Supertech Twin Towers: ट्विन टावर, Time Bomb और ब्लास्ट; आखिर क्यों गिराई जा रही कुतुबमीनार से ऊंची इमारत?
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Supertech Twin Towers: ट्विन टावर, Time Bomb और ब्लास्ट; आखिर क्यों गिराई जा रही कुतुबमीनार से ऊंची इमारत?

Twin Tower Demolition: नोएडा में बने सुपरटेक ट्विन टावर इन दिनों काफी चर्चा में है. कल यानी रविवार को दोपहर ढाई बजे 32 मंजिला इमारत ध्वस्त हो जाएगी. लेकिन क्या आपको पता है कि ये 32 मंजिला इमारत को क्यों तोड़ा जा रहा है.

Supertech Twin Towers: ट्विन टावर, Time Bomb और ब्लास्ट; आखिर क्यों गिराई जा रही कुतुबमीनार से ऊंची इमारत?

Noida Tower Demolition: नोएडा के सेक्टर-93ए में बना सुपरटेक ट्विन टावर इन दिनों काफी चर्चा में है. कल यानी रविवार को दोपहर ढाई बजे 32 मंजिला इमारत ध्वस्त हो जाएगी. इसका काउंटडाउन शुरू हो चुका है. लेकिन क्या आपको पता है कि करोड़ों रुपये की लागत से बनी ये इमारत क्यों तोड़ी जा रही है. इस इमारत का मामला इलाहाबाद हाई कोर्ट से लेकर सुप्रीम कोर्ट तक चला. सुप्रीम कोर्ट के आदेश के बाद अब ये इमारत जमींदोज हो जाएगी. 

सुप्रीम कोर्ट ने की थी सख्त टिप्पणी

आपको बता दें कि इस इमारत को गैरकानूनी तरीके से बनाया गया था, इसको गिराने की यही सबसे बड़ी वजह है. इस मामले में पहले इलाहाबाद हाईकोर्ट में सुनवाई हुई. बाद में ये मामला सुप्रीम कोर्ट तक जा पहुंचा. सुपरटेक बिल्डर की तरफ से नामी वकील इस केस को लड़े लेकिन वह ध्वस्त होने से नहीं बचा सके. सुप्रीम कोर्ट ने नोएडा अथॉरिटी के सीनियर अधिकारियों पर सख्त टिप्पणी करते हुए कहा था कि नोएडा अथॉरिटी एक भ्रष्ट निकाय है. इसकी आंख, नाक, कान और यहां तक कि चेहरे तक भ्रष्टाचार टपकता है.

क्यों गिराए जाएंगे इमारत?

सुपरटेक ट्विन टावर साल 2009 में बना था. इस प्रोजेक्ट में करीब 1000 फ्लैट्स बनाए जाने थे. लेकिन बाद में बिल्डिंग के प्लान में बदलाव किया गया. इसके बाद कई खरीदार साल 2012 में इलाहाबाद हाईकोर्ट चले गए. इसमें से 633 लोगों ने फ्लैट बुक कराए थे. जिनमें से 248 रिफंड ले चुके हैं, 133 दूसरे प्रोजेक्ट्स में शिफ्ट हो गए, लेकिन 252 ने अब भी निवेश कर रखा है. इस मामले में 2014 में इलाहाबाद हाईकोर्ट ने नोएडा प्रधिकरण को फटकार लगाई और इस प्रोजेक्ट को अवैध घोषित करके ध्वस्त करने का आरोप दे दिया. इसके बाद सुपरटेक कंपनी ने सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाया. सुप्रीम कोर्ट ने तब हाईकोर्ट के आदेश पर रोक लगा दी थी. लेकिन बाद में सुप्रीम कोर्ट ने इसे गिराने का आदेश दे दिया.

कैसे आगे बढ़ा पूरा मामला?

  • सुपरटेक ट्विन टावर प्रोजेक्ट के लिए नोएडा विकास प्राधिकरण ने नवंबर 2004 में जमीन आवंटित की. जमीन आवंटन के एक साल बाद यानी 2005 में नोएडा अथॉरिटी ने इमारत बनाने की मंजूरी दी. इसमें कुल 14 टावरों और एक शॉपिंग कॉम्प्लेक्स के निर्माण को मंजूरी दी गई थी. सभी टावर ग्राउंड प्लोर के साथ 9 मंजिल तक मकान बनाने की मंजूरी दी गई. 2005 में कंपनी ने एमराल्ड कोर्ट (Emerald Court) नाम से एक ग्रुप हाउसिंग सोसाइटी का निर्माण शुरू किया. जून 2006 में सुपरटेक को उन्हीं शर्तों के तहत अतिरिक्त जमीन आवंटित कर दी गई. इसी साल दिसंबर महीने में 11 फ्लोर के 15 टावरों में कुल 689 फ्लैट्स के निर्माण के लिए प्लान में बदलाव किया गया. 2009 में सुपरटेक ने नोएडा प्राधिकरण के साथ मिलीभगत कर ट्विन टावर का निर्माण शुरू कर दिया. ये T-16 और T-17 (Apex और Ceyane) टावर थे.

  • इन दोनों टावरों के निर्माण का स्थानीय रेजिडेंट वेलफेयर एसोसिएशन ने विरोध करना शुरू किया. क्योंकि ये टावर उनकी सोसाइटी के ठीक सामने बन रहे थे. इसे लेकर पहले नोएडा अथॉरिटी ने पहले ग्रीन बेल्ट बताया था. इतना ही नहीं इन टावरों को बनाने में फायर सेफ्टी से लेकर कई अन्य नियमों को खुलेआम तोड़ा जा रहा था. इन टावरों को बनाने में NBR 2006 और NBR 2010 का उल्लंघन किया गया था, जिसके मुताबिक इन बिल्डिंगों के निर्माण के दौरान पास की अन्य बिल्डिंगों के बीच उचित दूरी का ख्याल नहीं रखा गया था.

  • नेशनल बिल्डिंग कोड (NBC), 2005 का उल्लंघन करके इन टावरों को बनाया गया. NBC 2005 के मुताबिक, ऊंची बिल्डिंग के आसपास खुली जगह होनी चाहिए. साथ ही दो टावरों के बीच कम से कम 20 मीटर का स्पेस होना चाहिए, लेकिन इन दोनों टावरों के बीच 9 मीटर से कम का स्पेस रखा गया. इसके अलावा इन ये दोनों टावर का निर्माण यूपी अपार्टमेंट्स एक्ट का भी उल्लंघन है. कंपनी ने मूल योजना में बदलाव किया गया था लेकिन इसके लिए खरीदारों से सहमति नहीं ली गई. इसके साथ ही कंपनी ने प्रोजेक्ट में जिस जगह को ग्रीन एरिया बताया था, उसमें दो बड़े टावर खड़े कर दिए. 

लंबी सुनवाई के बाद आया फैसला

आसपास की सोसाइटी के रेजिडेंट वेलफेयर के विरोध के बाद ये मामला 2009 में कोर्ट पहुंचा. एमराल्ड कोर्ट के रेजिडेंट्स ने कानूनी लड़ाई लड़ने का फैसला किया. निचली अदालत में कार्यवाही न होने पर रेजिडेंट्स 2012 में इलाहाबाद हाईकोर्ट पहुंच गए. वहां करीब डेढ़ साल तक चली कार्यवाही के बाद कोर्ट ने 11 अप्रैल 2014 को दोनों टावर को गिराने का फैसला लिया. हालांकि ये मामला यहीं नहीं रुका और सुप्रीम कोर्ट तक जा पहुंचा. सुप्रीम कोर्ट में 7 साल तक मामला चला. इसके बाद 31 अगस्त 2021 को सुप्रीम कोर्ट ने दोनों टावरों को तीन महीने में गिराने का फैसला किया. हालांकि तीन बार ये तारीख बढ़ाई गई, लेकिन अब रविवार को ये टावर ध्वस्त किए जाएंगे.

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