Ajmer News: भारतीय संस्कृति में रूप चतुर्दशी महत्व माना जाता रहा है. दीपावली से पहले आने वाली यह चतुर्दशी के इस खास पर्व को सुहागन चतुर्दशी के नाम से भी जाना जाता है. महिलाएं इस पर्व पर खास तौर से अपने रूप को निखारने के जतन करती हैं.
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Ajmer News: भारतीय संस्कृति में रूप चतुर्दशी महत्व माना जाता रहा है. दीपावली से पहले आने वाली यह चतुर्दशी के इस खास पर्व को सुहागन चतुर्दशी के नाम से भी जाना जाता है. महिलाएं इस पर्व पर खास तौर से अपने रूप को निखारने के जतन करती हैं. धार्मिक नगरी पुष्कर में भी महिलाओ को सजते-संवरते देखकर सात समंदर पार से आई विदेशी महिलाएं भी अपने आपको रोक नहीं सकी और उन्होंने भी भारतीय संस्कृति में रूप चतुर्दशी का महत्व समझकर अपने आपको सजाने-संवारने के लिए ब्यूटी पार्लर का रूख किया, जहां पर ना केवल इन विदेशी महिलाओ ने श्रृंगार करवाया बल्कि भारतीय परिधान को धारण करते हुए सोलह श्रंगार भी किए.
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डेनमार्क से बीते 10 वर्षों से लगातार भारत भ्रमण पर आईं पर्यटकों टीना ने बताया कि उन्हें भारत के त्योहारों के बारे में जानकारी मिली और इन्हें उत्साह के साथ बनाने का अवसर प्राप्त हुआ. 10 वर्षों में यह पहला अवसर था. टीना ने बताया कि सजने -संवरने के बाद अपने इस अनुभव बारे में बताया और कहा कि वे इस अनुभव को कभी भूल नहीं सकतीं. भारत खूबसूरत देश है, यहां की महिलाओं की रूप सजा उन्हें प्रेरित करती हैं.
वहीं, सन 2014 से अब तक हर साल नॉर्वे से भारत घूमने आई विदेशी पर्यटका एली ने बताया कि मैं जब भी भारत आता हूं तो मुझे भारतीय महिलाओं का परिधान आकर्षित करता है. इसी के चलते आज के दिन उन्होंने भी भारत की परंपरा को आत्मसाद करने की ठानी.
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पुष्कर में बीते 20 सालों से विदेशी महिलाओं को भारतीय संस्कृति से रूबरू कराने वाली महिला ब्यूटीशियन प्रतीक्षा शर्मा ने बताया कि भारत की संस्कृति और परिधान रूप सजा बड़े उत्कृष्ट स्तर पर है. इसके संबंध में विदेशी पर्यटकों को जानकारी दी जाती है. आज रूप चतुर्दशी के अवसर पर भी विदेशी महिलाओं को त्योहार की जानकारी दी गई. इसके बाद उन्होंने उन्हें भारतीय परिधान पहनाया और इसके महत्व के बारे में जानकारी दी.
भारतीय संस्कृति के धार्मिक ग्रंथो के कहा जाता है कि कार्तिक कृष्ण चतुर्दशी के दिन अत्याचारी नरकासुर राक्षस का वध कर उसके चगुल में बंदी बनाई गई 17 हजार एक सौ रानियों को भगवान कृष्ण ने मुक्त कराया था, तब इन रानियों ने चंगुल से मुक्त होने के बाद सम्मान का अनुभव किया और जड़ी बूटियों से स्नान कर श्रृंगार किया था.