हवा में बिना किसी सहारे सूखते थे श्याम पण्डिया के कपड़े, तपो भूमि के नाम से प्रसिद्ध है चूरू की ये जगह
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हवा में बिना किसी सहारे सूखते थे श्याम पण्डिया के कपड़े, तपो भूमि के नाम से प्रसिद्ध है चूरू की ये जगह

तारानगर से करीब 10 किलोमीटर दूर कैलाश गांव के पास स्थित श्याम पण्डिया जो स्थानीय भाषा में श्यो पण्डिया के नाम से प्रसिद्ध हैं. इस स्थान का नाम तपस्वी पंडित श्याम पण्डिया के नाम से जाना जाता है.

हवा में बिना किसी सहारे सूखते थे श्याम पण्डिया के कपड़े, तपो भूमि के नाम से प्रसिद्ध है चूरू की ये जगह

Churu: तारानगर से करीब 10 किलोमीटर दूर कैलाश गांव के पास स्थित श्याम पण्डिया जो स्थानीय भाषा में श्यो पण्डिया के नाम से प्रसिद्ध हैं. इस स्थान का नाम तपस्वी पंडित श्याम पण्डिया के नाम से जाना जाता है. श्याम पण्डिया की कहानी महाभारत काल से जुड़ी है.

श्याम पण्डिया एक ऐतिहासिक व प्राचीन स्थल है, जहां महाभारत काल मे महापंडित श्याम पण्डिया ने तप किया था. कहा जाता हैं कि महाभारत के युद्ध के बाद जब पांडव अश्वमेध यज्ञ कर रहे थे, उस समय विद्वान पंडित की आवश्यकता थी और भगवान श्रीकृष्ण ने पांडवों को महा पंडित श्याम पांडिया को लाने के लिए कहा तब महा बलशाली भीम उनको लेने आये, यहां जब उनको जमीदार के रूप में देखा तो उनको शंका हुई कि ये विद्वान तो नही लगते, उनकी शंका दूर करने के लिए महापंडित श्याम पण्डिया ने स्नान कर अपनी धोती हवा में उछाली तो वो बिना किसी सहारे हवा में सूखने लगी और अपने आप समेट कर नीचे आ गई.

श्याम पांडिया इसलिए है प्रसिद्ध
कहते है महाभारत का युद्ध समाप्त हाेने के बाद युधिष्ठर द्वारा अश्वमेघ यज्ञ आरम्भ किया गया. जैसा कि सुना जाता है यज्ञ में पूर्णाहूति के समय वीजित पक्ष के सभी योद्धाओं का होना आवश्यक है. तारानगर तहसील के कैलाश ग्राम से उतर दिशा में इस रमणिक टीले पर स्थित अवधूत तपस्वी श्याम पांडिया का तपस्थली है. महाभारत कालीन इस तपस्वी को जब पता चला कि कुरूक्षेत्र की धरती पर एक बहुत ही भयंकर युद्ध होने वाला है तो जिज्ञासा एवं एक पक्ष में शामिल होने श्याम पांडिया कुरूक्षेत्र की धरती पर गये.

श्याम पांडिया ने अपनी मनोवति वश पाण्डवों की ओर होने का मन बनाकर गये थे परन्तु वहां जाकर देखा की यहां ताे मुख्य युद्ध तो भाई भाइयो के मध्य हो रहा है. वैराग्य का धनी श्याम पांडिया दुखी मन से वापिस अपने तपोभूमि आ गये. चूंकि श्याम पांडिया युधिष्ठर की ओर से मन बनाकर गये थे तब यह माना गया कि वे वीजित पक्ष से थे और अश्वमेघ यज्ञ में उनकी अनुपस्थित के कारण ही यज्ञ में अग्नि देवता का सपत्निक आना नहीं हो रहा था. चूंकि भगवान श्रीकष्ण को तुरन्त पता चल गया और कहा कि जब तक श्याम पांडिया का यज्ञ स्थल पर प्रवेश नहीं होगा पूर्णाहुति नहीं होगी.

इस पर भीम हो पांडिया को लाने भेजा गया और पवन वेग से भीम रवाना हुए. सुना जाता है कि भीम बांय होकर श्याम पांडिया के पवित्र स्थल पर गये थे वैसे गुगल मेप पर रास्ते को देखा जाये तो कुरूक्षेत्र-बांय-श्याम पांडिया तीनों सीधी रेखा में हैं इससे यह प्रमाणित होने में सहायता मिलती है कि भीम श्याम पांडिया को लेने बांय के रास्ते से आये थेा बांय में आज भी भीम बावडी है.

भीम जब सुबह सुबह इस रमणिक टीले पर पहुंचे तो तपस्वी नहाकर बाहर आये और अपनी धोती सुखाने हेतु हवा में ही बिना को अवरोध विरोध के लटका दी, देखकर भीम को आश्चर्य हुआ और प्रणाम कर अपने ज्येष्ठ भ्राता का संदेश सुनाकर यज्ञ में उपस्थित होने का निवेदन किया और कहा आप मेरे साथ चलो ताकि मैं आपको जल्द ही यज्ञ स्थान पर ले चलूं.

इस पर श्याम पांडिया ने कहा कि तुम चलो मैं आ रहा हूं और वार्ता इस बात पर खत्म हुई कि भीम काे श्याम पांडिया ने यह कह कर भेज दिया कि मैं तुमसे पहले यज्ञ स्थल पर पहुंचुगा. सुना है कि भीम जब यज्ञ स्थल पर गये तो श्याम पांडिया का मंद मंद मुस्कुराते देखा. मंदिर के सामने एक तालाब है.कहते है कि उस समय पानी की बहुत कमी थी और भीम ने अपने गोडे से प्रहार कर ये तालाब बनाया था जो आज भी है और यहां आने वाले श्रद्धालु इसे जरूर देखते हैं, टील्ला भव्य एवं विशाल है जिस पर हनुमानजी एवं महाभारतकालिन अवधूत तपस्वी धर्मपारायण श्याम पांडिया का मंदिर है. टील्ले से आसपास करीब 15-15 किमी दूर दिखाई देता है. वर्षाकाल में यहां की रमणिकता देखने लायक होती है.

कृषक के रूप में देख भीम को नहीं हुआ विश्वास
भीम जब श्‍याम पांडिया के गांव पहुंचे तो वहां खेत में श्रमरत घुटनों तक धोती मात्र पहने कृषक से मिलकर विश्‍वास ही नहीं कर पाए कि वही पंडित श्‍याम पांडिया हैं जिन्‍हें लिवाने के लिए सैकडों मील से उन्‍हें भेजा गया है, परन्‍तु रवानगी से पूर्व श्‍याम पांडिया ने अपनी पर्णकुटी में रखे घड़े के आधे पानी से स्‍नान कर गीली धोती को सुखाने के लिए खुले आकाश में उछाल दी भीम यह देखकर चमत्‍कृत हो गए कि चंद क्षणों में ही न केवल सूखकर वरन् सिमटी हुई धोती आसमान से श्‍याम पांडिया के हाथों में आ गई.

हर वर्ष भादवे के महीने में भरता है विशाल मेला, दूर-दूर से लोग आते है मेले में वार्षिक मेला कैलाश गांव में प्राचीन श्याम पांडिया धाम पर वार्षिक मेला हर साल भादवा माह में लगता हैं. तहसील के कैलाश गांव स्थित प्राचीन श्याम पांडिया धाम का वार्षिक मेला भाद्रपद की अमावस्या पर हाेने वाले मेले की पूर्व रात्रि पर  जागरण हाेता है. इसके बाद अगले दिन सुबह श्रद्धालु श्याम कुंड में स्नान कर बाबा श्याम पांडिया के दर्शन करते है. इधर, महाभारतकालीन बाबा श्याम पांडिया धाम हरियाली से आच्छादित है. मंदिर ऊंटे टीले पर स्थित है, जिसके चारों तरफ बीड़ बनी हुई. बरसात के बाद यह स्थान हरियाली से सराबाेर हो जाता है.

श्याम पण्डिया बहुत जल्द बनेगा पर्यटक स्थल

जमीन का अवलाेकन किया जा चुका है श्याम पांडिया धाम में लव कुश वाटिका निर्माण की कवायद शुरू कर दी गई है. तहसील के श्याम पांडिया धाम में करीब दाे कराेड़ की लागत से वनक्षेत्र की जमीन पर बनने वाले पर्यटन स्थल लव-कुश वाटिका के निर्माण काे लेकर कवायद शुरू हाे गई है.

जिले की वन विभाग की टीम ने भी डीएफओ व अधिकारियाें के साथ श्याम पांडिया धाम सर्वे कर चुकी है उन्होंनें वनक्षेत्र की जमीन का अवलाेकन कर स्थानीय लाेगाें से वार्ता की. इस अवसर पर डीएफओ दहिया ने अधिकारियाें से जमीन संबंधी जानकारी जुटाई व प्रक्रिया काे तेजी के क्रियांवित करने निर्देश दिए.
निरीक्षण के बाद डीएफओ सविता दहिया ने बताया कि पर्यटन काे बढ़ावा देने के उद्देश्य से सरकार ने यहां पर पर्यटन को बढावा देने के लव-कुश वाटिका बनाने का प्रस्ताव पास किया है, जिसके निर्माण में 2 करोड़ रुपये खर्च करने हाेंगे. दहिया ने बताया कि इस क्षेत्र के लिए यह सबसे बड़ा संरक्षित वन क्षेत्र है.

करीब 300 फीट उंचे टीले पर श्याम पांडिया धाम मंदिर
बना हुआ हैं. मंदिर के चारों तरफ वन भूमि में मरूस्थलीय पौधे व जीव-जंतु संरक्षित किए जा रहे है. पर्यटन के लिहाज से इस क्षेत्र को विकसित किया जाएगा. लव-कुश वाटिका का प्रस्ताव पारित कराने में विधायक नरेंद्र बुडानिया के प्रयास रंग ला रहे है.

Reporter- Gopal Kanwar

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