लग चुके हैं और अभी भी लगातार लगाए जा रहे हैं.
पर्यावरण को नुकसान
राज्य सरकार द्वारा निजी कंपनियों को हजारों बीघा जमीन भी यहां मुहैया करवाई गई है. जहां इनके संयंत्र लगाए जा रहे हैं वहीं, यह कंपनिओं के द्वारा बड़े पैमाने पर पर्यावरण को नुकसान भी पहुंचाया जा रहा है.जिसके चलते मौसम में भी बदलाव देखने को मिल रहा है. निजी कंपनियों को राज्य वृक्ष खेजड़ी सहित अन्य कई दुर्लभ वृक्षों की अंधाधुंध कटाई की जा रही है, जिसको लेकर पर्यावरण प्रेमियों में काफी रोष व्याप्त है.
वन्य जीव प्रेमी नाराज
ताजा मामला जैसलमेर के फतेहगढ़ इलाके में लग रहे सोलर प्लांट का है जिसको लेकर वन्य जीव प्रेमी नाराज है. दरअसल सोलर कंपनियां बड़ी संख्या में हरे भरे पेड़ काट रही है जिसको लेकर क्षेत्र के लोगों में ख़ासी नाराजगी है. वन्य जीव प्रेमी खेजड़ी और अन्य हरे पेड़ काटे जाने का विरोध कर रहे हैं, मगर ना तो कंपनियां और ना ही जिला प्रशासन इनकी ओर कोई तवज्जो दे रहा है.
बड़ी संख्या में पेड़ों कि कटाई
ग्रामीणों द्वारा विरोध करने पर रात को गड्ढों में जेसीबी से पेड़ों को गाड़ा जा रहा है ताकि सबूत नहीं मिले.इस तरह इलाके से हरियाली तो गायब हुई ही है साथ ही पशु पक्षियों के लिए आश्रय की जगह भी नहीं बची है. आई ओटू कंपनी ने नींबा गांव में अपनी जमीन पर उगे बड़ी संख्या में पेड़ों कि कटाई कर दी है. जबकि नियमों के लिहाज से 11 से ज्यादा पेड़ों की कटाई नहीं कर सकती और उसमे भी सरकार को पैसे जमा करवाने पड़ते हैं.
जबकि कंपनी ने सैकड़ों की संख्या में पेड़ों को काटा है, जिनमें केर, खेजड़ी, जाल आदि मुख्य है, और ये सिलसिला अभी भी जारी है. ना तो कंपनी के अधिकारी और ना ही जिला प्रशासन कोई जवाब दे रहा है. पर्यावरण प्रेमियों का कहना है कि अगर इसी तरह हरे भरे पेड़ कंपनियां काटती रही तो मजबूर होकर उन्हें आंदोलन करना पड़ेगा.