EWS Reservation: EWS आरक्षण पर SC ने लगाई मुहर, CJI और जस्टिस रविन्द्र भट्ट ने जताई असहमति, जानें क्या कहा
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EWS Reservation: EWS आरक्षण पर SC ने लगाई मुहर, CJI और जस्टिस रविन्द्र भट्ट ने जताई असहमति, जानें क्या कहा

देश के सरकारी शिक्षण संस्थानों में प्रवेश और सरकारी नौकरियों में आर्थिक रूप से कमजोर वर्गों के आरक्षण को लेकर सुप्रीम कोर्ट ने अपना फैसला सुना दिया है. पीठ के 3 सदस्यों में जस्टिस दिनेश माहेश्वरी, जस्टिस बेला एम त्रिवेदी और जस्टिस जेबी पारदीवाला ने 2019 के 103 वें संविधान संशोधन को संवैधानिक और वैध करार दिया है.

EWS Reservation: EWS आरक्षण पर SC ने लगाई मुहर, CJI और जस्टिस रविन्द्र भट्ट ने जताई असहमति, जानें क्या कहा

EWS Reservation: देश के सरकारी शिक्षण संस्थानों में प्रवेश और सरकारी नौकरियों में आर्थिक रूप से कमजोर वर्गों के आरक्षण को लेकर सुप्रीम कोर्ट ने अपना फैसला सुना दिया है. CJI यूयू ललित की अध्यक्षता वाली 5 सदस्य पीठ ने 3: 2 के बहुमत से संवैधानिक और वैध करार दिया है. पीठ के 3 सदस्यों में जस्टिस दिनेश माहेश्वरी, जस्टिस बेला एम त्रिवेदी और जस्टिस जेबी पारदीवाला ने 2019 के 103 वें संविधान संशोधन को संवैधानिक और वैध करार दिया है.

103 वां संशोधन भेदभाव पूर्ण है- जस्टिस रविंन्द्र भट्ट
वहीं सीजेआई ललित के साथ जस्टिस एस रविन्द्र भट्ट ने इसे असंवैधानिक करार देते हुए फैसले से असहमति जतायी है. जस्टिस रविंन्द्र भट्ट ने कहा कि 103 वां संशोधन भेदभाव पूर्ण है. दोनो ने EWS आरक्षण के लिए 103 वें संविधान संशोधन को संविधान के खिलाफ बताया है. जस्टिस दिनेश माहेश्वरी ने EWS आरक्षण को संवैधानिक करार दिया और कहा कि ये संविधान के किसी प्रावधान का उल्लंघन नहीं करता. ये आरक्षण संविधान को कोई नुकसान नहीं पहुंचाता. ये समानता संहिता का उल्लंघन नहीं है.

जस्टिस पारदीवाला ने बहुमत के विचारों से सहमत होते हुए कहा कि मैं कहता हूं कि आरक्षण आर्थिक न्याय को सुरक्षित करने का एक साधन है और इसमें निहित स्वार्थ की अनुमति नहीं दी जानी चाहिए. इस कारण को मिटाने की यह कवायद आजादी के बाद शुरू हुई और अब भी जारी है. जस्टिस पारदीवाला ने फैसले में अहम टिप्पणी करते हुए कहा कि यह भी विचार करने की जरूरत है कि आरक्षण कब तक जरूरी है. उन्होंने कहा कि गैर-बराबरी को दूर करने के लिए आरक्षण कोई अंतिम समाधान नहीं है. यह सिर्फ एक शुरुआत भर है. जस्टिस बेला एम त्रिवेदी ने भी ईडब्ल्यूएस आरक्षण का समर्थन करते हुए कहा कि सामान्य वर्ग में ईडब्ल्यूएस कोटा वैध और संवैधानिक है.

गौरतलब है कि जनवरी 2019 में 103 वें संविधान संशोधन के जरिए देश में EWS कोटा लागू किया गया था. इस संशोधन के जरिए प्रवेश और सरकारी नौकरियों में आर्थिक रूप से कमजोर वर्ग (EWS) के व्यक्तियों को 10 फीसदी आरक्षण प्रदान किया गया था. जिसे तमिलनाडु की सत्ताधारी पार्टी DMK सहित कई लोगों ने सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर कर चुनौति दी थी. सितंबर के अंतिम सप्ताह में 7 दिन की मैराथन सुनवाई के बाद सुप्रीम कोर्ट ने 27 सितंबर को इन याचिकाओं पर फैसला सुरक्षित रखा था.

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सीजेआई यूयू ललितत के कार्यकाल का आज अंतिम कार्यदिवस था. सीजेआई यूयू ललित 8 नवंबर यानी मंगलवार को सेवानिवृत हो रहे है, लेकिन गुरु नानक जयंती के चलते मंगलवार को सुप्रीम कोर्ट में अवकाश रहेंगा. सीजेआई की बेंच की कार्यवाही का सुप्रीम कोर्ट की वेबसाइट पर सीधा प्रसारण किया गया जहां पर हर आम और खास सुप्रीम कोर्ट की इस कार्यवाही को सीधे देख पा रहे थे.

सुप्रीम कोर्ट ने तय किए थे 3 सवाल

सुप्रीम कोर्ट ने याचिकाओं पर सुनवाई के लिए मुख्य तीन सवाल तय किए थे.मामले की सुनवाई करते हुए कोर्ट ने पूछा था कि

—क्या EWS आरक्षण देने के लिए संविधान में किया गया संशोधन संविधान की मूल भावना के खिलाफ है?

—एससी/एसटी वर्ग के लोगों को इससे बाहर रखना क्या संविधान के मूल ढांचे के खिलाफ है ?

—राज्य सरकारों को निजी संस्थानों में एडमिशन के लिए EWS कोटा तय करना संविधान के खिलाफ है क्या?

याचिकाकर्ताओं के तर्क
याचिकाकर्ताओं ने 10 फीसदी आरक्षण को संविधान की मूल भावना के खिलाफ बताया था. याचिकाकर्ताओं की ओर से शिक्षाविद मोहन गोपाल ने इसे ‘पिछले दरवाजे से’ आरक्षण की अवधारणा को नष्ट करने का प्रयास बताया. 103 वां संशोधन को संविधान के साथ धोखा बताते इससे देश को जाति के आधार पर बांटने का प्रयास बताया.

वरिष्ठ अधिवक्ता पी. विल्सन की ओर से कहा गया कि अनुच्छेद 15(4) और 16(4) आरक्षण प्रदान करने के प्रावधानों को सक्षम करता हैं जो सदियों से चले आ रहे सामाजिक भेदभाव को दूर करने और समानता को बढ़ावा देने के लिए सकारात्मक कार्रवाई हैं.
विल्सन ने 103 वें संशोधन को अनुच्छेद 15(4) और 16(4) द्वारा हासिल की जाने वाली वास्तविक समानता को समाप्त करने वाला बताते हुए कहा कि यह संशोधन समाज में एससी/एसटी/ओबीसी को पूर्व-संविधान की स्थिति में वापस ले जाता है. याचिकाकर्ताओं की ओर से यह भी तर्क दिया गया कि 50 प्रतिशत की सीमा सही थी और इसका उल्लंघन करना मूल संरचना का एक चौंकाने वाला उल्लंघन होगा.

सरकार ने किया था समर्थन
सरकार ने सुनवाई के दौरान सुप्रीम कोर्ट में इस कानून का समर्थन किया था. सुनवाई के दौरान केंद्र सरकार की ओर से सीनियर एडवोकेट अटॉर्नी जनरल वेणुगोपाल संशोधन को संविधान अनुसार बताते हुए कहा कि ईडब्ल्यूएस कोटा बुनियादी ढांचे का उल्लंघन नहीं करता है. उन्होंने 103वें संविधान संशोधन का बचाव किया. उन्होंने कहा कि ईडब्ल्यूएस कोटा 50 फीसदी कोटा में खलल डाले बिना दिया गया है. जो सामाजिक और आर्थिक रूप से पिछड़े वर्गों (एसईबीसी) के लिए है.

वेणुगोपाल ने इसके साथ ही तर्क ​दिया था कि एससी, एसटी और ओबीसी सहित पिछड़े वर्गों में से प्रत्येक में आर्थिक रूप से कमजोर वर्ग शामिल हैं, और सामान्य श्रेणी में भी आर्थिक रूप से कमजोर वर्ग शामिल हैं, जो बेहद गरीब थे। एजी ने तर्क दिया कि एससी, एसटी और ओबीसी कोटा पिछड़ेपन का स्व-निहित वर्ग है और ईडब्ल्यूएस कोटा अलग है.

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