Ajmer News: केकड़ी में गोवर्धन पर्व के दौरान पटाखा युद्ध की खतरनाक परंपरा, क्या थमेगी यह जानलेवा खेल?
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Ajmer News: केकड़ी में गोवर्धन पर्व के दौरान पटाखा युद्ध की खतरनाक परंपरा, क्या थमेगी यह जानलेवा खेल?

केकड़ी में गोवर्धन पर्व पर घास भैरू की सवारी निकाली जाती है वर्षों से यह परंपरा कायम है इस दिन लोग एक दूसरे पर पटाखे फेकते है जिसके चलते कई लोग झुलस जाते हैं वहीं कई लोगों की मौत हो जाती है इसके बावजूद पटाखा युद्ध बेरोकटोक जारी है हालांकि प्रशासन हर साल पटाखा युद्ध रोकने का प्रयास करता ह

Ajmer News: केकड़ी में गोवर्धन पर्व के दौरान पटाखा युद्ध की खतरनाक परंपरा, क्या थमेगी यह जानलेवा खेल?

Ajmer News: केकड़ी में गोवर्धन पर्व पर घास भैरू की सवारी निकाली जाती है वर्षों से यह परंपरा कायम है इस दिन लोग एक दूसरे पर पटाखे फेकते है जिसके चलते कई लोग झुलस जाते हैं वहीं कई लोगों की मौत हो जाती है इसके बावजूद पटाखा युद्ध बेरोकटोक जारी है हालांकि प्रशासन हर साल पटाखा युद्ध रोकने का प्रयास करता है लेकिन असामाजिक तत्वों के आगे पुलिस के प्रयास विफल नजर आते हैं . 

घास भैरू की सवारी के दौरान पुलिस रोकने का प्रयास करती है तो पुलिस पर ही पटाखे फेके जाते हैं जिसके चलते कई बार पुलिस के जवान चोटिल हो गए . केकड़ी में फटाका युद्ध रोकने के लिए हर साल पुलिस प्रशासन अतिरिक्त जाब्ता लगता है और प्रत्येक पोइंट पर पुलिस बल तैनात किया जाता है लेकिन हुड़दंगियों के आगे पुलिस प्रशासन लाचार नजर आता है. घास भैरू की प्रतिमा में 36 करोड देवी देवताओं का वास होता है. इसलिए इसकी परिक्रमा शहर में लगाई जाती है, जिससे क्षेत्र में खुशहाली रहे और महामारी से बचाव हो सके.

घास भैरू की सवारी के दौरान खतरनाक जलते पटाखे एक दूसरे पर फेंकने की कुप्रथा वर्षों से चली आ रही है . जिसमें कई जने हर साल झुलसते हैं और बेमौत मारे जाते हैं. पटाखे फेंकने की कुप्रथा को रोकने के लिए प्रशासन मुस्तैदी भी दिखाता है और हर साल पुलिस व प्रशासनिक अधिकारी बड़े बड़े दावे भी करते हैं. 

प्रशासन द्वारा क्षेत्र में गंगा जमुना, सीता गीता नामक खतरनाक पटाखे बेचने तथा जलाने पर प्रतिबंध लगाया जाता है, जो इस बार भी लगाया गया है. मगर फिर भी ये पटाखे बड़ी मात्रा में यहां बेचे जा रहे हैं, जिससे उद्दंडी युवक घास भैरू की सवारी के दौरान ये खतरनाक जलते हुए पटाखे एक दूसरे पर फेंकते है. 

इसे नया नाम अंगारों की होली का भी दे दिया गया है. पहले घास भैरू के आगे आतिशबाजी की जाती थी. धीरे-धीरे लोग एक-दूसरे पर पटाखे फेंकने लगे. इस खतरनाक खेल में लोगों को इसकी बिल्कुल परवाह नहीं रहती कि उनके द्वारा फेंके गए जलते हुए पटाखे से जनहानि भी हो सकती है. बताया जाता है कि घास भैरू की सवारी निकालने की परंपरा 100 वर्ष से अधिक पुरानी है.

शहर के गणेश प्याऊ के समीप घास भैरू का शिलाखंड स्थापित हैं. यहीं से यह सवारी शुरू होती है, जो पुराने शहर में घूमती हुई वापस देर रात तक गणेश प्याऊ के समीप पहुंचती है. पहले घास भैरू के इस शिलाखंड को बैलों द्वारा खींचा जाता था, मगर बदलते वक्त के साथ परिस्थितियां भी बदल गईं. अब बैल नहीं मिलते तो लोग सवारी को अपने हाथों से खींचते हैं पिछले ढाई दशक से इस परंपरा का रूप बदरंग होता चला गया. घास भैरव की सवारी में लोग एक-दूसरे पर जलते पटाखे फेंकते हैं. 

अंगारों का यह खेल रात के अंधेरे में होता है. घास भैरव की सवारी में अब शहर के लोग ही नहीं बल्कि आस-पास क्षेत्र के ग्रामीण भी बड़ी संख्या में भाग लेने लगे हैं. इस कारण लोगों की संख्या भी काफी रहती हैं. सबसे बड़ी मजेदार बात यह की लोगों में पुलिस का खौफ नहीं रहता कई बार तो नौजवानों की टोलियां पुलिस पर ही पटाखे फेंक देती है जिसके चलते पुलिस अधिकारियों और जवानों को कई बार चोटील होना पड़ा.

इस खेल में प्रतिवर्ष दर्जनों लोग झूलसते हैं किसी की मौत हो जाती है इसके बावजूद यह कुप्रथा वर्षों से बदस्तूर जा रही है. हालांकि पुलिस और प्रशासनिक अधिकारी हर साल लोगों को कुप्रथा से निजात दिलाने के लिए आश्वस्त करते हैं लेकिन शाम ढलने के बाद हुड़दंगियों के आगे पुलिस अधिकारी भी असहाय नजर आते हैं हालांकि पुलिस इस दौरान लोगों को हिरासत में लेती है लेकिन कठोर कार्रवाई करने की बजाय डांट फटकार कर छोड़ देती है जिसके चलते उनके हौसले बुलंद है.

गोवर्धन पूजा वाले दिन शाम को बेलों का पूजन किया जाता है. इस दौरान सिर्फ एक ही पटाखा फोडा जाता है, जिसे ‘गंगा-जमुना’ कहा जाता है. इस पटाखें को जलाने के बाद कुछ देर तक तो इसमें फव्वारें निकलते है, उसके बाद जोरदार आवाज के साथ ब्लास्ट होता है.इस परंपरा की आड़ में कतिपय असामाजिक तत्व यहाँ मुख्य बाजारों और गली मोहल्लों में भी एक दूसरे पर जलते पटाखे फेंक कर माहौल को दूषित करने से बाज नहीं आते हैं. अंगारो के इस खेल में महिला पुरुषो सहित बच्चो के जलने की घटनाएं आम बात हैं. 

वहीं आग लगने से भी काफी नुकसान होता हैं लेकिन स्थानीय लोगों में इस परंपरा को लेकर जोश इतना है कि वो जान जोखिम डालने में भी बाज नहीं आते. इस बार जिला प्रशासन ने पटाखा बेचने पर पाबंदी लगा दी थी लेकिन लोग फिर भी पटाखों का इंतजाम करने में कामयाब रहे केकड़ी में आयोजित फटाका युद्ध में लाखों करोड़ों रुपए के पटाखो की बिक्री होती है.

लाखों करोड़ों रुपए का नुकसान भी होता है क्योंकि फटाका युद्ध के दौरान आगजनी की घटनाएं भी होती है जिसके चलते दुकान मॉल या घरों में आग लग जाती है और लोगों को आर्थिक नुकसान उठाना पड़ता है इसके बावजूद लोग जमकर अंगारों की होली खेलते हैं युवाओं की टोलियां सुबह से ही सड़कों पर उतर जाती है ओर रामा श्यामा के दौरान महिलाओं पर भी पटाखे फेक जाते हैं जिसके चलते कई बार महिला ही भी झुलस जाती है.

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