Pulwama Attack Anniversary: 40 ताबूतों पर लिपटे तिरंगे... पुलवामा का वो मंजर जब रो पड़ा देश, फिर 100 घंटे में कैसे हुआ गाजी का अंत
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Pulwama Attack Anniversary: 40 ताबूतों पर लिपटे तिरंगे... पुलवामा का वो मंजर जब रो पड़ा देश, फिर 100 घंटे में कैसे हुआ गाजी का अंत

Pulwama Attack Black Day: पुलवामा हमले के बाद शहीदों के परिवारों की चीखें देश को आज भी याद हैं. वो दिन कोई भूल नहीं सकता है जब 40 ताबूत एक साथ तस्वीरों में देखे गए थे. देश का मोराल डाउन था लेकिन फोर्सेज ने 100 घंटे में बड़े ऑपरेशन को अंजाम दिया था.

Pulwama Attack Anniversary: 40 ताबूतों पर लिपटे तिरंगे... पुलवामा का वो मंजर जब रो पड़ा देश, फिर 100 घंटे में कैसे हुआ गाजी का अंत

Pulwama Attack 5th Anniversary: आज 14 फरवरी है. पांच साल पहले आज ही के दिन देश ने वो झकझोर देने वाला मंजर देखा था. तिरंगे में लिपटे 40 ताबूतों की तस्वीर ने हर भारतीय को रुलाया था. आंखें गमगीन थीं लेकिन बाजू फड़क रहे थे. देश बदला मांग रहा था. इसके बाद क्या हुआ वो इतिहास है. पीएम नरेंद्र मोदी समेत पूरा देश अपने शहीदों को श्रद्धांजलि दे रहा है. सोशल मीडिया पर पूर्व सैन्य अधिकारी की एक लाइन भी काफी शेयर हो रही है - कितने गाजी आए, कितने गाजी चले गए. कौन था वो गाजी, जिसने कश्मीर में इतने बड़े हमले को अंजाम दिया? बालाकोट से पहले इन 'गाजियों' को कैसे ठिकाने लगाया गया, यह कहानी आपको जोश से भर देगी.

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने 2019 में पुलवामा में केंद्रीय रिजर्व पुलिस बल के काफिले पर आतंकी हमले में शहीद जवानों को श्रद्धांजलि दी है. पीएम ने आज कहा कि देश के लिए उनकी सेवा और बलिदान को हमेशा याद रखा जाएगा. पाकिस्तान प्रायोजित आतंकवादी हमले में CRPF के 40 जवान शहीद हो गए थे. एक आत्मघाती हमलावर ने विस्फोटकों से लदी गाड़ी लेकर सीआरपीएफ की बस को टक्कर मार दी थी. यह बस जम्मू से श्रीनगर जा रहे काफिले का हिस्सा थी. इसके जवाब में भारतीय वायुसेना ने 26 फरवरी 2019 को पाकिस्तान के बालाकोट में आतंकी शिविरों को निशाना बनाते हुए हवाई हमला किया था. हालांकि इससे पहले पुलवामा में ही एक बड़ा ऑपरेशन हुआ था. 

टारगेट था गाजी का अंत

लेफ्टिनेंट जनरल केजेएस ढिल्लन को कोर कमांडर बने एक हफ्ता भी नहीं बीता था. उन्हें कश्मीर तैनाती पर आए सिर्फ चार दिन हुए थे. 10 फरवरी 2019 को उन्होंने चिनार कोर की कमान संभाली और 14 फरवरी को पुलवामा का आईईडी ब्लास्ट हो गया. भारत के 40 जांबाज शहीद हो गए. पाकिस्तानी आतंकी संगठन जैश-ए मोहम्मद ने पुलवामा में जोरदार धमाका कर देश को हिला दिया था. उसके बाद सिक्योरिटी फोर्स ने तय किया कि हमले के मास्टरमाइंड का पता लगाया गया और जैश कमांडर गाजी को जल्द से जल्द खत्म करने की रणनीति बनी. कुछ घंटे बाद ही सवाल उठने लगे थे कि कैसे हुआ, किसने किया, किसकी गलती लेकिन सेना के अफसर ढिल्लन का एक लाइन में जवाब था- पहले जिसने भी ये किया है उसका खेल खत्म करना है. 

कितने गाजी आए...

ढिल्लन ने एक इंटरव्यू में बताया कि उस समय पाकिस्तानी भारतीयों को ट्रोल करने लगे थे. वे लिखने लगे थे- 'How is the Jash'. भारत की फोर्स ने 100 घंटे के अंदर भारतीयों के मोराल को वापस 'हाउ इज द जोश' पर पहुंचाया. बाद में जब प्रेस कॉन्फ्रेंस हुई तो सवाल पूछा गया कि वो गाजी मर गया कि नहीं मरा. उन्होंने कहा कि मैं नहीं चाहता था कि उस दो कौड़ी के आतंकी को तवज्जो भी दूं. इसके बाद ढिल्लन ने कहा था- कितने गाजी आए, कितने गाजी चले गए. 

अंडरग्राउंड हो जाते दहशतगर्द तो...

केजेएस ढिल्लन ने बताया कि हम नहीं चाहते थे कि पुलवामा को अंजाम देने वाले किसी तरह से अंडरग्राउंड हो पाएं. उसके लिए दो चीज बहुत जरूरी थी. उनकी हरकत होनी बहुत जरूरी थी. एक जगह से दूसरी जगह जाएंगे तभी वे दिखाई देंगे. दूसरा, उनका बातचीत करना जरूरी था तभी वे इंटरसेप्ट किए जाएंगे. अगर वे किसी सेफ हाउस में जाकर बैठ गए तो हमारे लिए मुश्किल हो जाता. अगले 48 घंटे में सिक्योरिटी फोर्सेज ने शक वाले, हमदर्द या दूसरे संदिग्धों को टारगेट कर तमाम जगहों पर ऑपरेशन किए. मकसद यह था कि इन्हें सेफ हाउस में नहीं घुसने देना है. 

3 घंटे में गांव को घेरा

जहां भी पुलिस, आर्मी या दूसरी सिक्योरिटी फोर्सेज जाती थी वहां कोई न कोई मिलता था. वहां से दूसरी जगह जाते थे. वे अगर जाते तो बातचीत करते, हमने 48 घंटे उन्हें टिकने नहीं दिया. आखिर में हमें खबर मिली कि पिंगलाना गांव में ये लोग बैठे हैं. अगले 3-4 घंटे में वहां से निकल जाएंगे. हमारे पास वक्त बहुत कम था. उस समय मेजर विभूति ढौंडियाल भी आर्मी की तरफ से उस ऑपरेशन में शामिल थे. जवानों ने उस गांव को तीन घंटे के अंदर घेर लिया और खामोशी से ऑपरेशन लॉन्च किया. 

पिंगलान एक छोटा गांव था. कुछ घर कच्चे, तो कुछ पक्के थे. छत से दूसरे घरों में जाया जा सकता था. कुछ घर लकड़ी के थे. ज्यादा फोर्स यूज नहीं कर सकते थे. शुरू में ही कार्रवाई में मेजर समेत कई जवान शहीद हो गए. लेकिन राष्ट्रीय राइफल्स ने मोराल डाउन नहीं होने दिया क्योंकि देश के लिए जरूरी था कि इस मॉड्यूल को खत्म किया जाए वरना ये पुलवामा- 2 करते. मोराल मेंटेन करते हुए 36 घंटे तक ऑपरेशन चला और मॉड्यूल को खत्म किया गया. इन आतंकियों का कमांडर पाकिस्तानी अब्दुल राशिद उर्फ कामरान था. उसका कोडनेम 'गाजी' था. 

एक और पुलवामा नाकाम

आतंकियों ने पुलवामा जैसे एक और हमले की तैयारी थी. उसके लिए खुफिया इनपुट था. पुलवामा-2 के लिए भी वीडियो बनाया गया था. 24 फरवरी को एक और ऑपरेशन हुआ. जवानों को पता था कि अगर ये चंगुल से निकल गए तो फिर से पुलवामा करेंगे. इस तरह दूसरे बड़े हमले को नाकाम किया गया. दो जांबाजों को मरणोपरांत शौर्य चक्र मिला. 

5 साल में पाकिस्तान की हालत

पुलवामा हमले के पांच साल बाद आज आतंक का सौदागर पाकिस्तान दुनिया में अलग-थलग पड़ गया है. अमेरिका के अफगानिस्तान से हटने और तालिबान के काबुल में सरकार चलाने के बाद पाकिस्तान की स्थिति बदतर होती गई. पैसा है नहीं, महंगाई चरम पर है. लोकतंत्र भी लड़खड़ा रहा है. पाकिस्तान की तरक्की और वहां के लोगों को फिलहाल खुशहाली की उम्मीद नहीं है. दूसरी तरफ भारत एक जिम्मेदार राष्ट्र होने के साथ ही ताकतवर बनकर उभरा है. दुनिया में स्पष्ट संदेश गया है कि भारत अपने पड़ोसियों के साथ मैत्रीपूर्ण संबंध चाहता है और वह ग्लोबल साउथ की सशक्त आवाज है लेकिन परेशान किया गया तो करारा जवाब देना भी जानता है. 

बालाकोट एयरस्ट्राइक और मई 2020 में चीन के साथ पूर्वी लद्दाख में सैन्य झड़प ने दिखा दिया कि भारत में मजबूत सरकार के साथ राजनीतिक इच्छाशक्ति भी दृढ़ है. अब कोई भारत को आंख दिखाकर सुरक्षित नहीं लौट सकता. 

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