Swami Vivekananda: राजस्थान के राजा ना होते तो नरेंद्र नहीं बन पाते स्वामी विवेकानंद! जानिए क्या है पूरी कहानी
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Swami Vivekananda: राजस्थान के राजा ना होते तो नरेंद्र नहीं बन पाते स्वामी विवेकानंद! जानिए क्या है पूरी कहानी

swami vivekananda Jayanti: महाराजा अजीत सिंह के आर्थिक सहयोग से ही स्वामी विवेकानन्द अमेरिका के सर्वधर्म सम्मेलन में शामिल हुए और वेदान्त की पताका फहराकर भारत को विश्व धर्मगुरु का सम्मान दिलाया था. साथ ही राजा अजीत सिंह के सहयोग से वह पूरी दुनिया में नरेंद्र से विवेकानंद के रूप में पहचान भी बनाई.

Swami Vivekananda: राजस्थान के राजा ना होते तो नरेंद्र नहीं बन पाते स्वामी विवेकानंद! जानिए क्या है पूरी कहानी

जयपुर: भारत के आध्यात्मिक गुरु और सबसे बड़े यूथ आइकन स्वामी विवेकानंद की आज 160वीं जयंती है. स्वामी जी की जयंती को युवा दिवस के रूप में मनाया जाता है. 39 वर्ष की आयु में वह दुनिया छोड़ गए, विवेकानंद को करोड़ों युवा अपना आदर्श मानते हैं. उनकी कहीं गईं बातें आज भी प्रासंगिक हैं.स्वामी विवेकानंद ने अपनी छोटी जिंदगी में कई बड़े सबक दे गए. जो आज हम सभी के लिए बड़ी प्रेरणादायी और आदर्श हैं.

विवेकानंद हमेशा से शिक्षा पर जोर देते रहें. उन्होंने हमेशा आधुनिक वैज्ञानिक शिक्षा के साथ-साथ संस्कृत पढ़कर भारतीय संस्कृति और विरासत जानने पर जोर दिया. उन्होंने कहा कि भावों को दृढ संस्कार ही असली शिक्षा है. स्वामी जी का जन्म एक गरीब परिवार में हुआ था. बचपन का नाम उनका नरेंद्र था. इसके अलावा कमलेश, सच्चिदानंद, विविदिषानंद से भी लोग जानते थे, लेकिन सबसे ज्यादा चर्चित वह खेतड़ी से मिले विवेकानंद नाम से ही हुए. विवेकानंद बनाने में राजस्थान की खेतड़ी रियासत ने सबसे बड़ा योगदान दिया था. या यूं कहें कि दुनिया उन्हें विवेकानंद के नाम से तब से जानने लगी जब खेतड़ी महाराज अजीत सिंह की कृपा उनपर बरसी.

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खेतड़ी ने दिलाई विवेकानंद की पहचान

विवेकानंद राजपूताने की खेतड़ी रियासत के राजा अजीत सिंह को अपना सच्चा दोस्त और सहयोगी मानते थे. उन्होंने जीवन भर अजीत सिंह से रिश्ता निभाया और उनसे मदद ली. खेतड़ी नरेश अजीत सिंह को विविदिषानंद उच्चारण में सही नहीं लगा तो उन्होंने विवेकानंद कहकर बुलाया. विवेकानंद नाम से पूरी दुनिया में मशहूर होने के बाद इस बात से पर्दा उठा कि उनका यह नाम खेतड़ी राजा अजीत सिंह के सुझाव पर ही रखा गया. नरेंद्र से स्वामी विवेकानंद बनने की कहानी शेखावाटी की धरती पर खेतड़ी से ही शुरू होती है और शिकागो के धर्म सम्मेलन में यह नाम पूरी दुनिया में चर्चित हो गया. स्वामीजी को विश्व में प्रसिद्ध दिलाने और उनके संदेशों को जन-जन तक पहुंचाने में खेतड़ी नरेश अजीत सिंह का योगदान अतुलनीय है. स्वामी विवेकानंद ने स्वयं कहा था कि भारत वर्ष की उन्नति और प्रगति के लिए जो कुछ मैंने थोड़ा बहुत किया है, उसमें महाराजा अजीत सिंह का अमूल्य योगदान था. 

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अमेरिका जाने का पूरा खर्च और वहां रहने के दौरान हुए खर्च को राजा अजीत सिंह ने बहन किया था

आज से ठीक 129 साल पहले 11 से 27 सितंबर 1893 के बीच अमेरिका के शिकागो में विश्व धर्म सम्मलेन में भारत की संस्कृति और ज्ञान पताका को पूरी दुनिया में फैलाने वाले स्वामी विवेकानंद के अमेरिका जाने का पूरा खर्च खेतड़ी के राजा अजीत सिंह ने उठाया था, खेतड़ी राजा अजीत सिंह ने विवेकानंद को मुंबई से अमेरिका के लिए जहाज का टिकट बुक कराया था. 10 मई 1893 को स्वामजी मात्र 28 वर्ष की आयु में जहाज से रवाना हो गए और 63 दिनों में वह शिकागो पहुंचे. इस दौरान जो भी खर्च हुआ उसे खेतड़ी के राजा अजीत सिंह ने उठाया था. स्वामी जी वहां से पत्राचार भी करते थे. अगर किसी चीज की जरूरत भी होती थी तो वह सीधे अजीत सिंह से कहते थे और राजाजी उन्हें पूरी मदद करते थे.

स्वामीजी ने वेदांत दर्शन पर भाषण देकर दुनिया में भारत का मान बढ़ाया

उसके बाद धर्म संसद में हिस्सा लिया और स्वामीजी ने अपनी ओजस्वी वाणी से पूरी दुनिया में वेदांत दर्शन और वैज्ञानिक व्याख्याओं से देश का मान बढ़ाया था. साथ ही अंधविश्वास, चमत्कार और सामाजिक कुरीतियों पर हमेशा कठोर प्रहार किया.  दिलचस्प बात यह है कि धर्म संसद में हिस्सा लेने के बाद विवेकानंद सीधे खेतड़ी आए थे.

राजा अजीत सिंह के सुझाव पर स्वामी जी ने गेरुआ वस्त्र और पगड़ी पहना था

स्वामी विवेकानंद की गेरुआ पोशाक और पगड़ी राजा अजीत सिंह की ही देन थी. एक बार गर्मी के दिनों में स्वामीजी खेतड़ी नरेश अजीत सिंह से मिलने पहुंचे. उस दौरान खेतड़ी में गर्मी से बचने के लिए लोग पगड़ी या साफा पहनते थे. अजीत सिंह ने भी स्वामी जी को साफा बाधने का सुझाव दिया. राजाजी का यह सुझाव विवेकानंद ने हाथोंहाथ स्वीकार कर लिया. यही साफा बांधकर वह शिकागो धर्म संसद को गोरुआ पोशाक और पगड़ी पहनकर संबोधित किया था. जिसके बाद उनकी यही छवि पूरी दुनिया में विख्यात हो गई. 

स्वामी जी अपने जीवन में तीन बार खेतड़ी आए थे

 स्वामी विवेकानंद अपने जीवन में खेतड़ी की तीन बार यात्रायें की थी.उन्होंने पहली यात्रा आबू से खेतड़ी 7 अगस्त से 27 अक्टूबर 1891 तक की, दूसरी यात्रा मद्रास से खेतड़ी 21 अप्रैल से 10 मई 1893 तक और तीसरी एवं आखिरी यात्रा अमेरिका से खेतड़ी 12 दिसंबर से 21 दिसबंर 1897 तक की थी. स्वामी विवेकानंद और राजा अजीत सिंह की पहली भेंट राजस्थान के माउंट आबू में हुई थी. राजा अजीत सिंह ने स्वामीजी के ओजस्वी वाणी, तेजस्वी व्यक्तित्व से मुग्ध होकर उनको गुरु रूप में स्वीकार किया और आग्रहपूर्वक अपने साथ खेतड़ी लेकर आए. विवेकानंद और राजा अजीत सिंह की दोस्ती पूरी दुनिया में मिसाल है. 

नोट: यह पूरी जानकारी अलग-अलग किताबों और वेबसाइट से जुटाई गई है. 

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