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घर जाने के लिए बस के इंतजार में रातभर सड़क पर सो रहे मजदूर, देखिए PHOTOS

PHOTOS में देखिए दिल्ली-यूपी बॉर्डर पर मौजूद प्रवासी श्रमिकों की क्या हालत है.

दिल्ली-यूपी बॉर्डर से हटने के लिए तैयार नहीं प्रवासी मजदूर

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दिल्ली-यूपी बॉर्डर से हटने के लिए तैयार नहीं प्रवासी मजदूर

प्रवासी मजदूर दिल्ली-यूपी बॉर्डर से हटने के लिए तैयार नहीं हैं. प्रवासी मजदूर रात में भी दिल्ली-यूपी बॉर्डर पर सड़क पर ही सो रहे हैं. सरकार के कई दावों के बावजूद इन मजदूरों की परशानियां खत्म होने का नाम नहीं ले रही हैं.

दिल्ली में फंसे प्रवासी मजदूर ज्यादातर यूपी-बिहार के हैं

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दिल्ली में फंसे प्रवासी मजदूर ज्यादातर यूपी-बिहार के हैं

दिल्ली सरकार के मुताबिक दिल्ली में रह रहे करीब 4 लाख प्रवासी लोगों ने अपने मूल प्रदेश जाने के लिए अब तक ऑनलाइन रजिस्ट्रेशन करवाया है. घर जाने वाले प्रवासियों में मुख्य रूप से बिहार और उत्तर प्रदेश के निवासी हैं. बिहार के रहने वाले करीब 2 लाख लोगों ने पंजीकरण करवाया है, जबकि उत्तर प्रदेश के रहने वाले 1.84 लाख से अधिक लोगों ने रजिस्ट्रेशन करवाया है.

दिल्ली सरकार ने रेलवे से ट्रेनों को उपलब्ध करवाने की मांग की

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दिल्ली सरकार ने रेलवे से ट्रेनों को उपलब्ध करवाने की मांग की

यूपी-बिहार के अलावा छत्तीसगढ़, झारखंड और मध्यप्रदेश के रहने वाले लोगों ने भी बड़ी संख्या में घर जाने के लिए ऑनलाइन रजिस्ट्रेशन किया है. बुधवार को दिल्ली के उपमुख्यमंत्री मनीष सिसोदिया ने रेलवे को पत्र लिखकर अगले चार दिनों में 262 ट्रेनों की मांग की है, ताकि सभी लोगों को उनके मूल प्रदेश भेजा जा सके.

लाखों की संख्या में दिल्ली में फंसे हैं प्रवासी कामगार

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लाखों की संख्या में दिल्ली में फंसे हैं प्रवासी कामगार

लॉकडाउन की वजह से अलग-अलग प्रदेशों के रहने वाले लाखों की संख्या में प्रवासी लोग दिल्ली में फंसे हुए हैं. काम-धंधे बंद होने की वजह से इन सभी का रोजगार चला गया है. बेरोजगारी की वजह से इन लोगों के सामने आर्थिक संकट भी हैं. लिहाजा ये लोग अपने मूल प्रदेश जाना चाहते हैं.

65,000 प्रवासियों को घर भेज चुकी है दिल्ली सरकार

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65,000 प्रवासियों को घर भेज चुकी है दिल्ली सरकार

दिल्ली सरकार का दावा है कि अब तक 65,000 प्रवासी लोगों को दिल्ली से उनके गृहराज्य तक भेजा जा चुका है.

अभी भी पैदल चलने को मजबूर हैं श्रमिक

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अभी भी पैदल चलने को मजबूर हैं श्रमिक

सरकारें इन प्रवासी मजदूरों को स्पेशल ट्रेनों और बसों की मदद से उनके घर तक पहुंचा रही हैं. लेकिन ये प्रयास नाकाफी दिख रहे हैं क्योंकि कई मजदूर अभी भी अपने घर जाने के लिए सैकड़ों किलोमीटर तक पैदल चलने को मजबूर हैं.

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