राजस्थान (Rajasthan News)के दौसा (Dausa)का एक किसान(farmer) लक्ष्मण सैनी परेशान है. उसने जब बैंक से लोन लिया था तो, उसे उम्मीद थी की वो वक्त रहते, इस लोन को चुका पाएगा. लेकिन लोन नहीं चुका पाने पर , अब किसान को बैंक की तरफ से जमीन कुर्की या फिर बैंक के नाम जमीन हस्तांतरण के नोटिस मिले हैं, लक्ष्मण सैनी उम्मीद की अर्जी लेकर कलेक्टर के पास पहुंचा है...
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Dausa News : राजस्थान में दौसा के मलारना गांव के रहने वाले किसान लक्ष्मण सैनी को सहकारी भूमि विकास बैंक का केसीसी का ऋण चुकता नहीं होने पर बैंक की तरफ से जमीन कुर्की या जमीन को बैंक के नाम हस्तांतरण करने के दो अलग-अलग नोटिस मिले हैं. नोटिस मिलने के बाद से ही किसान परेशान है.
किसान का कहना है उसे परिवार के लिए 2 जून की रोटी जुटाना मुश्किल हो रहा है. ऐसे में वह बैंक का ऋण कैसे चुकाए. अब पीड़ित किसान ने ऋण माफी को लेकर दौसा कलेक्टर के यहां गुहार लगाई है.
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दरअसल दौसा विधानसभा क्षेत्र के मलारना गांव निवासी किसान लक्ष्मण सैनी ने 22 मई 2015 को दौसा भूमि विकास बैंक से चार लाख का ऋण लिया था और उसकी एवज में अपनी पुश्तैनी 7 बीघा जमीन रहन रखी गई थी.
किसान लक्ष्मण सैनी इस कर्ज को चुकाने में असमर्थ रहा. जिसके चलते यह रकम ब्याज सहित 794378 रुपए पहुंच गई. ऋण चुकाने के लिए बैंक द्वारा बार-बार नोटिस दिये गए. लेकिन जिस किसान के पास खाने के लाले हो वह ऋण कहां से चुकाता.
ऐसे में अब भूमि विकास बैंक द्वारा पीड़ित किसान लक्ष्मण सैनी को दो अलग-अलग नोटिस दिए गए हैं. एक नोटिस जमीन कुर्की का तो ही दूसरा नोटिस जमीन को बैंक के नाम स्थानांतरण करने का दिया गया है. दोनों ही नोटिस मिलने के बाद से किसान परेशान है.
पीड़ित किसान का कहना है पानी नहीं होने से खेती भी ठीक से नहीं हो रही और कुछ करते हैं, तो कुदरत का कहर उसे नष्ट कर देता है. ऐसे में लोन चुकाना तो दूर की बात उनके यहां तो खाने के भी लाले पड़े हुए हैं.
कैसे-कैसे मेहनत मजदूरी कर परिवार का पालन पोषण कर रहा हूं और अब बैंक द्वारा कुर्की के नोटिस देखकर होश उड़े हुए हैं. वहीं ग्रामीणों का कहना है सरकार द्वारा चुनाव से पहले किसानों का संपूर्ण कर्जा माफी का ऐलान किया था, लेकिन सरकार ने वादा खिलाफी की अब सरकार से अरदास है कि वह सुने और कर्जा माफ करें.
वहीं सूत्रों की माने तो दौसा भूमि विकास बैंक द्वारा अकेले लक्ष्मण सैनी को नहीं बल्कि ऐसे 15 किसान और हैं, जिन्हें नोटिस दिए गए हैं. ऐसे में पीड़ित किसान का कहना है जीने की अंतिम उम्मीद यह जमीन है और यह जमीन भी चली गई तो जीना मुश्किल होगा.
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