जयपुर: सत्ता से मिले सुर से सुर तो छह माह से सुरक्षित 'कुर्सी', क्या 'आशीर्वाद' बरकरार?
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जयपुर: सत्ता से मिले सुर से सुर तो छह माह से सुरक्षित 'कुर्सी', क्या 'आशीर्वाद' बरकरार?

जयपुर न्यूज: मेयर सौम्या गुर्जर ने राज्य सरकार के खिलाफ बयानबाजी भी छह माह से बंद कर रखी है. क्या छह माह पहले मिला यूडीएच मंत्री शांति का दिया 'आशीर्वाद' बरकरार है. जानिए पूरा मामला क्या है.

जयपुर: सत्ता से मिले सुर से सुर तो छह माह से सुरक्षित 'कुर्सी', क्या 'आशीर्वाद' बरकरार?

Jaipur: नगर निगम ग्रेटर मे ठीक दो साल पहले ग्रेट पॉलटिक्ल का ड्रामा हुआ. कुर्सी छीने जाने से लेकर संभालने का खेल चलता रहा लेकिन अब लगता हैं ग्रेटर शहरी सरकार की मुखिया से लेकर तीन पार्षदों की 'कुर्सी' से संकट टल गया हैं. 243 दिन बाद भी राज्य सरकार ने डॉक्टर सौम्या गुर्जर के मामले में कोई फैसला नहीं लिया हैं. ना ही तीन पार्षदों के मामले में सुनवाई के लिए नोटिस जारी किया हैं.अब जून का महीना शुरू होते ही चर्चा शुरू हो गई हैं क्या मामला ठंडे बस्ते में चला गया हैं या फिर छह माह पहले मिला आशीर्वाद काम आ रहा हैं.

यूडीएच मंत्री शांति धारीवाल का आशीर्वाद नगर निगम ग्रेटर की मेयर डॉक्टर सौम्या गुर्जर को मिला हैं और ये आशीर्वाद पिछले छह माह से बना हुआ हैं. दरअसल दो साल पहले नगर निगम ग्रेटर मेयर डॉक्टर सौम्या गुर्जर और तीन पार्षदों के मामले में जितनी तेजी से निलंबन और बर्खास्ती की फाइल दौड़ी. उससे ठीक उलट अब हो रहा हैं. हाईकोर्ट के आदेशों पर सभी जनप्रतिनिधियों के पक्ष को सुनने के बाद सरकार जो निर्णय करना था वो 6 माह बीतने के बाद भी फाइलों में बंद है.

ऐसे में अब चर्चाएं होने लगी है कि इस विवाद में सरकार ने जिस तरह तत्कालीन कमिश्नर यज्ञमित्र सिंह देव को सही मानते हुए सौम्या गुर्जर और तीनों पार्षदों को दोषी माना था और न्यायिक जांच के आधार पर चारो को पद से बर्खास्त किया था वह गलत था. हालांकि राजनीतिक गलियारों में एक चर्चा ये भी है कि मेयर सौम्या गुर्जर का सरकार के प्रति समर्पण भाव रखने से उनकी कुर्सी अब तक बची हुई है. इस बात के संकेत पिछले 6 महीने से मेयर बदले सुर को देखकर भी लग रहे है. पिछले 6 माह की स्थिति देखे तो सौम्या गुर्जर ने संगठन के उन सभी कार्यक्रम से खुद को दूर कर लिया है जो सरकार के विरोध में है.

एक भी सत्ता विरोधी धरने प्रदर्शन में मेयर ने संगठन का साथ नहीं दिया. यही नहीं पिछले दिनों हुई साधारण सभा में जब टोंक रोड का नाम पूर्व उपराष्ट्रपति भैरोसिंह शेखावत के नाम से करने का प्रस्ताव आया तो उन्होंने इस पर चर्चा भी करवाना उचित नहीं समझा और सभा को ही स्थगित कर दिया, जिसके विरोध में भाजपा के ही मेयर के खिलाफ धरने पर बैठ गए थे.

गौरतलब है की ग्रेटर नगर निगम के तत्कालीन कमिश्नर यज्ञमित्र सिंह देव के साथ मारपीट व अभद्रता मामले की न्यायिक जांच के 10 अगस्त 2022 को दिए आदेश में ग्रेटर मेयर सौम्या गुर्जर और तीन पार्षदों अजय सिंह चौहान, शंकर शर्मा व पारस जैन को नगर पालिका अधिनियम की धारा 39 (1) (d) सहित अन्य प्रावधानों के अनुसार, दुराचरण, कर्तव्यों के पालन में लापरवाही बरतने-अभद्र भाषा के आरोप में दोषी माना था.

इस मामले की न्यायिक जांच सीनियर डीजे मुदिता भार्गव ने की थी. सौम्या सहित तीनों पार्षदों के खिलाफ न्यायिक जांच 22 जून 2021 को शुरू हुई थी जो करीब 13 महीने चली और इस दौरान 200 पेशियां हुई. इसमें अभियोजन व बचाव पक्ष के 88 गवाहों के बयान दर्ज हुए थे. इस न्यायिक जांच के आधार पर ही राज्य सरकार ने सौम्या गुर्जर को 27 सितंबर 2022 और तीनों पार्षदों अजय सिंह चौहान, शंकर शर्मा व पारस जैन को 22 अगस्त 2022 के आदेश से उनके पद से बर्खास्त कर दिया था.

यदि मेयर डॉक्टर सौम्या गुर्जर के मामले में फ्लैशबैक में जाए तो पिछले साल नवंबर के आखिरी सप्ताह में मुख्यमंत्री अशोक गहलोत से मुलाकात के बाद मेयर सौम्या गुर्जर ने अपना जवाब स्वायत्त शासन निदेशालय के निदेशक को लिखित में प्रस्तुत किया था. उस समय निदेशक ने बयान दिया था कि इस जवाब का कानूनी प्रशिक्षण करवाने के बाद कोई निर्णय किया जाएगा.

ऐसे में इस बात को आज 6 माह बीत गए और अब तक कोई निर्णय नहीं हुआ. लेकिन एक समय था, जब सरकार ने सुप्रीम कोर्ट का आदेश आने के दूसरे दिन ही मेयर को पद से बर्खास्त कर दिया था और उसके तुरंत बाद ही मेयर के उपचुनाव करवाने के लिए निर्वाचन आयोग को पत्र लिख दिया था. यही नहीं मेयर को इस घटना के तीसरे दिन ही सरकार ने सस्पेंड करके मामले की न्यायिक जांच भी शुरू करवा दी थी. उधर मामला सीएम से मुलाकात और डीएलबी को अपना जवाब देने के बाद मेयर डॉक्टर सौम्या गुर्जर के सुर भी बदले-बदले नजर आने लगे हैं.

डॉक्टर सौम्या ने सरकार के खिलाफ बयान देना तो बंद कर ही दिया. साथ में सरकार ने हाल ही में प्रताप नगर सांगानेर में अल्पसंख्यक छात्रावास बनाने के लिए हाउसिंग बोर्ड के जरिए जमीन आवंटित करवाई थी. इस जमीन के आवंटन का विरोध करने संगठन से जुड़े तमाम नेता सांगानेर की सड़कों पर उतरे. इसमें सांसद, विधायक पार्षद समेत भाजपा के तमाम पदाधिकारी थे लेकिन मेयर इस प्रदर्शन में शामिल नहीं हुई ना ही इस मामले में कोई आवाज उठाई.

संगठन का प्रदर्शन, मेयर नहीं हुई शामिल 

पिछले दिनों संगठन की ओर से शहर में कई जगह बिजली समेत दूसरे मुद्दों पर प्रदर्शन किए, जिसमें मेयर शामिल नहीं हुई. पिछले दिनों सांगानेर में मेयर ने अंत्योदय योजना के तहत एक बड़ा कार्यक्रम आयोजित करवाया, जिसमें संगठन से जुड़े लोगों को ही नहीं बुलाया. इस कार्यक्रम को लेकर संगठन के कुछ लोगों ने विरोध भी जताया था.

फ्लैशबैक-दो साल पहले ये हुआ था विवाद

4 जून 2021 को मेयर सौम्या का तत्कालीन कमिश्नर यज्ञमित्र सिंह देव से एक बैठक में विवाद हुआ. इस विवाद के अगले दिन यानी 5 जून को सरकार ने सौम्या को मेयर पद से निलंबित कर दिया और मामले की न्यायिक जांच शुरू करवा दी.

सरकार के निलंबन के फैसले को सौम्या ने राजस्थान हाईकोर्ट में चुनौती दी, लेकिन 28 जून को हाईकोर्ट ने मेयर को निलंबन आदेश पर स्टे देने से मना कर दिया. जुलाई में सौम्या ने सुप्रीम कोर्ट में याचिका लगाकर न्यायिक जांच रूकवाने और निलंबन आदेश पर स्टे की मांग की. 1 फरवरी 2022 को सुप्रीम कोर्ट ने निलंबन ऑर्डर को स्टे दे दिया, जिसके बाद 2 फरवरी को सौम्या ने वापस मेयर की कुर्सी संभाली.

11 अगस्त 2022 को सौम्या के खिलाफ न्यायिक जांच की रिपोर्ट आई, जिसमें उनको दोषी माना गया. इसके बाद सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में याचिका लगाकर न्यायिक जांच की रिपोर्ट पेश की और मामले की जल्द सुनवाई करवाई. इस पर सुप्रीम कोर्ट ने 23 सितम्बर को मामले की सुनवाई के बाद सरकार को कार्रवाई के लिए स्वतंत्र करते हुए याचिका का निस्तारण कर दिया.

27 सितम्बर को सरकार ने एक आदेश जारी करते हुए सौम्या गुर्जर को मेयर पद और पार्षद की सदस्यता से बर्खास्त कर दिया था.

राज्य निर्वाचन आयोग ने मेयर के उपचुनाव का नया शेड्यूल जारी करते हुए 10 नवंबर 2022 को चुनाव करवाए. वोटिंग हुई और उसी दिन रिजल्ट आना था, लेकिन काउंटिंग शुरू होने से पहले राजस्थान हाईकोर्ट ने चुनाव प्रक्रिया को रोकते हुए सौम्या गुर्जर की बर्खास्तगी के आदेश को रद्द कर दिया और सरकार को आदेश दिए कि एक बार सौम्या गुर्जर का पक्ष सुने और उसके बाद कोई निर्णय करें.

कोर्ट के आदेश के बाद 12 नवंबर को सौम्या गुर्जर ने दोबारा मेयर का पद संभाला. सरकार ने कोर्ट के आदेश के बाद सौम्या गुर्जर को 25 नवंबर तक अपना जवाब पेश करने के लिए कहा. 25 नवंबर को जवाब देने से पहले मेयर सौम्या मुख्यमंत्री अशोक गहलोत से मिलने उनके निवास पहुंची और वहां से मिलने के बाद वह सीधे स्वायत्त शासन निदेशालय में निदेशक के पास अपना जवाब पेश करने पहुंची. और सिर्फ 30 सैकंड में मीडिया के सामने अपनी बात रखी और तब से अब तक इस जवाब पर सरकार ने कोई निर्णय नहीं किया और ये मामला तब से पेंडिंग पड़ा है.

एक फरवरी 2023 को तीनों पार्षदों की बर्खास्तगी हटी और पार्षद की कुर्सी पर बैठे.

बहरहाल, सौम्या सहित तीनों पार्षदों ने न्यायिक जांच के आधार पर उन्हें बर्खास्त करने को हाईकोर्ट में चुनौती दी थी. हाईकोर्ट ने 10 नवंबर 2022 के आदेश से सौम्या गुर्जर की बर्खास्तगी रद्द कर दी थी. एक फरवरी 2023 के आदेश से तीनों पार्षदों की बर्खास्तगी भी रद्द कर दी थी. हाईकोर्ट ने सरकार को कहा था कि वह 10 अगस्त 2022 की न्यायिक जांच रिपोर्ट के मामले में सौम्या व तीनों पार्षदों को सुनवाई का मौका देते हुए नए सिरे से आदेश जारी करे. मेयर और पार्षद अब मान चुके हैं उनकी कुर्सी सुरक्षित हैं.

सरकार के खिलाफ बयानबाजी करने से बंद पड़ी फाइल ओपन हो सकती हैं. पहली बार मेयर की कुर्सी संभालने से लेकर 25 नवंबर 2022 को जवाब देने से पहले तक सरकार को कोसने वाली डॉक्टर सौम्या गुर्जर ने इन दिनों चुप्पी साध रखी हैं.

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